राग रतलामी/ सीएए के चक्कर में प्रशासन हुआ घनचक्कर, विरोध करने वालों पर बीस दिन बाद मुकदमें,लेकिन वास्तविक आयोजकों को छोडा
– तुषार कोठारी
रतलाम। सीएए के चक्कर में सरकारी महकमें घनचक्कर बन गए हैं। साहब लोग उलझनों में उलझते जा रहे हैं। पहले उन्होने सीएए के समर्थन वालों पर मुकदमे दर्ज किए,लेकिन बाद में जब दबाव बढा तो कई दिन पहले सीएए की खिलाफत में सड़क पर आए गोल टोपी वालों पर भी मुकदमें दर्ज कर लिए। लेकिन इसमें भी लफडा हो गया। खिलाफत करने वाले खास लोगों को तो छोड दिया गया और ऐसे गुमनाम लोगों पर मामले दर्ज कर लिए गए जिन्हे कोई जानता तक नहीं। लोग सवाल पूछ रहे है कि जिन्होने खिलाफत का आव्हान किया और जिनके घर में धरने हुए उन्हे क्यों छोड दिया गया।
वैसे तो रतलामी बाशिन्दे बवालों से दूर रहते है,लेकिन जब पूरे मुल्क में सीएए को लेकर बवाल होने लगे तो रतलाम में भी गोल टोपी वाले गोलबन्द होने लगे। उन्होने सरकारी महकमों से जुलूस की इजाजत मांगी। जब इजाजत नहीं मिली तो उन्होने अपने ही हाउस में धरना और सत्याग्रह शुरु कर दिया। इधर सत्याग्रह शुरु हुआ और उधर सरकारी महकमों की सांसे फूलने लगी। उन्हे मालूम था कि सूबे में पंजा पार्टी की सरकार है और इस सरकार में सत्याग्रह करने वालों की जबर्दस्त पकड़ है। इसी घबराहट में सरकारी अफसरान सीधे सत्याग्रह करने वालों के पास पंहुचे और उन्हे उन्ही के मोहल्ले में एक छोटा जुलूस निकालकर ज्ञापन दे देने का आइडिया दे मारा। बात तय हो गई। जुमे की नमाज के बाद तमाम सत्याग्रही एकत्रित हुए,एक छोटा सा जुलूस निकाला,थोडी नारेबाजी हुई और सरकारी अफसर वहीं ज्ञापन लेने पंहुच गए। हांलाकि इसके लिए भी प्रशासन ने तगडी तैयारी की थी। बडी तादाद में वर्दी वाले तैनात किए गए थे। बहरहाल सबकुछ शांति से निपट गया और प्रशासन ने चैन की सांस ली।
लेकिन ये सब कुछ देखकर सीएए का समर्थन करने वाले तैयार होने लगे। उनका कहना था कि जब विरोध करने वालों को इजाजत दे दी गई है,तो समर्थन करने वालों को भी मिलनी चाहिए। सोशल मीडीया पर जोरदार तैयारियां होने लगी। जबर्दस्त भीड इकट्ठी होने का अंदाजा लगने लगा। सरकारी कारिन्दों को चिन्ता हुई तो उन्होने फूल छाप के नेताओं को बुलाकर बातचीत की। लेकिन तमाम नेताओं ने साफ बता दिया कि आयोजक वे नहीं है,वे तो सिर्फ इसमें शामिल होने वाले है। आखिरकार बिना इजाजत के रैली निकली। हजारों लोग मौन जुलूस में तिरंगे लेकर शहरभर में घूमे। राष्ट्रगान गाया और समर्थन करके चले गए। सभी को पता था कि रैली निकालने वालों के खिलाफ अब कुछ ना कुछ किया जाएगा। हुआ भी ऐसा ही,वर्दी वालों ने तीन दर्जन नेताओं के खिलाफ मामले दर्ज कर लिए।
समस्या यहीं से शुरु हुई। जैसे ही इधर मामले दर्ज हुए,लोगों ने पूछना शुरु कर दिया कि समर्थन करने वालों पर जब मामले दर्ज हुए तो विरोध करने वालों क्यों छोड दिया गया। अफसरों को अपनी गलती महसूस हुई। टोपी वालों के विरोध प्रदर्शन को करीब बीस दिन गुजर चुके थे,लेकिन प्रशासन को लीपा पोती तो करना ही थी। बीस दिन पहले हुए विरोध के मामले में भी मुकदमें दर्ज करने की तैयारी होने लगी। लोगों को उम्मीद थी कि जिन्होने विरोध प्रदर्शन की योजना बनाई थी,उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज होंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। प्रशासन ने अपनी बला तो टाली ,लेकिन कुछ अलग ढंग से। विरोध प्रदर्शन करने वाले छ: लोगों के खिलाफ मुकदमे दर्ज कर लिए गए। लेकिन अफसर फिर भी गच्चा खा गए। जिन छ: लोगों पर मामले दर्ज हुए उन्हे कोई जानता तक नहीं और जिन्होने विरोध प्रदर्शन की पूरी रुपरेखा बनाई थी,उन सभी को छोड दिया गया। लोग कह रहे है कि आयोजकों में से कई सारे लोग तो पंजा पार्टी के बडे नेता है। इसीलिए मुकदमें दर्ज करने के मामले में प्रशासन ने अलग रवैया अपनाया। अब यही सवाल पूछा जा रहा है कि प्रशासन दोहरा रवैया क्यो अपना रहा है। समर्थन करने वाले नेता खुद कह रहे थे कि वे आयोजक नहीं है,लेकिन फिर भी उनपर मुकदमें लाद दिए गए,लेकिन विरोध करने वाले आयोजकों ने तो बाकायदा प्रेस नोट निकालकर बताया था कि वे विरोध प्रदर्शन करने वाले है,लेकिन उन्हे छोड दिया गया। जिले की बडी मैडम जी और वर्दी वालों के साहब दोनो ही के पास इन सवालों के कोई जवाब नहीं है।
कुत्तों का करार
डाक्टर मैडम की रवानगी के बाद शहर सरकार की बागडोर अब जिले की बडी मैडम के हाथों में है। पूरा शहर श्वानों से परेशान है। जिधर जाईए,कुत्तों के झुण्ड घूम रहे है और न जाने कितने लोग इनके चक्कर में इंजेक्शन लगवाते फिर रहे है। बडी मैडम ने पहले ही झटके में श्वानों की समस्या हल करने की योजना बना डाली। अब इन कुत्तों का बधिया करण किया जाएगा। इसके लिए बाकायदा टेण्डर निकाला जा रहा है। ये देखने वाली बात होगी कि कुत्तों का यह करार सही ढंग से लागू हो सकेगा या नहीं। क्योंकि कुत्तों की गिनती कौन करेगा,ये अब तक साफ नहीं हुआ है?