बढ रही है भारतीय वाद्ययंत्रों की लोकप्रियता
प्रख्यात बांसुरी वादक अभय फगरे की प्रेसवार्ता
रतलाम,20 नवंबर(इ खबरटुडे)। भोपाल आकाशवाणी से जुडे प्रख्यात बांसुरी वादक अभय फगरे का कहना है कि भारतीय वाद्ययंत्रों की लोकप्रियता लगातार बढ रही है। तमाम तरह के इलेक्ट्रानिक वाद्ययंत्रों के आने के बावजूद मूल भारतीय वाद्ययंत्रों की उपयोगिता बरकरार है और इन्हे कोई खतरा नहीं है।
आकाशवाणी के भोपाल केन्द्र से सम्बध्द बांसुरी वादक अभय फगरे और तबला वादक हितेन्द्र दीक्षित ने पत्रकारों से चर्चा करते हुए बताया कि इलेक्ट्रानिक वाद्य यंत्रों और पश्चिमी वाद्य यंत्रों की बहुलता के बावजूद तबला,तानपुरा जैसे मूल भारतीय वाद्य यंत्रों का महत्व लगातार बढ रहा है। संगीत की गहरी समझ रखने वाले इलेक्ट्रानिक वाद्य यंत्रों को कम पसन्द करते है। इसका कारण यह है कि प्राकृतिक तौर पर बने हुए तानपुरा या तबला जैसे वाद्ययंत्रों के निकलने वाली ध्वनियों या स्वरों की बराबरी इलेक्ट्रानिक वाद्य यंत्रों से निकलने वाली ध्वनियां नहीं कर पाती।
श्री फगरे ने बताया कि मूल भारतीय वाद्य यंत्रों की लोकप्रियता निरन्तर बढती जा रही है। यहां तक कि हालीवुड की कई फिल्मों में भारतीय वाद्य यंत्रों का बैकग्राउण्ड म्यूजिक उपयोग में लाया जा रहा है। भारतीय शाीय संगीत की लोकप्रियता भी लगातार बढ रही है। अब तो शाीय संगीत आधारित टीवी चैनल भी चालू हो गए है।
एक प्रश्न के उत्तर में श्री फगरे ने कहा कि यह बात सही है कि शाीय संगीत सुनने वालों की संख्या जरुर कम है,लेकिन इससे इसका महत्व कम नहीं होता। उन्होने कहा कि स्तरीय साहित्य हो या स्तरीय संगीत इसको समझने व इससे आनन्द लेने वालों की संख्या कम ही होती है। जिस तरह घटिया साहित्य अधिक पढा जाता है,उसी तरह चलताउ किस्म का संगीत भी अधिक लोकप्रिय होता है। लेकिन स्तरीय संगीत का महत्व सदैव कायम रहता है। एक प्रश्न के उत्तर में उन्होने कहा कि शाीय संगीत के कलाकारों को आर्थिक स्तर पर कोई समस्या नहीं है। कलाकारों को शासकीय स्तर पर तो प्रोत्साहन मिलता ही है,साथ ही सामाजिक और व्यावसायिक तौर पर भी पर्याप्त प्रोत्साहन मिल रहा है।
उन्होने कहा कि संगीत से गुरु शिष्य परंपरा कम होती जा रही है,लेकिन इस परंपरा को बनाए रखने के लिए भी शासकीय व निजी दोनो ही स्तरों पर प्रयास किए जा रहे है। इसके अच्छे परिणाम भी आने लगे है और कुछ बहुत अच्छे कलाकार गुरु शिष्य परंपरा के माध्यम से उभर कर आए है। श्री फगरे ने कहा कि भारतीय संगीत को प्रोत्साहित करने के लिए स्कूली शिक्षा में संगीत विषय जोडा जाना चाहिए। इससे बच्चों में संगीत की समझ विकसित होगी और संगीत को भी प्रोत्साहन मिल सकेगा।
श्री फगरे ने बताया कि वे प्रख्यात बांसुरी वादक व संगीत निर्देशक पं.रघुनाथ सेठ के शिष्य है। जबकि उनके साथी तबला वादक हितेन्द्र दीक्षित उस्ताद जाकिर हुसैन खां साहेब के शिष्य रहे है। श्री फगरे ने बांसुरी में कुछ नए प्रयोग भी किए है। आमतौर पर बांसुरी में स्वर निकालने के लिए छ: छिद्र होते है। श्री फगरे ने अपनी बांसुरी में तीन छिद्र बढाए हैं। उनकी इस बांसुरी से कुछ ऐसे राग भी बजाना संभव हो गया है,जो पहले काफी कठिन था। बागेश्वरी जैसे कुछ कठिन राग बांसुरी से निकालना पहले कठिन था,लेकिन उनके प्रयोग से यह आसान हो गया है। श्री फगरे एकल बांसुरी वादन के साथ साथ सुश्री सोनल मानसिंह,श्रीमती माधवी मुद्गल,गुरु केलूचरण महापात्र,पं.बिरजू महाराज,स्वप्र सुंदरी जैसे प्रख्यात नृत्य गुरुओं के साथ संगत कर चुके है। रंग श्री लिटिल बैले ग्रुप के सिंहासन बत्तीसी का संगीत निर्देशन भी उन्होने किया है। श्री फगरे रुस फ्रान्स,जर्मनी,स्पेन,हालेण्ड,मोरक्को,ब्राजील,न्यूजीलैण्ड जैसे अनेक देसों में बांसुरी वादन कर चुके है।