शहर-राज्य

नीतीश सरकार ने किसानों को दी बड़ी राहत–खेती करने के लिए प्रोत्साहित करने के साथ मिलेगा प्रशिक्षण

नीतीश सरकार ने किसानों के लिए बड़ी घोषणा कर उन्हें राहत दी है। पहले से ही जिले में कम मात्रा में ही सही उगाई जाने वाली हल्दी की खेती को अब बढ़ावा देने के लिए पहल की गई है। इस पहल के तहत इस साल 100 एकड़ में हल्दी की खेती की जाएगी। किसानों को बाग-बगीचे में हल्दी की खेती करने के लिए प्रोत्साहित करने के साथ ही उन्हें प्रशिक्षण देने का कार्य पूर्ण कर लिया गया है। कृषि विभाग की इस पहल पर किसानों में भी रुचि देखने को मिल रही है। औषधीय गुण वाले हल्दी का सामान्य तौर पर मसाले के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसके साथ ही सौंदर्य प्रसाधनों के साथ ही बीमारियों, जख्म आदि में भी इसका आयुर्वेदिक इस्तेमाल होता है।

हल्दी की पैदावार पर नहीं पड़ता पेड़ों की छाया फर्क
बाग-बगीचे में भी हल्दी लगाई जा सकती है। पौधों की छाया से हल्दी की पैदावार में कोई कमी नहीं आती है। बगीचे में हल्दी की खेती कर किसान दोहरा लाभ उठा सकते हैं। कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो गर्म व नम जलवायु में हल्दी की पैदावार दूसरी जगहों से अधिक होती है। हालांकि, इसकी खेती के लिए जलनिकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। ज्यादातर फसलों के लिए खुले खेत या जमीन की जरूरत होती है, लेकिन हल्दी की खेती छायादार स्थान पर होती है। इससे बगीचे में लगे फल के साथ ही किसान हल्दी से भी अच्छी खासी आय प्राप्त कर सकते हैं। हल्दी की खेती करने से बगीचे में अन्य खर पतवार भी नहीं उगते हैं।

प्रति एकड़ पांच से छह क्विंटल बीज की जरूरत

एक एकड़ में बुआई के लिए पांच-छह क्विंटल गांठों की आवश्यकता होती है। बुआई के सात-आठ माह बाद पौधों की पत्तियां पीली पड़कर सूखने लगती हैं। पत्तियां सूखने लगे तो पौधों की खुदाई कर गांठों को निकाल लेना चाहिए। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, एक एकड़ में हल्दी की खेती करने पर करीब तीस हजार रुपये की लागत आती है। किसानों को प्रति एकड़ हल्दी की खेती से 90 हजार रुपये तक का लाभ मिल सकता है।

मौसम ने बढ़ाई किसानों की परेशानी
गेहूं की फसल पर मौसम की प्रतिकूलता का खतरा मंडरा रहा है। तेज धूप और बढ़ते तापमान से फसल को नुकसान हो रहा है, जिसके चलते बाली का आकार छोटा रह रहा है और दाने पुष्ट नहीं हो पाएंगे। इससे उत्पादन में कमी और दानों का वजन घटने की आशंका है, जिसने किसानों की चिंता बढ़ा दी है। मेहनत और खर्च के बावजूद प्रकृति का मिजाज फसल के पक्ष में नहीं दिख रहा। 20 दिसंबर के बाद बोई गई फसलों पर इसका असर ज्यादा होगा, और उत्पादन में 25 प्रतिशत तक की गिरावट संभव है। बुआई के समय खेतों की नमी सूखने की समस्या थी और अब फसल पकने के दौर में सूर्य की गर्मी परेशानी का सबब बन रही है।


पछुआ हवा भी पौधों को नुकसान पहुंचा रही है। लागत बढऩे के बाद भी उपज में कमी की आशंका से किसान परेशान हैं। कटाई के समय मौसम का असर साफ दिखेगा, जब दाने पतले और हल्के हो सकते हैं।

कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख डॉ. देवकरण ने बताया कि तेज धूप से गेहूं के दाने असमय पक रहे हैं, बाली छोटी रह रही है, और सूर्य की तपिश में फसल जल्द सूख रही है, जिससे दाने पतले हो जाएंगे। उन्होंने किसानों को सलाह दी कि खेतों में पटवन करें और पोटैशियम क्लोराइड का छिडक़ाव करें ताकि नुकसान को कम किया जा सके। दिसंबर के अंतिम सप्ताह या उसके बाद बोई गई फसलों पर प्रभाव अधिक होगा, जबकि बाली पूरी तरह लग चुके खेतों में प्रति एकड़ एक किलो पोटैशियम क्लोराइड को 100 लीटर पानी में घोलकर छिडक़ाव जरूरी है।

Back to top button