Raag Ratlami Congress – गिन्नी दीदी गई,पंजा पार्टी की डूबती नैया में हुआ एक और सूराख
-तुषार कोठारी
रतलाम। पंजा पार्टी की हालत उपर से लेकर नीचे तक एकजैसी है। पंजा पार्टी की डूबती नैया में लगातार नए नए सूराख हो रहे है। बात दिल्ली की हो या मध्यप्रदेश की,या हमारे शहर की। पंजा पार्टी के हाल एक ही जैसे है। उपर पप्पू के कारण कई सारे बडे नेता पंजा पार्टी को टाटा बाय बाय कर रहे है,ठीक इसी तर्ज पर यहां शहर में भी पंजा पार्टी को टाटा बाय बाय करने वालो की तादाद बढती जा रही है।
पंजा पार्टी को सबसे नया झटका गिन्नी दीदी ने दिया है। अभी पिछले चुनाव तक तो गिन्नी दीदी,पंजा पार्टी की आंखों का तारा बनी हुई थी। पंजा पार्टी ने गिन्नी दीदी को टिकट देकर भैया जी के सामने मैदान में उतारा था। गिन्नी दीदी के जीतने का तो सवाल ही नहीं था,लेकिन फिर भी गिन्नी दीदी ने एक कमाल तो करके दिखा ही दिया था। इससे पहले वाले चुनाव में जोलीदार गोल टोपी वाले वोटर भी पंजा पार्टी से दूर चले गए थे और नतीजा पंजा पार्टी की जमानत जब्त होने के रुप में सामने आया था। लेकिन गिन्नी दीदी के चुनाव लडने से ना सिर्फ जालीदार गोल टोपी वाले वोटर फिर से पंजा पार्टी के पास आए,बल्कि पंजा पार्टी ने अपनी जमानत भी बचा ली थी और थोडे सम्मानजनक वोट भी हासिल कर लिए थे। ये अलग बात है कि गिन्नी दीदी और पंजा पार्टी ने जो गणित लगाया था,वह फेल हो गया था। गिन्नी दीदी जनेउधारियों की बहू है,इसलिए पंजा पार्टी वालों का गणित था कि जालीदार गोल टोपी के साथ जनेऊधारियों के वोट भी आ गए तो जीत तय है। लेकिन जनेऊधारियों ने ऐसा कुछ नहीं किया और गिन्नी दीदी भारी भरकम अंतर से चुनाव हार गई थी।
लेकिन इस हार में भी एक जीत थी। जीत इस बात की थी कि पंजा पार्टी की जमानत बच गई थी और लुटा हुआ थोडा सम्मान भी लौट आया था। यही वजह थी कि चुनाव हारने के बाद भी गिन्नी दीदी पंजा पार्टी की बडी नेता कहलाने लगी थी। पंजा पार्टी ने तो उन्हे प्रदेश स्तर की पदाधिकारी भी बना रखा था। लेकिन अचानक ना जाने क्या हुआ कि गिन्नी दीदी ने पंजा पार्टी को ठेंगा दिखाने की घोषणा कर डाली। सियासत पर नजर रखने वाले यही हिसाब लगा रहे है कि आखिर गिन्नी दीदी ने अचानक ऐसा क्यो किया। गिन्नी दीदी ने पंजा पार्टी की डूबती नैया में एक और सूराख क्यो कर दिया।
हांलाकि कुछ जानकारों का मानना है कि डूबती नैया में सवारी करने का कोई फायदा ना देखकर उन्होने ये फैसला लिया है। जानकारों का कहना है कि गिन्नी दीदी का ये फैसला अचानक से नहीं हुआ है। इसके लिए लम्बे वक्त से तैयारी चल रही थी। इसकी शुरुआत काफी पहले से हो गई थी। सबसे पहले गिन्नी दीदी के चुनाव में लेन देन का काम संभालने वाले भैया ने पंजा पार्टी से दामन छुडाकर काली टोपी वालों का दामन थामा। काली टोपी का दामन थामने के बाद भैया ने तेजी से तरक्की की सीढियां चढ ली। अब वो भैया काली टोपी वालों के बडे अधिकारी बन चुके है। भैया ने अब गिन्नी दीदी को पंजा पार्टी से अलग करवा दिया है। जानकारों का अंदाजा है कि अब गिन्नी दीदी धीरे से फूल छाप का रुख करेगी। हांलाकि अभी गिन्नी दीदी ने ऐसा घोषित नहीं किया है कि वो फूल छाप में जाएगी। फिलहाल तो उन्होने समाजसेवा करने की बातें कही है लेकिन समझदार लोग जानते है कि जिसे एक बार सियासत का चस्का लग जाता है,वो आसानी से छूटता नहीं है। फिर गिन्नी दीदी के पास फूल छाप पार्टी की कोई बडी पोस्ट हासिल करने के लिए भैया का साथ तो है ही। पहले सही वक्त का इंतजार किया जाएगा और फिर आखिरकार गिन्नी दीदी फूल छाप में चली ही जाएगी।
उधर पंजा पार्टी में गिन्नी दीदी के अचानक चले जाने से मातम का माहौल बना हुआ है। पंजा पार्टी वाले इन दिनों पीसीसी चीफ के आगमन की तैयारियों के चक्कर में पहले ही परेशान थे। पंजा पार्टी के कार्यक्रमों में आजकल लोग आते नहीं है। पीसीसी चीफ के आने पर भीड जुटाने की चुनौती से निपटने के लिए अलग अलग ब्लाक वालों को टार्गेट दिए जा रहे थे। इसी बीच गिन्नी दीदी वाला धमाका हो गया। पंजा पार्टी के लोकल मुखिया कह रहे है कि वे गिन्नी दीदी से बात करके उन्हे समझाने की कोशिश करेंगे। गिन्नी दीदी पर उनकी समझाईश का कितना और क्या असर होगा? ये तो देखने वाली बात है,लेकिन लगता नहीं कि गिन्नी दीदी अब उनकी बात मानेगी।
लौट के बुद्धू…………
पुरानी कहावत है लौट के बुद्धु घर को आए। मास्साब से “माननीय” बने नेताजी के साथ पिछले दिनों यही कुछ हुआ। पहले तो “माननीय” ने बेवजह एक पंचायत सचिव को बर्खास्त करवा दिया। “माननीय” का गुस्सा,अपनी ही पार्टी वालों पर था,लेकिन उन्होने अपनी खीज बेचारे पंचायत सचिव पर उतार दी। अफसरों को धौंस देकर सचिव को बर्खास्त करवा दिया। “माननीय” की इस हरकत पर फूल छाप पार्टी में ही तगडी प्रतिक्रिया हुई और “माननीय” पर जबर्दस्त दबाव आया। आखिरकार “माननीय” को हार मानना पडी और बर्खास्त किए गए पंचायत सचिव को फिर से बहाल करवाना पडा। पंचायत सचिव अब फिर से उसी पंचायत के सचिव बन चुके है,जहां से हटाए गए थे। लोग कर रहे है कि “माननीय” की हालत लौट के बुद्धु घर को आए जैसी हो गई है। पूरे घटनाक्रम ने “माननीय” की तगडी फजीहत करवाई। वैसे इस फजीहत के जिम्मेदार वे खुद ही थे। उनकी इस हरकत का असर आने उनके कैरियर पर पडना भी तय है।