“मन की बात” का असर: वोकल फार लोकल से ग्लोबल तक का सफर
“मन की बात” के 100 वें एपिसोड पर विशेष
-पंडित मुस्तफा आरिफ
सतत चलते रहो का संदेश भारतीय संस्कृति के चरैवेती चरैवेती मंत्र का प्रेरक मार्गदर्शन है। मन की बात के 100 वें एपिसोड का समापन प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने इसी मंत्र के देशवासियों से आव्हान के साथ किया।
आज की चर्चा का मूल विषय था “वोकल फार लोकल” मन की बात के प्रारंभ से लेकर अब तक देश वासियों ने किस प्रकार प्रभावित और प्रेरित होकर वोकल फार लोकल को वोकल फार ग्लोबल बना दिया, उसके बारे मे न केवल चर्चा की अपितु ऐसे सक्रिय कुशल उद्यमियों को देश वासियों और संपूर्ण विश्व से परिचय कराया। जिसकी सराहना अंतरराष्ट्रीय संघ की पदाधिकारी ने आनलाइन उपस्थित होकर की।
वैसे तो अनेक उदाहरण उन्होने रूबरू चर्चा के माध्यम से पेश किए। प्रमुख रूप से जम्मू-कश्मीर के मंज़ूर जी और मणिपुर की सुश्री विजयशांत देवी ने उत्पादन के उच्च मानक स्थापित कर इसका श्रेय मोदी जी की मन की बात को दिया। जम्मू-कश्मीर के मंज़ूर भाई ने मोदी जी के प्रोत्साहन से स्लेट बनाने के छोटे से गृह उद्योग को किस प्रकार बड़े रोजगार मूलक उद्योग मे परिवर्तित किया उसकी चर्चा मोदी जी के साथ फोन पर करते हुए बताया कि अब वो 200 से अधिक लोगो को रोजगार दे रहें है। आने वाले समय आसपास के गांवो मे विस्तार के साथ यह संख्या और तेज रफ्तार से बढ़ेगी।
इसी प्रकार मणिपुर की विजयशांत देवी कमल के रेशो से कपड़ा बनाने के काम मे जुटी हुई है, उनके उत्पाद की भारत मे ही नहीं विदेश मे विशेषकर अमेरिका मे मांग बढ़ रही हैं, यानि वोकल फार लोकल से वोकल फार ग्लोबल तक का सफर जारी है। चरैवेती चरैवेती।
संक्षेप मे मन की बात मन का सागर है जिसे गागर में सागर मोदी जी जैसे कुशल चितेरे ही भर सकते है। राजनैतिक समीक्षा और चर्चा अपनी जगह है। व्यापक दृष्टिकोण और अंतरराष्ट्रीय केनवास पर मुल्यांकन करे तो इसे एक अभिनव प्रयोग ही नहीं कहेंगे, अपितु एक सामाजिक और वैश्विक समझबूझ के व्यक्तित्व की महान साधना भी कहेंगे। संभवतः दुनिया में ऐसे बिरले ही नेता होंगे जो असाधारण होते हुए भी साधारण है। जयहिंद वंदेमातरम। भारत माता की जय।