Raag Ratlami Withdrawal : दहाडते हुए गए थे परचा दाखिल करने,मिमियाते हुए वापस लेकर लौटे ; जोरदार होगी जाटों की जंग
-तुषार कोठारी
रतलाम। शहर सरकार का चुनाव अब धीरे धीरे जोर पकड रहा है। कई सारे नाराज दावेदार जो पर्चा दाखिल करते वक्त शेरों की तरह दहाड रहे थे,तीन दिनों के बाद नामवापसी के वक्त मिमियाते नजर आए। कहीं कोई दबंग लेडी दम दिखा रही थी,तो कहीं कोई नेताजी जीत के दावे कर रहे थे,लेकिन नामवापसी का वक्त आते आते सब के सब खुद को अनुशासित सिपाही साबित करने में लग गए। कुछेक ऐसे भी थे,जिन्हे पार्टी वालों ने ज्यादा भाव नहीं दिया और वे उम्मीदें लगाए बैठे थे कि कोई मनाने आएगा। मनाने कोई आया नहीं और वे फार्म वापस नहीं ले पाए।
सियासत बडी तेजी से पलटती है। फूल छाप पार्टी में नाराज नेताओं की तादाद ज्यादा थी। फूल छाप पार्टी के कई नेता खुद को महापौर समझते थे,इसीलिए बहुत सारों ने परचे दाखिल कर दिए थे। परचे दाखिल करते वक्त उनके अंदाज बडे निराले थे। पटरीपार वाली दबंग लेडी कह रही थी कि शहर की जनता उन्हे महापौर बनते हुए देखना चाहती है। उन्होने तो अपने साथ सत्रह पार्षदों के परचे दाखिल करने की भी घोषणा की थी। शहर सरकार में नम्बर दो रह चुके नेताजी को उनके इन्दौरी आका टिकट नहीं दिलवा पाए थे,लेकिन नेताजी ने इस उम्मीद में फार्म भर दिया था कि शायद आखरी वक्त में कोई करिश्मा हो जाए। नेताजी शहर के मिजाज को भांपने की भी कोशिश कर रहे थे कि अगर वो बिना फूल के चुनाव लडेंगे तो कितना असर दिखा पाएंगे। इसी तरह फूल छाप पार्टी के भोंपू का काम कर चुके दाढी वाले नेताजी को भी उम्मीद थी कि महापौर नहीं तो कम से कम उनकी सीनीरियटी को देखते हुए पार्षद का टिकट तो उन्हे मिल ही जाएगा,इसी चक्कर में उन्होने दोनों फार्म भर रखे थे। एक ओर नेताजी जो सीधे फूलछाप से नहीं जुडे थे,लेकिन पिछली प्रथम नागरिक के खास होने के नाते फूलछाप के नजदीक थे,उन्होने भी इसी उम्मीद में परचा दाखिल किया था कि कहीं कोई सुनवाई हो जाए।
लेकिन फूल छाप वाले नहीं माने। जिन्होने परचे दाखिल किए थे उन्हे औपचारिकता के लिहाज से परचे वापस लेने को कह दिया। साथ में भविष्य की उम्मीदों का झुनझुना भी थमा दिया कि फूलछाप में बने रहोगे तो कभी ना कभी कुछ ना कुछ तो मिल ही जाएगा। बागी बनने की राह पर जा रहे नेताओं को फूलछाप वालों ने ये भी समझा दिया कि जितनी मानमनौव्वल हो रही है,उससे ज्यादा की उम्मीद मत रखो वरना वापसी मुश्किल हो जाएगी।
बस फिर क्या था? परचा दाखिल करते वक्त शेरनी की तरह दहाडने वाली दबंग लेडी नामवापसी के आखरी वक्त मुंह लटकाए जिला इंतजामिया के दफ्तर में पंहुच गई और चुपचाप से परचा वापस ले आई। परचा वापस लेकर लौटी तो खबरचियों ने इसकी वजह पूछ ली। दबंग लेडी ने फौरन मामा के फोन का जिक्र कर दिया कि उन्हे सीधे मामा का फोन आया था। सुनने वालों में से ज्यादातर को भरोसा था कि मामाजी के पास इतना समय नहीं है कि वो ऐसे छोटे छोटे मामलों में फोन लगाए।
इन्दौरी आका के भरोसे महापौर बनने की ख्वाहिश रखने वाले नेताजी,इससे पहले परचा वापस लेने आ गए थे। वे अपना परचा वापस भी ले चुके थे,लेकिन उस वक्त भैयाजी मौजूद नहीं थे। जब भैयाजी आए,तो नेताजी को वापस जाकर फोटो अपर्चुनिटी लेना पडी। फिर से नामवापसी का सीन रिपीट किया गया। नेताजी के लिए एक बार फार्म वापस लेना ही भारी हो रहा था। इसी से उनका मुंह छोटा हुआ रखा था। लेकिन फोटो के चक्कर में उन्हे असल नामवापसी के बाद फिर से नामवापसी का नाटक करना पडा। इस वजह से दुगुने दुखी हुए नेताजी ने बाहर आकर अपनी खीज कुछ इस तरह मिटाई कि उन्होने वहां मौजूद कुछ खबरचियों के सामने दावा किया कि भोपाल वाले चुनाव का टिकट इस बार वही लेकर आएंगे। उनके आका ने उन्हे यह भरोसा दिलाया है। खबरचियों ने भी दुख की घडी में उनके इस बडबोलेपन बिना हंसे सुना।
