अखंड भारत के नारों से गूंजा कलेक्टोरेट
कश्मीर पर सरकारी वार्ताकारों की रिपोर्ट के खिलाफ हिन्दू जागरण मंच का धरना
रतलाम,7 जुलाई (इ खबरटुडे)। जम्मू-कश्मीर के विषय पर भारत सरकार द्वारा गठित वार्ताकारों के दल ने अपने प्रतिवेदन में जो संस्तुतिया की है, उसके विरोधमें हिंदू जागरण मंच द्वारा शनिवार को स्थानीय कोर्ट चौराहे पर धरना-प्रदर्शन किया गया।प्रदर्शन में विभिन्न हिन्दू संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ ही बड़ी संख्या में आमजन भी मौजूद थे। धरना-प्रदर्शन के बाद राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपा गया।
हिन्दू जागरणमंच द्वारा आयोजित धरना-प्रदर्शन को कई वक्ताओं ने संबोधित किया। उन्होने अपने संबोधन में बताया कि सरकारी वार्ताकारों ने प्रतिवेदन में जो संस्तुतियां की है, उनमें से अनेक राष्ट्रीय भावना के विरुध्द, संवैधानिक सर्वोच्चता को नकारने वाली, देशकी संप्रभुता को कमजोर करने वाली एंव राष्ट्रपति के सर्वाधिकार को सिमित करने वाली है। वक्ताओ ने बताया कि 26 अक्टूबर 1946 को जम्मू कश्मीर के तत्कालीन महाराजा हरिसिंह ने अपने राय का वैधानिक रीति से भारत में विलय किया था। तब से यह राय भारत का अभिन्न अंग है। विलय के प्रावधानों के अनुसार इस विलय को भविष्य में कभी भी निरस्त नहीं किया जा सकता है। राय के किसी भी हिस्से को भारत से अलग करने , उसे स्वतंत्र करने की मांग करने अथवा भारतीय संविधान के अधिकार क्षेत्र से मुक्त किए जाने जैसी मांगे अथवा उसका अनुमोदन राष्ट्रद्रोह के समान है। जम्मू कश्मीर की रक्षा के लिए भारत ने तीन प्रत्यक्ष युध्द तथा कारगिल में सीमित युध्द लड़ा है।1988 से आतंकवाद के नाम पर अघोषित युध्द जारी है। 6 हजार से अधिक सैनिकों ने बलिदान दिया है। वक्ताओं ने कहा कि भारत सरकार द्वारा जम्मू कश्ंमीर पर गठित वार्ताकारों के दल ने अपने प्रतिवेदन में जो सुझाव दिएहै, उनमें से अनेक राष्ट्रीय भावना के विपरीत होकर संवैधानिक सर्वोच्चता को नकारने वाले, देश की संप्रभुता को कमजोर करने वाले तथा राष्ट्रपति के सर्वाधिकार को सीमित करने वाले है। धरना प्रदर्शन को अधिवक्ता परिषद के प्रकाशराव पंवार,डा.रत्नदीप निगम, सामाजिक कार्यकर्ता कमल जैन,विनय मोघे,जुझारसिंह सोलंकी,सतीश शर्मा एवं पत्रकार तुषार कोठारी ने संबोधित किया। संचालन नीरज सक्सेना ने किया।
धरना प्रदर्शन को अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद, भारतीय किसान संघ, विश्व हिन्दू परिषद, भारतीय मजदूर संघ, भारतीय जनता पार्टी, भारत विकास परिषद, विद्याभारती, ग्राम भआरती, क्रीडा भारती, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, सेवा भारती, ग्राहक पंचायत सहित समस्त राष्ट्रवादी संगठनों ने समर्थन दिया।
ज्ञापन देकर की मांग
धरना-प्रदर्शन के बाद सभी नारेबाजी करते हुए कलेक्टोरेट पहुंचे। जहां राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपा गया। ज्ञापन में मांग की गई है कि वार्ताकारों के सुझावों को तत्काल प्रभाव से निरस्त किया जाए। गृह मंत्रालय को इसे अपनी अधिकारिक वेबसाइडट से हटाने के र्निदेश जारी किए जाए। वार्ताकारों के समूह के सदस्यों ने किन परिस्थितयों और दबावों में यह राष्ट्र विरोधी प्रतिवेदन तैयार किया है, इसकी सक्षम संस्था द्वारा जांच कराई जाए। साथ ही वार्ताकार दल के सदस्यों के देशविरोधी शक्तियों के साथ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष संबधो की जांच कर सिध्द होने पर कार्रवाई की जाए।
क्या है वार्ताकारों के सुझावों में
-सन 1952 के समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद राय में लागू हुए भारतीय संविधान के अनुच्छेदों और सब कैन्द्रीय अधिनियमों की समीक्षा के लिए संविधानिक समिति बनाई जाए। यह समिति सुझावों के आधार पर समीक्षा करें।
-जम्मू और कश्मीर के दोहरे चरित्र को ध्यान में रखना होगा अर्थात यह भारत संघ की एक घटक इकाई है और इसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 में उल्लिखित उक्त संघ में विशेष दर्जा प्राप्त है। राय के लोग भी राय और भारत दोनों के नागरिक है।
-कैन्द्रीय अधिनियमों और भारत के संविधान के अनुच्छेदों ने जो राय पर संशोधन सहित या संशोधन के बिना लागू किए है, उसने जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति पर प्रतिकू ल प्रभाव डाला है।
-अगला कदम राष्ट्रपति को उठाना होगा जो संविधान के अनुच्छेद 370 के खण्ड 1 और 3 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का इस्तेमाल करके संविधानिक समिति की सिफारिशों का समावेश करते हुए एक आदेश जारी करके किया जाएगा। इस क्रियाविधि के पुरा होने पर अनुच्छेद 370 के खण्ड 1 और 3 क्रियाशील नहीं रहेगें और इसके बाद अंतिम आदेशकी तारीख से उक्त खण्डों के अधीन राष्ट्रपति के द्वारा कोई भी आदेश जारी नहीं किया जाएगा।
-वार्ताकारों की सिफारिश है कि पिछले कई दशकों से धारा 370 का असर कम करने के लिए जो कदम उठाए गए है उन्हे निरस्त करना चाहिए।
-रायपाल और मुख्यमंत्री के लिए उर्दू में उपयुक्त शब्दों को तय किया जाना चाहिए।
-संसद राय के लिए तब तक कोई कानुन नहीं बनाएगी, जब तक इसका सबंध देश की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा से और इसके महत्वपूर्ण आर्थिक हित विशेषत: उर्जा और जल संसाधन की उपलब्धि के मामलों से न हो।
-वार्ताकारों ने 1947 में पाक से अधिकृत कश्मीर से उजड़े 10 लाख लोगों, 1947 में ही पश्चिम पाकिस्तान से आए चार लाखशरणार्थियों, 1990 से कश्मीर घाटी से निकाले गए चार लाख कश्मीरी पंडितो को जम्मू-कश्मीर का हितग्राही नहीं माना है।
-वार्ताकारों ने राज्य पर लागू धारा 370 के साथ जुडे अस्थाई शब्द हटा कर विशेष उपबन्ध कहने का सुझाव भी दिया है।