November 15, 2024

Bankruptcy of Mind : दो हज़ार की नोट वापसी पर विपक्षी नेताओं की प्रतिक्रियाएं दिमागी दिवालियापन या शातिराना अंदाज…..?

-तुषार कोठारी

मोदी सरकार द्वारा दो हजार रु. के नोट को वापस लिए जाने के फैसले के बाद विपक्षी नेताओं की जो प्रतिक्रियाएं सामने आ रही है,उन्हे देख कर लगता है कि विपक्षी नेताओं के मत में देश की जनता पूरी तरह मूर्ख है और ये मूर्ख जनता, जो कुछ विपक्षी नेता कहेंगे उसे आंख मूंद कर सही मान लेगी। पिछले नौ सालों के तमाम घटनाक्रमों को देख लीजिए। हर मुद्दे पर विपक्षी नेताओं की प्रतिक्रिया इसी तरह की थी। नेताओं की यह गलतफहमी या तो उनका दिमागी दिवालियापन है या बहुत ही ज्यादा शातिराना अंदाज जिसके असर का अनुमान अभी लगाया नहीं जा सकता।

चुनाव दर चुनाव हारते जाने के बावजूद ये विपक्षी नेता अपनी इस गलतफहमी को छोडने को तैयार नहीं कि जनता मूर्ख है और जो कुछ विपक्षी नेता कहते है जनता उसी को सत्य मान लेती है। हांलाकि बीच बीच में कर्नाटक चुनाव नतीजों जैसी घटनाएं भी हो जाती है जो विपक्षी नेताओं की इस गलत फहमी को बढा देती है।

सिलसिलेवार ढंग से देखिए। सबसे ताजा मामला दो हजार रु. के नोट वापस लेने का है। सामान्य समझ रखने वाला एक आम आदमी बडी आसानी से ये बात समझ रहा है कि दो हजार के नोटो की जमाखोरी या तो नेता कर सकते है या अफसर,या उद्योग जगत से जुडे लोग। इसमें आतंकवादी और नक्सलवादी संगठन या अपराधी भी हो सकते है।

देश की नब्बे प्रतिशत जनता या तो मध्यम वर्ग में आती है या निम्न आय वर्ग मे। मध्यम और निम्न आय वर्ग वाले देश के नब्बे प्रतिशत लोगों के पास या तो दो हजार के नोट होंगे ही नहीं और अगर होंगे तो भी इतनी कम संख्या में होंगे कि वे बिना किसी समस्या के बैैंक में जाकर नोट बदलवा कर ले आएंगे।

दो हजार के नोट वापसी की घोषणा होने के बाद दो दिन गुजरे है और करीब करीब हर आदमी को ये पता चल चुका है कि किसी भी बैैंक में जाकर नोट बदले जा सकते है। जिनके पास सीमित मात्रा में दो हजार के नोट है वे जानते है कि इन्हे बदलने में कोई समस्या नहीं है। लोग ये भी जानते है कि अगर नोट अधिक मात्रा में है और यदि उनकी रकम सफेद है यानी एक नंबर की है तो वह आसानी से बैैंक खाते में जमा कराई जा सकती है।

अब देश के विपक्षी नेताओं की प्रतिक्रिया देखिए। कांग्रेस के प्रवक्ता कह रहे है कि दो हजार के नोट वापस लेकर मोदी जी ने देश की अर्थव्यवस्था को तबाह कर दिया है। ये प्रतिक्रिया वे उस समय दे रहे है जब भारत विश्व की पांचवी बडी अर्थव्यवस्था बन चुका है। कांग्रेस के प्रवक्ता कह रहे है कि पहले नोटबंदी के वक्त कहा जा रहा था कि इससे आतंकवाद पर चोट पडेगी और अब नोट वापस ले रहे है तब भी यही कह रहे है। ऐसा कैसे हो सकता है?

