November 24, 2024

अपराधियों को रोकने में नाकाम पुलिस का जनता पर कहर

रात 11 बजे लगता है अघोषित कफ्र्यू, दुकानदारों और नागरिकों की पिटाई
रतलाम,14 जून(इ खबर टुडे)। चोरों और अपराधियों पर अंकुश लगा पाने में पूरी तरह असफल रही पुलिस ने अब जनता को आतंकित कर अपनी उपस्थिति का एहसास जताने की शुरुआत कर दी है। बदमाशों पर लगाम कस पाने में असफल पुलिस कप्तान जीके पाठक द्वारा रात ग्यारह बजे शहर में अघोषित कफ्र्यू लगा दिया जाता है। दुकानदारों और यात्रियों को बेवजह पीटा जाता है। सारी कवायद का एकमात्र मकसद पुलिस की अकर्मण्यता को छुपाना है। शहर की मुख्य सड़कों पर जनता पर कहर ढाते पुलिसिए और दूरस्थ ईलाकों में सक्रीय अपराधी,यह शहर की वर्तमान तस्वीर है।

नवागत पुलिस अधीक्षक जीके पाठक के आने से पहले ही शहर में चैन लूटेरों के कई गैंग सक्रीय थे। चैन लुटेरों को धर दबोचने के लिे जुटी पुलिस को अपराधियों से नई चुनौती तब मिली ,जब दूर दराज की कालोनियों में ताले टूटने की वारदातें होने लगी। दोनो ही प्रकार के अपराध पुलिस के लिए बेहद शर्मनाक है। रतलाम का कार्यभार सम्हालने के फौरन बाद एसपी श्री पाठक ने थानों के चीता फोर्स को नए सिरे से गठित कर शुरुआती दौर में यह प्रदर्शन किया था कि शायद अब पुलिस अधिक सतर्क और सक्रीय हो जाएगी। नागरिकों को लगा था कि शायद जल्दी ही अपराधी पकडे जाएंगे और चैन लूट या चोरी की वारदातें रुक जाएगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। न चैन लूट में कमी आई और ना ही चोरी की वारदातों में। अपनी इस असफलता को छुपाने के लिए श्री पाठक ने इधर उधर की जोडतोड करके कुछ अपराधियों को पकडा और प्रेस कान्फ्रेन्स आयोजित कर दावा कर दिया कि चैन लूटेरों की गैंग पकड ली गई है। लेकिन पुलिस की पोल जल्दी ही खुल गई। इस कथित गैंग की गिरफ्तारी के फैरन बाद ही शहर में फिर से चैन लूट की वारदातें होने लगी।
शायद इसी असफलता का खामियाजा अब शहर के बाशिन्दों को भुगतना पड रहा है। चोरों और अपराधियों पर अंकुश लगाने में नाकाम एसपी श्री पाठक ने शहर में रात ग्यारह बजे से अघोषित कफ्र्यू लगाने की शुरुआत कर दी है। रात पौने ग्यारह बजे से पुलिस की गाडियां साइरन बजाते हुए घूमने लगती है। दो दो दर्जन हथियारबन्द पुलिस कर्मी साइरन बजाते हुए वाहनो पर जब स्टेशन रोड और दो बत्ती जैसे प्रमुख ईलाकों से गुजरते है तो आम नागरिकों के मन में भय उत्पन्न होना स्वाभाविक है। ऐसा लगता है जैसे शहर में कहीं दंगा हो गया हो और कानून व्यवस्था की स्थिति पुलिस के हाथ से निकल चुकी हो। राज रात को पुलिस का यह फ्लैग मार्च न्यूरोड,दो बत्ती और स्टेशन रोड जैसे प्रमुख ईलाकों में होता है। पुलिसकर्मियों का यह दल सिर्फ साइरन बजाकर ही नागरिकों को आंतङ्क्षकत नहीं करता बल्कि चाय और पान की दुकानों पर आए लोगों को यह भी महसूस कराता है कि वे अपराधी है। पुलिसकर्मी अश्लील गालियों से भरी अभद्र भाषा में न सिर्फ दुकानदार को धमकाते है बल्कि दुकान पर मौजूद आम नागरिकों को भी नहीं बख्शते। दुकानदारों की पिटाई भी इनके लिए सामान्य बात है।
पुलिस की यह अत्याचार स्टेशन क्षेत्र में पंहुचते पंहुचते अमानवीयता की हद तक पंहुच जाता है। किसी भी शहर में रेलवे स्टेशन और बसस्टैण्ड के आसपास की दुकाने देर रात या पूरी रात तक चलती है। क्योकि बाहर से आने जाने वाले यात्रियों को भोजन पानी इत्यादि की आवश्यकता होती है। लेकिन रतलाम एस पी श्री पाठक ने स्टेशन और बस स्टैण्ड दुकानों को भी अपने अघोषित कफ्र्यू के दायरे में ले रखा है।
गुरुवार रात को स्टेशन क्षेत्र की दुकानों पर आतंक का खौफनाक नजारा था। रात करीब सवा ग्यारह बजे इस संवाददाता ने अपनी आंखों से इस पुलिसिया आतंक को देखा। करीब दो दर्जन हथियारबन्द पुलिसकर्मी साइरन बजाते अलग अलग वाहनों पर स्टेशन रोड पंहुचे। स्टेशन क्षेत्र के भोजनालयों में बडी संख्या में लोग भोजन कर रहे थे। इसी तरह चाय की दुकानों और पान की गुमटियों पर भी कुछ लोग मौजूद थे। वहां पंहुचे पुलिसकर्मियों ने होटलों में भोजन करते लोगों को भी नहीं छोडा। उन्होने होटल संचालकों में से कई को पीटा और भोजन करते नागरिकों को उठा दिया। देखते ही देखते पूरे स्टेशन क्षेत्र में घबराहट और डर का अंधकार छा गया।
सामान्य बुध्दि का व्यक्ति भी जानता है कि रतलाम जैसे बडे रेलवे जंक्शन पर पूरी रात ट्रेनों और बसों का आवागमन होता है। इससे बडी संख्या में बाहर से आने वाले यात्री रतलाम पंहुचते है। शहर में देर रात को आए व्यक्ति को भूख प्यास सता सकती है। लेकिन अपनी असफलता छुपाने में जुटी पुलिस को इससे कोई मतलब नहीं। पुलिस को तो इस बात से भी कोई मतलब नहीं कि जिला चिकित्सालय में भर्ती किसी मरीज को देर रात को पानी या दूध चाय आदि की जरुरत पड सकती है। आज स्थिति यह हो गई है कि देर रात को कोई व्यक्ति इस शहर में एक प्याला चाय तक हासिल नहीं कर सकता।
शहर की कानून व्यवस्था के हालात यदि इसी तरह के बने रहे तो यह तय है कि इसका असर सीधे सीधे जनप्रतिनिधियों पर पडेगा। इसका खामियाजा और कोई भुगते न भुगते,सत्तारुढ पार्टी के नेताओं को जरुर इसका खामियाजा भुगतना पडेगा। चुनाव नजदीक है,ऐसे में पुलिस प्रशासन के कुकृत्यों की कीमत सरकार को ही चुकाना पडती है।

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