November 16, 2024

प्रकाश भटनागर

राजकुमार कोहली 88 साल के हो चुके हैं। अपने समय का वह फिल्मकार, जिसकी महारत मल्टी स्टारर बनाने में थी। यानी ढेर सारे नायकों को एक साथ एक ही फिल्म में लाना उनका प्रिय शगल था। इसमें कभी वह ‘नागिन’ जरिये बहुत सफल रहे तो कभी ‘जानी दुश्मन, एक अनोखी कहानी’ के रूप में उन्हें भारी असफलता का सामना करना पड़ा। राजनीति पर फिल्में बनती आयी हैं। इसलिए कोहली यदि आज शरीर से सक्षम होते तो संभवत: इस साल का लोकसभा चुनाव उन्हें सियासत पर आधारित एक मल्टीस्टरर मूवी बनाने का मौका दे सकता था।

क्योंकि यह चुनाव कई मायनों में अनोखा रहा। कई तत्व इसके एंटी-क्लाइमेक्स की ओर होने की चुगली कर रहे हैं। अनेक किरदार अपने-अपने मूल स्वरूप के प्रति सस्पेंस कायम रखे हुए हैं। किसी का नाम लेना ठीक नहीं होगा, लेकिन बहुत सारे चेहरे ऐसे भी जो किसी आयटम सीन की जरूरत पूरी करने की तरह से इस संघर्ष में एकाधी बार दिखे और फिर लुप्त हो गये। हास्य अभिनेता समय की मांग हैं और लोकसभा के इस घमासान में अपनी बातों, दलीलों और कारगुजारी से मतदाता को हंसा देने वाले ढेर नेता भी सामने आये। अरविंद केजरीवाल का इस हास्य किरदार पर पेटेंट है। उनके समकक्ष कई और भी नाम अब सामने आने लगे हैं।

सवाल यह कि एंटी क्लाइमेक्स किसके हिस्से आएगा। एन चंद्रबाबू नायडू ने तो लगता है कि प्रधानमंत्री पद की शपथ के लिए कलफदार कुर्ता अभी से तैयार करके रखवा लिया है। चुनाव अभियान के आरम्भ से लेकर अब तक सतत रूप से चीखती-खीझती रहीं ममता बनर्जी भी अब गले को आराम देकर इसी पद की शपथ लेने का रियाज करने में मगन हो गयी होंगी। राहुल गांधी को भाई लोग आगाह कर चुके होंगे कि अब ‘चौकीदार चोर है’ का रट्टा मारना बंद कर दें। वरना कहीं ऐसा न हो कि प्रधानमंत्री की शपथ लेते समय ‘मैं राहुल गांधी’ की जगह ‘मैं चौकीदार चोर’ बोल जाएं। यह भी तय है कि मायावती और अखिलेश यादव एक-दूसरे से छिपाकर इसी शपथ ग्रहण की तैयारियों में जुट गये होंगे। अपने अंधविश्वास के लिए तेलंगाना की जनता की खून-कमाई के करोड़ों रुपए फूंक देने वाले के चंद्रशेखर राव अब तांत्रिकों पर पैसा पानी की तरह बहाकर अपने लिए प्रधानमंत्री पद की जुगाड़ लगवाने में मसरूफ हो गये होंगे। नरेंद्र मोदी इन कल्पनाओं में गोते लगा रहे होंगे कि इस बार शपथ लेने के बाद किस-किस तरह अपने सियासी विरोधियों को समूल ठिकाने लगाना है।

एंटी क्लाइमेक्स से जुड़ी और भी कल्पनाएं दिलचस्प हैं। मसलन, लालू प्रसाद यादव सोते-जागते सपने देख रहे होंगे कि केंद्र में नयी सरकार है और वह हरे-भरे चारे के ढेर पर बैठकर रिमोट कंट्रोल से उसका संचालन कर रहे हैं। प्रियंका वाड्रा के तसव्वुर में वह दिन होगा, जब केंद्र में उनके हिसाब का शासन हो और उनके पति रॉबर्ट वाड्रा एक बार फिर जांच एजेंसियों की आंच से कोसों दूर चैन की बंसी बजाते हुए दिख जाएं। मुलायम सिंह यादव को उस पल का अरमान होगा, जब बेटा अखिलेश ‘पापा! बुआ ने फिर चोट कर दी!’ वाली शिकायत लेकर उनके सामने रोयेगा और वे उस पर जमकर भड़ास निकाल सकें। उमर अब्दुल्ला को कश्मीर में फिर प्रधानमंत्री पद का अस्तित्व दिखने लगा होगा और एमके स्टालिन अभी से तमिलनाडु की ओ पन्नीरसेल्वम सरकार की बर्खास्तगी तथा वहां के मुख्यमंत्री के तौर पर अपनी ताजपोशी के मंसूबे बांधने लगे होंगे। कन्हैया कुमार तो अब तक शायद देश के हर घर में अफजल गुरू की प्रतिमा लगवाने एवं देश में इस्लामिक स्टेट का मुख्यालय खोलने हेतु संसद भवन के आवंटन का आदेश पत्र भी तैयार करवा चुके होंगे। हार्दिक पटेल ने तय कर लिया होगा कि ‘अपने जैसी’ सरकार बनते ही संविधान संशोधन करवाएंगे। ताकि आपराधिक तत्वों के चुनाव लड़ने पर लगी रोक हटवाई जा सके।

