एक दूसरे के पर्याय जैसे हो गए है भारत के राहुल गांधी और पाकिस्तान के बिलावल भुट्टो
-डॉ. डीएन पचौरी
भारत के राहुल गांधी और पाकिस्तान के बिलावल भुट्टो को वहां का राहुल गांधी बोल सकते हैं। दोनों में पर्याप्त समानताएं हैं आइए देखें।
दोनों ही अपने नाना की विरासत का लाभ उठा रहे हैं यदि नेहरु नाना ना होते तो राहुल गांधी या तो मुरादाबाद में बर्तनों की दुकान पर बैठे होते या कहीं किराने की दुकान खोल ली होती। उसी तरह जुल्फिकार अली भुट्टो के कारण ही बिलावल भुट्टो पाकिस्तान की राजनीति में दखल दे रहा है,नहीं तो वह भी कहीं साइकिल की दुकान खोलकर पंचर सुधार रहा होता।
दूसरी समानता यह है कि एक की दादी तो दूसरे के नाना की राजनीतिक हत्या हुई। इंदिरा गांधी ने पंजाब में कांग्रेस का वर्चस्व कायम रखने के लिए और दूसरी पार्टियां जैसे अकाली दल आदि को ठिकाने लगाने के लिए भिंडरावाला को आगे बढ़ाया, लेकिन भिंडरावाला भस्मासुर बन बैठा। वह स्वयं को वहां का प्रशासक समझने लगा और उसने अकाल तख्त पर कब्जा जमा लिया। स्वर्ण मंदिर में हथियारों का जखीरा जमा करने लगा साथ ही सिखों की एक छोटी सी फौज बनाली। वह हिंदुओं की हत्या करने लगा और उसके कारण पंजाब में अराजकता फैलने लगी।
इससे त्रस्त होकर श्रीमती इंदिरा गांधी को स्वर्ण मंदिर में फौज भेजनी पड़ी। यद्यपि फौज को निर्देश दिया गया था कि गोलियां इस तरह चलाई जाएं कि मंदिर को कम से कम नुकसान पहुंचे। पर जब दोनों तरफ से गोलीबारी हुई तो मंदिर को काफी क्षति पहुंची भिंडरावाले को तो मार गिराया गया किंतु मंदिर को क्षतिग्रस्त देखकर सिखों को बहुत आघात पहुंचा और वह इंदिरा गांधी को अपना दुश्मन मानने लगे। इंदिरा गांधी को कहा गया था कि अपनी सुरक्षा में से सिक्कों को हटा दें पर उन्होंने यह बात नहीं मानी और 31 अक्टूबर 1984 को सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने श्रीमती गांधी की हत्या कर दी।
इसी प्रकार पाकिस्तान में जुल्फिकार अली भुट्टो ने जिया उल हक को आगे बढ़ाया। जिया उल हक सर्वे सर्वा बनना चाहता था और उसने भुट्टो को अपने रास्ते का कांटा समझकर ठिकाने लगाने की तरकीब निकाली । मियां भुट्टो का एक राजनीतिक प्रतिद्वंदी अहमद रजा कसूरी खान था। जिस पर पहले भी दो बार हमले हो चुके थे और तीसरे हमले में उसकी जान चली गई। जिसका इल्जाम मियां भुट्टो पर लगाया गया। जिया उल हक ने अपना प्रभाव डाल कर कोर्ट से भुट्टो को फांसी की सजा का ऐलान करवा दिया और उन्हें फांसी दे दी।
राहुल गांधी और बिलावल भुट्टो मैं एक समानता यह भी है कि एक के पिता श्री तो दूसरे की माता श्री आतंकवाद के शिकार हुए। राजीव गांधी यदि पायलट ही बने रहते तो शायद अभी तक जिंदा होते। किंतु परिवारवाद ने उनकी जान ले ली। जब इंदिरा गांधी की हत्या हो गई तो प्रधानमंत्री पद के लिए कांग्रेस में एक से एक योग्य व्यक्ति भी थे उदाहरण के लिए प्रणब मुखर्जी,अर्जुन सिंह,नरसिम्हा राव। किंतु राजीव गांधी जिन्हे राजनीति का क ख ग भी नहीं आता था उन्हें भारत देश का प्रधानमंत्री बनाया गया। जिसका लाभ तत्कालीन कांग्रेसियों जैसे अरुण नेहरू ने जमकर उठाया।
