ढाई महीने की एक और बीमार बालिका को 24 बार गर्म सलाखों से दागा, हालत गंभीर होने पर निजी अस्पताल में कराया भर्ती
शहडोल,04 फरवरी (इ खबरटुडे)। आदिवासी क्षेत्रों में अंधविश्वास के चलते बच्चों के साथ गर्म सलाखों से दागकर इलाज करने की कुप्रथा लगातार बढ़ रही है। जिले के सिंहपुर कठौतिया गांव में ढाई महीने की बच्ची को 51 बार गर्म सलाखों से दागने की मौत के बाद एक और मामला सामने आया है। कठौतिया से लगे गांव सामतपुर में एक और बच्ची को इलाज के नाम पर 24 बार गर्म सलाखों से दागा गया है। सिंहपुर कठौतिया गांव से तीन किमी दूर बसे सलामतपुर गांव में तीन महीने की बच्ची को दागने का मामला सामने आया है। हालत बिगड़ने पर मासूम को मेडिकल कालेज शहडोल में भर्ती कराया गया। हालत गंभीर होने पर परिजन मेडिकल कालेज से निजी अस्पताल ले गए हैं।
51 बार गर्म सलाखों से दागने का मामला सिंहपुर के कठोतिया गांव का था। यहीं से महज तीन किलोमीटर की दूरी में बसे सामतपुर गांव में अब 24 बार गर्म सलाखों से दागने का मामला सामने आया है। हालत बिगड़ने पर मासूम को मेडिकल कॉलेज शहडोल में भर्ती कराया गया है, यहां बच्ची की हालत नाजुक बनी हुई है। बाद में परिजन मेडिकल कॉलेज से निजी अस्पताल ले गए।
जानकारी के मुताबिक, ढाई महीने की शुभी कोल को सांस लेने में समस्या थी। मां सोनू कोल और पिता सूरज कोल खैरहा गांव में झोलाछाप डॉक्टर के यहां इलाज कराए, लेकिन राहत नहीं मिली। बाद में मेडिकल कॉलेज लेकर पहुंचे। बताया गया कि लगातार बीमार होने पर गांव की एक महिला ने गर्म सलाखों से दागा था।
स्वास्थ्य व्यवस्था चरमराई
जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई है। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ पांडे ने जिले का जबसे पदभार संभाला है, तबसे आए दिन ग्रामीण अंचलों में कुछ न कुछ मामला प्रकाश में आ रहा है। स्वास्थ्य अधिकारी ग्रामीण अंचलों में संचालित अस्पतालों का निरीक्षण करने कभी नहीं जाते, जिसकी वजह से ग्रामीण अंचलों में स्वास्थ्य अमला मनमौजी काम करता है, जिसका नतीजा अब सामने आने लगा है। 51 बार गर्म सलाखों से दागने के बाद प्रशासन ने बड़े-बड़े दावे किए और स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर पुख्ता इंतजाम की भी बात सामने आई थी। लेकिन उस गांव से महज तीन किलोमीटर की दूरी पर 24 बार गर्म सलाखों से दागने मामला सामने आने से स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी है।
झोलाछाप डॉक्टर करते हैं इलाज
मासूम को गांव में इलाज नहीं मिला था, झोलाछाप डॉक्टर के यहां परिजन ले गए थे। परिजनों के अनुसार, गांव में बेहतर स्वास्थ्य सुविधा न मिलने की वजह से झोलाछाप के पास परिजनों को मजबूरन जाना पड़ा, जिसके बाद मेडिकल कॉलेज और अब एक निजी अस्पताल में मासूम का इलाज चल रहा है। यहां उसकी हालत में सुधार होने की बात बताई जा रही है।