आप पार्टी वाले तो और दो कदम आगे निकल गए। आप के प्रवक्ता कह रहे है कि देश में अगर पढा लिखा प्रधानमंत्री होता तो ऐसे निर्णय नहीं लेता। आप सांसद संजय सिंह कह रहे है कि मोदी जी को रात रात भर नींद नहीं आती क्योकि उनके मित्र अडाणी की कमाई घट गई है। संजय सिंह कहते है कि इसीलिए मोदी जी ने दो हजार के नोट बैैंक में वापस बुलवा लिए है ताकि ये नोट उनके मित्र को दिए जा सके।

इस तरह की बेसिर पैर की बातें संजय सिंह तब कह रहे है जब अडाणी हिंडनबर्ग मामले में सुप्रीम कोर्ट की उच्चस्तरीय विशेषज्ञ समिति अडाणी को क्लीनचिट दे चुकी है और स्टाक मार्केट में अडाणी के शेयर फिर से आसमान छूने लगे है।

केवल दो हजार के नोट का मामला नहीं। केन्द्र सरकार के प्रत्येक निर्णय पर विपक्षी नेता इसी तरह की बेसिर पैर की प्रतिक्रियाएं देते है और उन्हे लगता है कि इससे न सिर्फ उनका जनाधार बढेगा बल्कि मोदी जी की छबि भी खराब होगी जिसका फायदा उन्हे चुनाव में मिल जाएगा।

नोटबंदी और सर्जिकल स्ट्राइक जैसे मामलों पर मोदी की आलोचना कर कर के विपक्ष 2019 के आम चुनाव में बुरी तरह हार का मुंह देख चुका है। चौकीदार चोर है और राफेल घोटाले पर चीख चीख कर राहूल गांधी का मुंह दुख गया होगा। राहूल को लगा होगा कि “चौकीदार चोर है” जैसा डायलाग उन्हे मिल गया गया है तो अब मोदी की इमेज बिगड कर ही रहेगी। उन्हे तब यही लगा था कि देश की जनता मूर्ख है और उनकी कही हुई बात को सच मान लेगी। लेकिन नतीजों ने साबित किया कि राहूल गलतफहमी में थे।

इसके बावजूद ना तो उन्होने और ना उनकी पार्टी ने और ना ही विपक्ष पार्टियों ने इस बात से कोई सबक सीखा। अब चुनाव नजदीक आ रहे है तो राहूल उसी राह पर चल पडे है। पहले उन्होने अडाणी अडाणी के गीत गाए। उनके पीछे पीछे पूरा विपक्ष चल पडा। शरद पंवार जैसे एकाध मंजे हुए नेता ने जरुर विपक्ष की इस मुहिम को झटका दिया,लेकिन कमोबेश तमाम पार्टियां अडाणी अडाणी करने लग गई थी।

नए संसद भवन का मामला हो,या वन्दे भारत जैसी शानदार रेलगाडियां चलाने का। नए एयरपोर्ट और एक्सप्रेस वे जैसी सौगातों का मसला हो या किसी भी ऐसे विकास कार्य की बात हो जिसका फायदा सीधे आम लोगों को मिल रहा हो और वे इस सुविधा का आनन्द ले रहे हो। ऐसे किसी भी काम या योजना पर जब जब विपक्षी नेता कटाक्ष करते है या उसका मखौल बनाते है,तो सुनने वाले आम आदमी को लगता है कि विपक्षी नेता उसका मजाक बना रहा है। कल्पना कीजिए कि किसी एक्सप्रेस वे पर चल कर कोई व्यक्ति शानदार अनुभव के साथ अपने गंतव्य पर पंहुचा हो और अखिलेश यादव जैसा कोई नेता उसी एक्सप्रेस वे की निन्दा करता सुनाई दे तो सुनने वाला व्यक्ति अखिलेश को ही मूर्ख या झूठ बोलने वाला समझेगा।

दो हजार के नोटवापसी के मसले पर यही हो रहा है। जितना विपक्षी नेता इस बात की निन्दा कर रहे है, उतनी ही वे अपनी खुद की विश्वसनीयता को चोट पंहुचा रहे है। इधर भारत में तमाम विपक्षी नेता दो हजार के नोट वापस लेने पर बैसिर पैर के नए नए किस्से कहानियां गढ रहे है और उधर प्रधानमंत्री मोदी जी सेवन के शिखर सम्मेलन में भारत का मान बढा रहे है। मोदी जी जब तक विदेश यात्रा से लौटेंगे तब तक विपक्षी नेता अपनी विश्वसनीयता पर्याप्त मात्रा में गंवा चुके होंगे।

सवाल यही है कि क्या विपक्षी नेता इस तरह की प्रतिक्रिया अपने दिमागी दिवालियेपन के चलते देते है या इसके पीछे कोई शातिराना अंदाज है। सामान्य समझ से तो यह समझ में आता है कि लगातार मिलने वाली असफलताओं ने विपक्षी नेताओं के संतुलन को गडबडा दिया है और यही वजह है कि वे खुद को नुकसान पंहुचाने वाली हरकतें लगातार करते जा रहे है।

You may have missed

This will close in 0 seconds