संसार में सबसे अधिक सुखी है अपरिग्रही – लोकसन्तश्री
रतलाम 10 नवम्बर(इ खबरटुडे)। लोकसन्त, आचार्य, गच्छाधिपति, श्रीमद् विजय जयन्तसेन सूरीश्वरजी म.सा. ने कहा कि अपरिग्रही (आवश्यकता से अधिक मोह नहीं रखने वाला) संसार में सबसे अधिक सुखी है। भगवान महावीर द्वारा संसार को दिए गए व्रतों में से पांचवां अपरिग्रह है। इसका तात्पर्य परिग्रह की नदी पर बांध बनाना है। परमात्मा ने अपरिग्रह का सिद्धान्त बताकर सभी जीवों को सुखी बनने का मार्ग पूर्व में ही बता दिया था, लेकिन इस पर नहीं चलने वाले आज दुखी हो रहे हैं। महावीर के वचनों को सुनने के साथ अनुसरण भी करना चाहिए, इससे जीवन सुरक्षित रहता है ।
लोकसन्तश्री जयन्तसेन धाम में धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि मार्ग छोडक़र चलने वाले व्यक्ति के जीवन में समस्याएं आती हैं। इसलिए हर कदम पर पूर्णत: जागृत रहकर चलना चाहिए, इससे भटकाव नहीं आएगा और मंजिल भी मिल जाएगी। अपरिग्रही व्यक्ति महानता प्राप्त करता है । इतिहास में इसके कई उदाहरण दिख जाएंगे। भगवान महावीर र्तिकाल ज्ञानी थे। उनके वचनों को अमल में लाएं तो कई समस्याएं दूर हो जाएंगी, अन्यथा कई घरों में भाई-भाई और सास-बहू में क्लेश चलता रहेगा । लोकसन्तश्री ने विभिन्न प्रसंगों के माध्यम से अपरिग्रही बनने की प्रेरणा दी। इस मौके पर सियाणा श्रीसंघ (राज.) ने आचार्यश्री के दर्शन-वन्दन कर आशीर्वाद प्राप्त किया। संघ के बसन्त भाई लालचंद भण्डारी ने सियाणा में जिनमंदिर व गुरुमंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के लिए मुहूर्त प्रदान करने की विनंती की, जिस पर लोकसन्तश्री ने 1 मार्च 2017, बुधवार का मुहूर्त प्रदान किया ।
चातुर्मास आयोजक व राज्य योजना आयोग उपाध्यक्ष चेतन्य काश्यप परिवार व रतलाम श्रीसंघ की ओर से श्रवण काश्यप, सुशील छाजेड़ ने सियाणा श्रीसंघ के बाबूलाल मेहता का बहुमान किया। सियाणा श्रीसंघ द्वारा रतलाम में ऐतिहासिक चातुर्मास का आयोजन करने पर श्रवण काश्यप व श्रीमती तेजकुंवरबाई काश्यप का अभिनन्दन किया गया। दादा गुरुदेव की आरती का लाभ मूलचंदजी पुखराजजी सियाणावाले ने लिया ।
उत्थान में समय लगता है, पतन में नहीं – मुनिराजश्री
मुनिराजश्री निपुणरत्न विजयजी म.सा. ने कहा कि जीवन में अनेक तरह के संघर्ष करना पड़ते हैं, लेकिन आगे वही व्यक्ति बढ़ता है जो हर परिस्थिति का आकलन करना जानता है। जिस तरह समुद्र में ज्वार और भाटा आता है, सूरज उगता है और अस्त होता है, चन्द्रमा बढ़ता है और घटता है, पुष्प खिलता है और मुरझाता है, वैसे ही जीवन यार्ता में अनेक सुख-दुखरुपी उतार-चढ़ाव आते रहते हैं । व्यक्ति को सर्जन करने में बहुत समय और श्रम करना पडता है, लेकिन विसर्जन होने में अधिक समय नहीं लगता। इसलिए हर परिस्थिति का स्वागत करना चाहिए। यह हमेशा याद रखें कि उत्थान में भले ही समय लगता है, लेकिन पतन होने में देर नहीं लगती । उत्तराध्ययन सूर्त के चार अध्ययनों का वाचन करते हुए मुनिराजश्री ने कहा कि उत्तराध्ययन सूर्त के संदेशों को जीवन में उसी तरह अंगीकार करो, जैसे दूध और शक्कर का संयोग होता है। दूध में शक्कर मिलने के बाद उसकी मिठास बढ़ जाती है और शक्कर को अलग नहीं किया जा सकता। उत्तराध्ययन सूर्त की महिमा भी जीवन में इसी तरह आ जाए तो सद्गुणों की मिठास को कोई दूर नहीं कर सकेगा। शुक्रवार को उत्तराध्ययन सूर्त के वाचन का समापन होगा।
पुरस्कार वितरण और केशलोच –
लोकसन्तश्री की निश्रा में चातुर्मास आयोजक व राज्य योजना आयोग उपाध्यक्ष चेतन्य काश्यप परिवार की श्रीमती तेजकुंवरबाई काश्यप ने गुरुवार को मंगल प्रवेश एवं चातुर्मास में शोभा बढ़ाने वाली गहूली बनाने पर मिनाक्षी चौपड़ा को प्रथम, कविता कांठेड़़ को द्वितीय तथा निशिता कांठी को तृतीय पुरस्कार प्रदान किए। दूसरी तरफ मुनिराजश्री प्रसिद्धरत्न विजयजी म.सा. के हाथों केशलोच कराकर धर्मलाभ लेने का सिलसिला भी चला। सर्वश्री सुजानमल सोनी बालोदावाला, पंकज ओरा खेड़ावाला, प्रवीण संघवी एवं नितेश तलेरा ने केशलोच करवाया।