शांति लौटी लेकिन नहीं टला खतरा
कपिल हत्याकाण्ड के कई प्रश्न अनुत्तरित
यास्मीन के हमलावर भी नहीं आए गिरफ्त में
रतलाम,2 अक्टूबर(इ खबरटुडे)। कफ्र्यू के साये में से निकल कर अब शहर तेजी से सामान्य दशा की तरफ चल पडा है। पुलिस ने भी बजरंग दल सहसंयोजक कपिल के हत्यारों को गिरफ्तार कर यह दर्शाने की कोशिश की है कि अब सबकुछ ठीक हो गया है। लेकिन वास्तविकता यह नहीं है। पुलिस के प्रयास तो ऐसे है जैसे आग की तेज लपटों को तो दबा दिया गया हो,लेकिन भीतर ही भीतर आग सुलग रही हो। शहर की शांति तो लौट आई है,लेकिन खतरा टला नहीं है। खतरा बरकरार है।
रतलाम के माहौल का विश्लेषण करने के लिए यह जरुरी है कि पिछली पृष्ठभूमि नजर में रखी जाए। शहर के आम लोगों में कभी भी सांप्रदायिक विद्वेष की भावनाएं नहीं रहीं हैं,लेकिन राष्ट्रविरोधी तत्व यहां लगातार सक्रिय रहे हैं। ये ही राष्ट्रविरोधी तत्व अपनी करतूतों पर सांप्रदायिक विद्वेष का रंग चढाते है और पूरे समुदाय को इसमें लपेटने की कोशिश करते है। पुलिस मामलों का निपटारा सतही तौर पर कर देती है।
घटनाओं को विश्लेषण करने के लिए ज्यादा पीछे जाने की जरुरत नहीं है। 3 सितम्बर 2010 को शहर में सांप्रदायिक विवाद की स्थिति उत्पन्न हो गई थी और उपद्रवी तत्वों ने पुलिस बल पर भी फायरिंग कर दी थी। उस समय अल्पसंख्यक क्षेत्रों में की गई सर्चिंग में हथियारों का बडा जखीरा बरामद हुआ था। उस समय विवाद को भडकाने में यास्मीन शैरानी की खास भूमिका रही थी। बाद में पुलिस ने सख्ती से उपद्रवियों को नियंत्रित किया था। लेकिन उपद्रव भडकाने वाले खास लोग बच निकले थे।
इसके बाद रतलाम में ही सिमी आतंकियों की पुलिस से मुठभेड हुई थी,जिसमें एक पुलिसकर्मी शहीद भी हुआ था। सिमी आतंकियों की रतलाम में मौजूदगी और पुलिस से मुठभेड के बाद यह तथ्य निर्विवाद रुप से साबित हो गया कि उपर से भले ही रतलाम शान्त दिखाई दे,लेकिन भीतर ही भीतर आतंकियों के स्लीपर सेल पूरी तरह सक्रिय है और अपने खतरनाक मन्सूबों को पूरा करने में लगे हुए है।
आपराधिक घटनाओं के बाद पुलिस के अनुसन्धान में अब भी इस नजरिये का अभाव साफ झलकता है। 27 सितम्बर को हुई घटनाओं की जांच में भी यही प्रदर्शित हुआ। चूंकि एक हिन्दूवादी कार्यकर्ता की हत्या हुई थी,इसलिए पुलिस ने जैसे तैसे इस हत्याकाण्ड को उजागर करने पर अपना सारा जोर तो लगाया,लेकिन इस जांच में कई महत्वपूर्ण बिन्दुओं को नजरअन्दाज कर दिया।
पुलिस के भीतरी सूत्र बताते है कि पुलिस के ही कुछ अधिकारी जांच की दिशा मोडने की कोशिशें कर रहे थे। यास्मीन शैरानी पर हुए हमले की जांच को जनबूझकर ढील दी गई। जबकि बडी संभावना इस बात की है कि इस हमले के आरोपी भी उसी वर्ग से जुडे हो जिन्होने बजरंग दल सहसंयोजक कपिल राठौड की हत्या की।
शहर में पिछले कुछ समय से अल सूफ्फा ग्रुप की सक्रियता चर्चाओं में रही है। पकडे गए आरोपियों के सम्बन्ध इस ग्रुप से होने की भी पूरी संभावना है। लेकिन पुलिस इस बिन्दु को ज्यादा गंभीरता से लेने को तैयार नहीं है। पुलिस का सारा जोर यह दर्शाने पर है कि हत्या का कारण आपसी रंजिश है। पिछले दिनों जब अल सूफ्फा ग्रुप को लेकर विवाद पुलिस तक पंहुचे थे,तब पुलिस ने उतनी सख्त कार्यवाही नहीं की,जितनी की जाना चाहिए थी। यदि उस वक्त सख्त कार्यवाही की गई होती,तो यह संगठन जोर नहीं पकड पाता। अब जरुरत इस बात की है कि इस तरह की गतिविधियों को प्रश्रय देने वालों की पहचान की जाए और उन्हे दबाया जाए।
कपिल हत्याकाण्ड को सरसरी तौर पर हल कर लेना भर पर्याप्त नहीं है। जब तक तमाम घटनाओं का व्यापक तौर पर खुलासा नहीं हो जाता और देशद्रोही गतिविधियों और व्यक्तियों को प्रश्रय देने वाले तथाकथित प्रभावशाली लोगों पर अंकुश नहीं लगाया जाता,तब तक शहर की शांति स्थाई नहीं हो सकती। सांप्रदायिकता को आधार बनाकर की गई हत्या को आपसी रंजिश बताने की कोशिश थोडे समय तक शांति को कायम रख सकती है,लेकिन खतरा समाप्त नहीं कर सकती। शहर पर मण्डरा रहे खतरे को पूरी तरह खत्म करने के लिए जरुरी है कि सारी सच्चाईयों को ढूंढ कर निकाला जाए। तभी शहर पर मण्डराता खतरा दूर हो सकेगा।