साहित्यसाहित्य

“चेंज”

शाम के चार बजने को थे, बच्चे स्कूल से शाम साढ़े पांच बजे तक आएंगे !कल्पना को बस रमेश की प्रतीक्षा थी ,वह तैयार थी उसने अंतिम नजर दर्पण के सामने खड़े होकर स्वयं पर डाली ,अपने सौंदर्य  को निहार कर वह अपने आप पर मुग्ध हो उठी थी ! दरवाजे पर दस्तक ,रमेश था दोनों प्रेमी युगल एक दूसरे में खो गए, चरम के बाद रमेश ने पूछा क्या कल्पना  पति ठेकेदार धन संपदा वैभव सब कुछ, फिर यह सब क्यों ?क्यों भाई क्या चेंज का अधिकार सिर्फ पुरुषों को ही है ? क्या तुम्हारी पत्नी नहीं ? फिर तुम क्यों ? चलो जल्दी करो बच्चों के आने का समय हो रहा है! रमेश ने बाहर की राह पकड़ी चेंज हो चुका था !

इन्दु सिन्हा”इन्दु”रतलाम

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