संतो के सान्निध्य में लिया गया रतलाम जैन सोश्यल ग्रुप के बहिष्कार का संकल्प
रतलाम,29 सितम्बर (इ खबर टुडे)। जैन नाम से संचालित जैन सोश्यल ग्रुप सहित ऐसी सभी संस्थाएं जो जैन धर्म, दर्शन, संस्कृति और मर्यादा के विपरीत आचरण कर रही है। उन सभी का समाज स्तर पर पूरजोर विरोध के साथ बहिष्कार का निर्णय लिया गया है। जैन संस्कृति संरक्षण अभियान के आव्हान पर पू. आचार्य जिनचन्द्रसागरसूरीजी म.सा. एवं पू.आचार्य हेमचंद्रसागरजी म.सा. ‘बंधु बेलड़ी’ की निश्रा में समाजजनों ने बहिष्कार का संकल्प लिया।
जैन संस्कृति संरक्षण अभियान के सदस्यों का प्रतिनिधिमंडल शहर में चातुर्मास के लिए विराजित सभी साधु-संतों से इस मामले भेंट कर कतिपय जैन संस्थाओं की संस्कृति विपरीत प्रवुती के विरोध में सामाजिक जाग्रति का अनुरोध कर रहा है। शनिवार को अभियान के सदस्यों ने आचार्य श्री के समक्ष विनती की। देवसुर तपागच्छ जैन श्रीसंघ अध्यक्ष सुनील लालवानी को अभियान में सहयोग के लिए अनुरोध पत्र सौपा। यहां उपस्थित समाजजनों ने कतिपय पथ भ्रमित संस्थाओं से कोई सरोकार नहीं रखने और बहिष्कार का संकल्प लिया।
अभियान से जुड़े मनमीत कटारिया, श्रीपाल भंडारी,अमृत जैन, प्रकाश लोढ़ा,राजेश गेलड़ा,विजय पितलिया, शैलेन्द्र मानडोत, निर्मल जैन, अभिषेक लोढ़ा, सुमित सुराणा,दीपक पीपाडा,राहुल पोखरना,पिंकेश सुराना,संजय जैन,मंगल जगावत,मुकेश तांतेड, संजय मूणत,सुमीत कटारिया आदि सदस्यगण यहां उपस्थित थे।
जैन धर्म की छवि कलंकित
आचार्य श्री ने कहा कि ऐसा कोई भी कार्य जो जैन धर्म, दर्शन, संस्कृति और मर्यादा के विपरीत है, उसका विरोध करना हमारा सामाजिक दायित्व है। जैन धर्म के नाम से संचालित उन सभी संस्थाओं का सदस्यता और कार्यों का बहिष्कार होना जरूरी है जो हमारे गौरवशाली इतिहास और विश्व वन्दनीय दर्शन पर क्ठुराघात कर रही है। जैन संस्था के नाम पर अशोभनीय कार्यो पर रोक लगनी चाहिए। ऐसी संस्थाएं देश-विदेश मे टूर अथवा आपतिजनक पार्टियों के माध्यम से धर्म व समाज की छवि को कलंकित करने का काम करती है। उन्होंने कहा कि या तो ये संस्थाएं जैन शब्द और धर्म का उपयोग बंद करें या फिर समाज ऐसी संस्थाओं की सदस्यता से स्वयं को अलग कर लेवे।
सामाजिक संहिता सुरक्षित रहे- मुनि श्री१०८ प्रमाण सागर जी म.सा.
जैन संस्कृति संरक्षण अभियान को रतलाम मे वर्षावास हेतु विराजित पू. मुनि १०८ श्री प्रमाणसागरजी म.सा. ने भी अपना समर्थन दिया है। मुनिश्री ने कहा कि समाज में सामाजिक संगठन का उद्देश्य सामाजिक संहिता को सुरक्षित रखने का होना चाहिए। अगर उनके कारण हमारी पवित्र संहिता खंडित होती है तो ऐसे संगठनों का कोई ओचित्य ही नहीं है। ऐसी संस्थाओं की सोच पश्चिम से प्रभावित होने के कारण ये समाज में कई विकृतियों को जन्म दे रही है, जो कतई स्वीकार करने योग्य नहीं है। ऐसी संस्थाओं की तीव्र निंदा और भर्त्सना होना चाहिए।