फूलछाप पार्टी से बागी हो रहे कई छोटे नेता भी आखरी वक्त तक नामवापसी के लिए आते रहे। ज्यादातर दुखी थे और उनके चेहरे लटके हुए थे,लेकिन उन्हे पता था कि अगर नामवापसी नहीं की तो भविष्य में फूलछाप से पत्ता कट जाएगा और उनके तमाम सपने धरे के धरे रह जाएंगे। लेकिन दाढी वाले नेताजी फूल छाप वालों की मान मनौव्वल से थोडी ज्यादा मान मनुहार चाहते थे। नतीजा ये हुआ कि उनका नाम वापस नहीं हुआ और अब वे नल के सहारे मैदान में है। फूल छाप ने उन्हे बाहर का रास्ता दिखा दिया है। नेताजी यूं तो तीन बार शहर सरकार का हिस्सा रह चुके है,लेकिन अब शहर सरकार में जाने की उनकी तमन्ना धरी की धरी रह जाने के कयास लगाए जा रहे है।
पंजा पार्टी के उलटे सीन
फूल छाप में जहां बागी होने की धमकी देने वालों की भीड पड रही थी वहीं पंजा पार्टी में ठीक उलटे सीन दिखाई दिए। पंजा पार्टी ने जिन्हे टिकट दिया,वे चुपचाप से नामवापसी कर चलते बने। पंजा पार्टी के नेताओं को जोर का झटका तब लगा जब वक्त गुजर चुका था। पंजा पार्टी ने 49 में से एक वार्ड तो फूल छाप को तश्तरी में रख कर दे दिया। पंजा पार्टी की हालत ये है कि शहर के 49 में से पंजे वाले उम्मीदवार अब सिर्फ 47 वार्डो में ही है। इन 47 में से भी कुछ में बागी मौजूद है,जो पंजे वालों का खेल बिगाडने में लगे है। ऐसा नहीं है कि पंजा पार्टी में किसी ने बागी बनने की धौंस ना दिखाई हो,जिले की पंचायत को सम्हाल चुके नेताजी ने नाम ना होने के बावजूद परचा दाखिल किया था। परचा दाखिल करते वक्त जब खबरचियों ने पूछा तो उन्होने कहा था कि ये पंजा पार्टी है,इसमें आखरी वक्त तक कुछ भी हो सकता है। लेकिन जब आखरी वक्त आ गया तो नेताजा चुपचाप से आए और नामवापस लेकर चले गए।
जाटों की जोरदार जंग
बहरहाल,शहर सरकार का मुखिया बनने की जंग अब जोर पकडती जा रहा है। शहर के इतिहास में शायद पहला मौका है ,जब दो जाटों के बीच जंग हो रही है। पंजा पार्टी और फूल छाप दोनों ही सेनाओं के सेनापति जाट है। नामवापसी का दौर गुजरते ही दोनो जाट जबर्दस्त तैयारी में जुटे हुए दिखाई दे रहे है। पहले तो फूल छाप को अपना खेल एकतरफा लग रहा था,लेकिन पंजा पार्टी की उम्मीदवारी सामने आने के साथ ही खेल दिलचस्प होने लगा। सियासत की नब्ज पर हाथ रखने वालों का कहना है कि पंजा पार्टी की खुद की तो कोई हैसियत नहीं बची है,लेकिन पंजा पार्टी की तरफ से मैदान में उतरे पहलवान की खुद की तैयारी ने खेल को दिलचस्प बना दिया है। पंजा पार्टी के पहलवान की दावेदारी को मजबूत माना जा रहा है। पंजा पार्टी के पहलवान ने सरकारी सुविधाएं और वेतन भत्ते ना लेने की घोषणा करके पहली बढत भी हासिल कर ली है। वैसे तो ये शहर फूलछाप का गढ रहा है,लेकिन पंजा पार्टी की तरफ से पहलवान के मैदान में आने के बाद अब फूलछाप पार्टी भी चुनाव को हलके में लेने वाली नहीं है।
दोनो ही उम्मीदवारों के यहां भण्डारे शुरु हो चुके है और चुनावी दफ्तरों में कारकूनों की भीड लगने लगी है। पूरे शहर में दोनों के भोंगे घूम घूम कर गीत सुना रहे है। दोनों ही गली गली घूम कर वोटर देवता को मनाने में जुट गए है। दोनों ही योध्दाओं के पास अभी पन्द्रह दिनों का वक्त है। आने वाले दिनों में ये तय होगा कि कौन बढत बना रहा है और कौन पिछड रहा है।