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रतलाम 27 जुलाई(इ खबरटुडे)।परमात्मा की वाणी में अलौकिक शक्ति होती है। इसे सारे जीव अपनी-अपनी भाषा में समझ लेते हैं । यह वाणी जहां बरसती है, वहां आनन्द ही आनन्द चलता है। इसे परस्पर विरोधी भी सुनते और समझते हैं। परमात्मा के प्रभाव का कारण भी यही है कि उनकी वाणी मनुष्य, देवता, एलियन सभी को समझ आती है। सूर्य सिर्फ दिन में रहता है और चन्द्रमा रार्ति में, लेकिन परमात्मा की वाणी हमेशा रहती है।
यह उद्गार राष्ट्रसन्त वत्र्तमानाचार्य श्रीमद् विजय जयन्तसेन सूरीश्वरजी म.सा. ने व्यक्त किए। जयन्तसेन धाम में आशीर्वचन प्रदान करते हुए उन्होंने कहा कि परमात्मा की वाणी के सामने सूर्य, चन्द्रमा किसी का प्रभाव नहीं होता। वे लाख-लाख सूर्य और चन्द्रमा से भी अधिक प्रकाशमान होते हैं। उनमें चन्द्रमा से अधिक निर्मलता, सूर्य से अधिक प्रकाश और सागर से अधिक गंभीरता है। हमें किसी का जीवन देखना हो तो आचार, आचरण और गुणों को देखना चाहिए, दोषों को नहीं। विडम्बना है कि मनुष्य दोषों को देखना ही पसन्द करता है।
राष्ट्रसन्तश्री ने कहा कि हमारी दृष्टि खुद के अन्दर देखने की होनी चाहिए। अपना जीवन देखेंगे तो दूसरों के दोष देखने का वक्त नहीं मिलेगा। दूसरे के दोषों को देखने वालों का जीवन कचरा पेटी जैसा बन जाता है, जिसमें दोष ही दोष इक_े होंगे। ज्ञानियों ने इसीलिए कहा है कि जैसी दृष्टि होती है, वैसी ही सृष्टि दिखाई देती है। जीवन में गुणों का खजाना होना चाहिए दुर्गुणों का नहीं। राष्ट्रसन्तश्री ने विक्रम चरिर्त का वाचन शुरू करते हुए कहा कि इसमें परमात्मा की वाणी की स्तुति की गई है। परामात्मा की वाणी को जो भी जीवन में उतारता है, उसे फल अवश्य प्राप्त होता है।
इस मौके पर चातुर्मास आयोजक चेतन्य काश्यप परिवार की मातुश्री तेजकुंवरबाई काश्यप ने तपस्वी संजना मूणत का बहुमान किया। स्टेशन रोड जैन जागृति मण्डल की ओर से अध्यक्ष सुनीला पोरवाल, सचिव स्नेहलता धाकड, सरला डफरिया, प्रेमलता राठौड, विजया पोरवाल, मधु खाबिया, राजकुमारी नागौरी ने मातुश्री का बहुमान किया। दादा गुरुदेव की आरती का लाभ नरेन्द्र कुमार, पंकज कुमार, विनय कुमार मेहता परिवार ने लिया।
विनय धर्म का पालन करना चाहिए –
धर्मसभा में मुनिराजश्री निपुणरत्न विजयजी म.सा. ने उत्तराध्ययन सूर्त का वाचन करते हुए विनय की महिमा बताई। उन्होंने विनय धर्म का पालन करने की आवश्यकता बताते हुए कहा कि विनय से विद्या आती है, विद्या से विवेक, विवेक से वैराग्य और वैराग्य से वीतरागता को पाया जा सकता है। विनय ही मनुष्य जीवन में ज्ञान, दर्शन, चारिर्त और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग है । एक झूठ बोलने से जीवन के सब धर्म खत्म हो जाते हैं, इसलिए ज्ञानियों ने कहा है कि विनय के स्वरुप को समझें और उसे अनुसरण में लाएं।