उन्हीं में से किसी के बहकावे में आकर इन्होंने शांति सेना श्रीलंका में भेज दी जिसने तमिलों की हत्या करना शुरू कर दी। श्रीलंका में शांति बनाए रखने के लिए हमारे देश के तमिलों की हत्या करवाना क्या उचित था? इससे तमिलों के एक संगठन लिट्टे – ने जब राजीव गांधी 1991 में चुनावी प्रचार के लिए दक्षिण में गए तो नलिनी नाम की एक महिला ने मानव बम का काम किया और राजीव गांधी के चरण स्पर्श करने के बहाने नीचे झुक कर बम विस्फोट कर राजीव गांधी को मार डाला। इसी प्रकार बेनजीर भुट्टो जब प्रधानमंत्री बनी तो उनके बहुत से विरोधी पैदा हो गए और उन्हीं आतंकवादियों ने बेनजीर भुट्टो की हत्या की। इस प्रकार एक के पिताजी तो दूसरे की माताजी आतंकवादियों का शिकार हो गए।
अगली दोनों में समानता यह है कि दोनों ही मोदी के भयंकर विरोधी हैं। राहुल गांधी का जब भी कोई भाषण शुरू होता है तो उसमें अडानी अंबानी और मोदी से ही शुरुआत होती है। सालों से वह मोदी की बुराई करते आ रहे हैं। इसी प्रकार भुट्टो बिलावल मैं यू एन ओ मैं भाषण दिया तो मोदी की बुराई शुरू कर दी। यद्यपि हमारे विदेश मंत्री एस जयशंकर ने उसकी बखिया उधेड़ दी किंतु बिलावल मोदी जी की बुराई करता है। जिसकी आलोचना भारत में ही नहीं पाकिस्तान में भी हुई। क्योंकि मोदी को चाहने वाले पाकिस्तान में भी बहुत हैं ।
एक सबसे बड़ी समानता दोनों में यह है कि दोनों की बातें बचकानी रहती हैं दोनों ही अकल से कमजोर हैं। राहुल की हर बात की मजाक उड़ाई जाती है। इसी प्रकार बिलावल की बातों को भी पाकिस्तान में मजाक में ही लिया जाता है। राहुल गांधी और बिलावल भुट्टो दोनों में एक और सबसे बड़ी समानता यह है कि दोनों ही अपने अपने देश की जमीन से जुड़े हुए नहीं हैं। न राहुल गांधी हिंदुस्तान की जमीन से जुड़े हैं और न बिलावल भुट्टो पाकिस्तान की। राहुल गांधी को भारत की सभ्यता और संस्कृति के बारे में ज्ञान लगभग नगण्य है इसी प्रकार बिलावल भुट्टो को पाकिस्तान के बारे में अधिक ज्ञान नहीं है इसका कारण यह है कि दोनों की शिक्षा दीक्षा विदेश में हुई है। जहां पर भाषा का सवाल है राहुल गांधी को हिंदी अच्छी नहीं आती है और ना बिलावल को उर्दू अच्छी आती है क्योंकि दोनों विदेश में पढ़े तो दोनों के अंग्रेजी अच्छी है। राहुल को हिंदुस्तान से अधिक लेना देना नहीं है यह भारत का कोई विशेष आपदा उत्पन्न हुई तो यह भागकर इटली चले जायेंगे इसी प्रकार बिलावल भुट्टो ब्रिटेन में शरण लेगा।
भारत में राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा पर निकले हैं अर्थात जो आदमी स्वयं भारत की मिट्टी से जुड़ा हुआ नहीं है वह भारत जोड़ी यात्रा कर रहा है। मजेदार बात यह है कि जिस जिस प्रदेश से यात्रा गुजरती है वहां से कांग्रेस का कोई न कोई सांसद या विधायक कांग्रेस पार्टी छोड़कर बीजेपी या किसी दूसरी पार्टी में शामिल हो जाते हैं। यह भारत जोड़ो यात्रा है या कांग्रेश तोड़ो यात्रा है। आजकल राहुल गांधी का एक नया जुमला चल रहा है। वह नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोल रहे हैं। यह वही दुकान है जिसमें आलू से सोना बनता है और आटा लीटर में मिलता है। पेमेंट करने जाओ तो पिचतीस रुपए मांगे जाते हैं यहां 2500 को ढाई हजार 500 बोला जाता है। कुल मिलाकर राहुल गांधी के बारे में तो यही कहा जा सकता है कि उम्र पचपन की अकल बचपन की।
डॉ. डीएन पचौरी वरिष्ठ शिक्षाविद है और सम सामयिक विषयो पर निरंतर लिखते है।