November 26, 2024

राजयोतिषी पं. बाबूलाल जोशी का निधन,अंतिम संस्कार आज

रतलाम,25 मार्च (इ खबरटुडे)। राजयोतिषी पं. बाबूलाल जोशी का लम्बी बीमारी के बाद babulal joshiमंगलवार सवेरे बड़ौदा के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया, जिनकी अंतिम यात्रा बुधवार दोपहर तीन बजे मेहताजी का वास स्थित उनके निवास से निकलेगी। पं.जोशी का अंतिम संस्कार त्रिवेणी मुक्तिधाम पर किया जाएगा।

श्री जोशी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक रहे तथा विभिन्न सामाजिक संस्थाओं से जुड़े रहे। आपने रतलाम स्थापना महोत्सव समिति, रतलाम रियासत के पूर्व दिवान श्यामजी कृष्ण वर्मा संस्थान की स्थापना की। राष्ट्रीय योतिष परिषद, कालगणना परिषद सहित कई संस्थाओं की स्थापना की तथा राष्ट्रीय स्तर की कई संस्थाओं से जुड़े रहे। 70 वर्षीय पं. जोशी आपातकाल के दौरान मीसा में भी बंद रहे थे।

राज योतिषी पं. बाबूलाल जोशी का अवसान… एक संस्थान का अंत

अपनी कालगणना से हमेशा लोगों के दु:ख दर्द का निवारण कर उावल भविष्य की मंगल कामना करने वाले राज योतिषी पं. बाबूलाल जोशी आज स्वयं काल के हम सफर हो गए। पं. बाबूलाल जोशी न केवल एक योतिषी के रुप में विख्यात थे, बल्कि रतलाम की कई सामाजिक संस्थाओं से उनका जीवन्त जुड़ाव था। कई संस्थाओं के तो वे स्वयं जन्मदाता थे औ्र कई संस्थाओं में उनकी सक्रिय भागीदारी थी। वैसे तो मेरा उनसे परिचय विगत 15-20 वर्षों से है लेकिन महाराजा रतनसिंह स्मृति संस्थान के गठन और महाराजा रतनसिंहजी की प्रतिमा स्थापना के समय कुछ यादा ही आत्मीय लगाव हो गया था और उसी समय उनको नजीदीक से जानने का मौका मिला था। पं. बाबूलाल जोशी उस पीढ़ी को प्रतिनिधित्व करते थे जो अपने सिध्दांतों एवं कर्म के प्रति पूर्ण समर्पण के लिए जाने जाते है, जिसका एक अनुभव मुझे गत वर्ष चक्रवती सम्राट महाराज श्री भोज के रायारोहण के 1 हजार वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर धार में आयोजित सहस्राब्दि समारोह के अवसर पर हुआ। धार में भोज के नाम कोई कार्यक्रम आयोजित करना एक टेढ़ी खीर ही साबित होता है। मेरे समस्त प्रयासों के उपरांत भी कार्यक्रम आयोजित करने की दिशा में कोई राह नजर नहीं आ रही थी। एक दिन बात ही बात में मैंने श्री जोशी के सामने समस्या रखी, जोशीजी उस समय तक कुछ नहीं बोले लेकिन दूसरे दिन उन्होंने अपनी स्वीकृति प्रदान की और भीड़ गए कार्यक्रम की सफलता हेतु। इस दौरान हमें कई स्थानों की लम्बी-लम्बी यात्राएं की।  उन्हें सबसे अधिक कठिनाई सीढ़ियां चढ़नें मे आती थी,लेकिन कभी भी वे निरूत्साहित नहीं हुए। कई बार तो उन्हें कुर्सी बैठाकर उपरी मंजिल पर पहुंचाया जाता था। देखने वाले भी उनकी इस जिजीविषा को देखकर दांतो तले उंगली दबा लेते थे। वे इस बात को बड़े ही प्रहसन में लेते थे कि मुझे आज भी राजा-महाराजा के समान पालकी में बैठने का अवसर मिल रहा है। समारोह आयोजित करने की दिशा में सबकुछ ठीक चल रहा था लेकिन परमात्मा को तो उनकी कर्मठा की और परीक्षा लेनी थी। ऐन कार्यक्रम के एक दिन पहले उनकी धर्मपत्नी का देहान्त हो गया और दूसरे दिन सहस्राब्दि समारोह के अंतर्गत वास्तु, योतिष पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजन होना, जिसका सम्पूर्ण दायित्व उन पर ही था।  हमारे सामने एक विकट समस्या थी कि श्री जोशी का विकल्प क्या हो? देखते हैं कि दूसरे दिन ठीक कार्यक्रम के पूर्व पं. बाबूलाल जोशी अपनी सम्पूर्ण ऊर्जा को समेटे हुए कार्यक्रम में उपस्थित थे। सम्पूर्ण कार्यक्रम का संचालन उनके द्वारा हुआ लेकिन किसी को अहसास भी नहीं होने दिया कि वे किस मानसिक संत्रास से गुजर रहे है। जब समापन पर मेरे द्वारा द्वारा इस बात की सूचना दी गई तो सभी हक्के-बक्के से रह गए थे। ऐसे जीवट और जुझारू व्यक्तित्व के धनी थे पं. बाबूलाल जोशी। उनके मन में रतलाम राज परिवार को लेकर गहरी आस्था थी। यही कारण था कि आजादी के 60 वर्ष के उपरांत भी अपने नाम के आगे राजयोतिषी की पदवी लगाने में उन्हें बड़ा ही गौरव का अनुभव होता था।

पं. बाबूलाल जोशी उन गिने चुने लोगों में से एक थे जिन्होंने रतलाम का गौरव बढ़ाने में अपना अमूल्य योगदान प्रदान किया है। उनके द्वारा क्रांतिकारियों के गुरू से रुप में विश्व विख्यात, रतलाम राय के पूर्व दिवान  पं. श्यामजी कृष्ण वर्मा की स्मृति में प.श्यामजी कृष्ण वर्मा सृजन पीठ न्यास की रतलाम में स्थापना करना और प्रतिवर्ष जयंती, बलिदान दिवस समारोह आयोजित कर स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों और लोकतंत्र रक्षकों का सम्मान करना इसी बात की पुष्टि करता है। रतलाम को हमेशा अपने जेहन में जिंदा रखने वाले पं. बाबूलाल जोशी एक ऐसी अनंत यात्रा की ओर प्रस्थान कर गए जहां से लौटना अब नाममुकिन है। पं. बाबूलाल जोशी के रुप में हमने केवल एक व्यक्ति नहीं खोया है बल्कि एक संस्थान का अंत हो गया है, जिनके स्नेहमयी सानिध्य में कई संस्थाएं फलती-फूलती थी। एक ऐसा जुझारू व्यक्ति को खो दिया जो अपनी लाख शारीरिक कठिनाईयों के बावजूद भी हार मानना नहीं जानता था। परमपिता परमेश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें और अपने श्रीचरणों में स्थान प्रदान करें।

 

नरेन्द्रसिंह पंवार,रतलाम

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