राग रतलामी/ भोपाल के भूचाल से रतलामी नेताओं में मायूसी
-तुषार कोठारी
रतलाम। सूबे की सरकार में चल रहे भूचाल से रतलाम की पंजा पार्टी में भारी मायूसी छाई हुई है। हांलाकि रतलामी नेताओं का सीधे सीधे इससे कोई वास्ता नहीं है,लेकिन वहां के भूचाल का असर यहां भी साफ देखा जा सकता है। पंजा पार्टी के कई सारे नेताओं ने कई सारे अरमान सजा रखे थे,लेकिन भोपाल की उठापटक के चलते उनके अरमानों पर एक तरह से ग्रहण लग गया है।
पन्द्रह सालों बाद जब सूबे में पंजा पार्टी की सरकार आई थी,तो रतलाम की पंजा पार्टी ने शहर और ग्रामीण में हुई हार का गम भूला दिया था। जिले की पांच में से तीन सीटें हारने के गम से सूबे में सरकार बनने की खुशी काफी बडी थी। इस खुशी के पीछे वजह भी दमदार थी। नेताओं को लगा था कि अब सरकार बन गई है,तो सरकारी मलाई में उन्हे भी हिस्सेदारी मिलेगी। कोई विकास प्राधिकरण का सपना सजा रहा था,तो कोई सहकारी बैंक पर नजरें गडाए हुए था। तमाम सरकारी कमेटियों और सरकारी महकमों में जगह मिलने की उम्मीदें जवां हो चुकी थी।
लेकिन सरकार बनने के बाद एक साल से ज्यादा वक्त गुजर गया। सरकार के राजधानी वाले झगडे ही खत्म नहीं हुए। उपर से सरकार पर ही खतरा मण्डराने लगा। अब शहर के तमाम नेता मायूस नजर आने लगे है। अफसरशाही पर उनका कोई असर भी नहीं बन पाया है।
चुनाव के बाद पंजा पार्टी वालों को उम्मीद थी कि सबसे पहले तो पार्टी में बदलाव होगा और कई सारे नेताओं को पद मिलेंगे। लेकिन भोपाल का मामला ही नहीं निपट पाया,तो नीचे बदलाव कैसे होता? पार्टी के अलावा भी सरकार के पास कई सारे पद होते है,जिन पर नेताओं को बैठाया जाता है। लेकिन साल भर से इस पर कोई ध्यान ही नहीं दे रहा है।
ले देकर अब तक सरकारी वकीलों की नियुक्तियां हो पाई है और इसके अलावा कालेजों की जनभागीदारी समितियां बनी है।
सरकार इससे आगे बढी ही नहीं। नेता अपने अपने आकाओं के जरिये जोर आजमाईश कर रहे थे कि कहीं ना कहीं सैट हो जाए। लेकिन भोपाल में आए भूचाल ने तमाम मामलों को फिलहाल ठण्डे बस्ते में डाल दिया है। लोकल नेताओं के दिलों की धडकनें भी तेज हो रही है। पता नहीं कब क्या होगा? हांलाकि वे जानते है कि अभी हो रही उठापटक राज्यसभा चुनाव को लेकर हो रही है। लेकिन राजनीति का कोई भरोसा नहीं,कब क्या हो जाए?
फिलहाल नेताओं के हक के पदों पर सरकारी कारिन्दों का कब्जा है। सरकार डांवाडोल हो रही है। पता नहीं कब सरकार स्थिर होगी और पता नहीं कब जिले के नेताओं को उनका हक मिल पाएगा? यही वजह है कि पंजा पार्टी के तमाम नेता आजकल मायूस नजर आ रहे हैं।
ठेकों की हाईटेक नीलामी
प्रदेश में पहली बार आबकारी ठेकों की हाईटेक तरीके से नीलामी हो रही है। कोई जमाना था,जब नीलामी की जोर शोर से तैयारियां होती थी और बडे बडे ठेकेदार लाव लश्कर के साथ नीलामी में पंहुचा करते थे। लेकिन अब सबकुछ इन्टरनेट से हो रहा है। नीलामी आनलाईन चल रही है। सरकार रतलाम जिले से ही दो सौ करोड से ज्यादा कमाई करने वाली है। पूरे जिले का एक ही ठेका है,इसलिए शहर के कई सारे पुराने व्यवसायी दौड से बाहर हो गए है इसलिए वो बाहर के बडे कारोबारियों के साथ मिल कर धन्धे की जुगत लगा रहे है। सरकार ने कठिन नियम बनाए है। बोली बढाने के लिए भी कम से कम चालीस लाख रु. बढाना जरुरी है। आनलाईन बोली में इसका भी पता नहीं चलता कि इसमें शामिल कौन कौन है? बहरहाल, करीब एक सप्ताह के बाद ये साफ होगा कि किसकी बोली सबसे उंची रही और जिले के धन्धे पर किसका कब्जा रहेगा। इस सारी कवायद में सबसे ज्यादा खुश मदिरा महकमे वाले हैं,क्योंकि आनलाइन व्यवस्था के कारण उन्हे कोई मशक्कत नहीं करना पड रही है।