वाकई इस चुनाव के कई पात्रों ने खुद को लेकर अब तक सस्पेंस कायम रखा है। ढेर सारे नाम हैं। और यह सब मुख्यत: उस कुनबे की ओर से हैं जो चुनाव पूरा होने के बाद तक भी पूरी तरह आकार नहीं ले सका है। जी हां, बात विपक्षी महागठबंधन की हो रही है। नतीजा आने दीजिए। इसके चेहरे ऐसे-ऐसे रंग बदलेंगे कि गिरगिट की तमाम प्रजातियां अपने विशेष पहचान छिनने की आशंका से ग्रस्त होती दिखेंगी। ऐसा तब भी होगा, जबकि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिल जाए और तब भी, जबकि ऐसा न हो। राजग को बहुमत मिला तो महागठबंधन के नाम पर दर्शायी गयी अधिकांश निष्ठा रेत के महल की तरह भरभराकर उस महासागर में मिल जाने को आतुर दिखेगी, जिसे राजग कहते हैं। इस एनडीए को बहुमत नहीं मिला, तब भी निष्ठा थाली के बैंगन की तरह इधर से उधर होगी ही। क्योंकि ऐसा होने की सूरत में एक-दो नहीं, प्रधानमंत्री पद के कम से कम एक दर्जन दावेदार सामने आ जाएंगे। हर किसी की कोशिश होगी कि बाकी सारे दल उसके साथ आ जाएं। राजनीति में यह स्थिति उनके लिए बहुत मुफीद होती है, को अनुकूल हालात की जमीन पर कुकुरमुत्ते की तरह उग आते हैं। इस बात पर यकीन नहीं हो तो पीवी नरसिंहराव और झारखण्ड मुक्ति मोर्चा वाला ‘सियासी कौन बनेगा करोड़पति’ याद कर लीजिए। आप समझ जाएंगे कि हमारा इशारा किस ओर है।

अब कोई हारे और कोई जीते, हमें तो संतोष इसी बात का कि इस चुनाव में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन राजनीतिक बलात्कार का कम से कम बार शिकार हुई। भला हो वीवीपैट का, जिसमें दिखते चुनाव चिन्ह ने उन नेताओं को आईना दिखा दिया, जो अब तक इस मशीन में गड़बड़ी होने की बात करते चले आ रहे थे। आने वाली तेईस तारीख की दोपहर से समझ आने लगेगा कि इस महामूवी के दर्शकों ने किस कलाकार या मंडली को सर्वाधिक पसंद किया है। हार का दंश यकीनन गहरा होता है। फिर भी इसका शिकार बनने वालों को हम यही सलाह दे सकते हैं कि वे न तो ईवीएम पर इसका दोष मढ़ने की मूर्खता सार्वजनिक करें और न ही इसे आने वाले पांच साल के लिए अपने विधवा प्रलाप का जरिया बना लें। जो जीतेंगे, उनसे भी यही अपेक्षा है कि चुनावी कड़वाहट भूलकर इस बात को ध्यान में रख लें कि जनता ने उन्हें देश चलाने के लिए जनादेश दिया है, मनमानी करने के लिए नहीं।
राजकुमार कोहली ने ‘नागिन’ सहित ‘जानी दुश्मन’ ‘औलाद के दुश्मन’ ‘जीने नहीं दूंगा’ ‘साजिश’ ‘बीस साल बाद’ ‘इंसानियत के दुश्मन’ ‘बदले की आग’ तथा ‘राजतिलक’ शीर्षक वाली फिल्में मुख्य रूप से बनायी हैं। राजनीति के इस भयावह दौर में कई जहरीली ‘नागिन’ ‘बदले की आग’ में जलती हुई दिख रही हैं तो कल के कई ‘जानी दुश्मन’ भी सियासी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए एक-दूसरे से गले मिलते दिख गये। राजनीतिक अदावत का स्तर ‘जीने नहीं दूंगा’ तक तो काफी पहले ही पहुंच गया था, अब यह लक्ष्य पूरा करने के लिए कई नेता ‘इंसानियत का दुश्मन’ कहलाये जाने से भी गुरेज नहीं कर रहे हैं। ‘साजिश’ रचने में वह खुद की ‘औलाद के दुश्मन’ बनने में भी पीछे नहीं हट रहे। सबका एक ही लक्ष्य है कि भले ही ‘बीस साल बाद’ लेकिन अब जाकर अब ‘राजतिलक’ की कामना पूरी हो जाए। इस वयस में कोहली तो कोई फिल्म बनाने से रहे, तो यही देखने वाली बात होगी कि तमाम राजनीतिक दल मिलकर ऊपर बतायी गयी किसी फिल्म का ही सिक्वल बनाएंगे या मामला इससे भी अधिक बुरा होता दिखेगा। वैसे, एक बात बता दें। कोहली ने सन 1973 में एक फिल्म ‘कहानी हम सबकी’ भी बनायी थी। तमाम राजनीतिक दलों की कहानी जब एक जैसी ही दिख रही है तो ‘कहानी हम सबकी’ के तौर पर ही घोरतम अविश्वसनीय एंटी क्लाइमेक्स भी सामने आ जाने पर किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

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