Raag Ratlami Election Stories – चुनावी संग्राम के लिए सजी सेनाएं,दोनो पार्टियों में सामने आ रही है नित नई कथाएं
-तुषार कोठारी
रतलाम। शहर सरकार के चुनावी संग्राम के लिए सेनाएं सज चुकी है। दोनो प्रमुख सेनाओं के सेनापति और महारथी तय हो चुके है,जो जितेगा,सरकार उसी की होगी। चुनावी संग्राम,सामान्य संग्राम जैसा नहीं होता,जिसमें सेनाएं आमने सामने वालों पर हमला करके संग्राम जीतती है। सियासत का संग्राम पूरी तरह अलहदा होता है। इसमें सामने की सेना का हमला तो झेलना ही पडता है,अपनी ही सेना के योद्धा भी किसी भी वक्त वार कर देते है। सियासी संग्राम में अपनी खुद की सेना से भी सावधान रहना पडता है।
इस सियासी संग्राम में पंजा पार्टी और फूल छाप पार्टी दो मुख्य लडाके तो है ही,इसके अलावा और भी कई सारे लडाके मैदान में उतर रहे है। कोई अभिमन्यू की तरह अकेला यानी निर्दलीय है,तो कोई किसी नामालूम सी झाडू छाप पार्टी के झण्डे तले मैदान में उतर रहा है। शहर सरकार के चुनाव की घोषणा के बाद से अब सियासत अपने फुल एक्शन मोड में है और हर दिन नई कहानियां बन रही है। बीता पूरा हफ्ता सियासती उठापटक से भरपूर रहा है।
जुलूस का जलाल
हफ्ते का आखरी दिन जुलूसों वाला दिन रहा। पर्चे दाखिल करने का आखरी दिन था और दोनो ही पार्टियों के नाम तय होते होते आखरी दिन आ चुका था,इसलिए दोनों पार्टियों के तमाम दावेदार कल ही पर्चे दाखिल करने पंहुच रहे थे। पहले फूल छाप का जुलूस निकला तो देखने वालों को लगा कि फूल छाप ने कमाल कर दिया। लेकिन जब इसके बाद पंजा पार्टी ने जुलूस निकाला तो देखने वालों को लगा कि ये तो और बडा कमाल हो गया। जुलूसों की लम्बाई नापने के बाद अब लोग दोनो पार्टियों की ताकत को तौल रहे है। इससे पहले तक जिस मुकाबले को एक तरफा समझा जा रहा था,अब उसी मुकाबले को दिलचस्प माना जा रहा है।
खुद तो मिले लेकिन दिल नहीं
फूल छाप पार्टी का टिकट वाटर पार्क वाले भैया को क्या मिला फूल छाप पार्टी के नजारे बदल गए। कभी दूर दूर रहने वाले स्टेशन रोड और पैलेस रोड में नजदीकीयां बढ गई। देखने वाले हैरान थे कि स्टेशन रोड वाले भैयाजी पैलेस रोड पर जाकर सेठजी से गले मिल रहे थे। हैरानी तब भी थी जब फूल छाप के जुलूस में सारे के सारे लोग मौजूद थे। गौर करने वालों ने देखा कि नेता आपस में तो मिल गए लेकिन शायद उनके दिल नहीं मिल पाए। जुलूस में चल रही खुली जीप में बडे नेता मौजूद थे,लेकिन पैलेस रोड वाले सेठ दो पहिया वाहन पर चल रहे थे। खबर रखने वालों का कहना है कि उन्हे जीप में चढने का किसी ने कहा नहीं इसलिए वो दोपहिया वाहन पर ही चलते रहे। आगे चुनाव में इसका क्या असर होगा अब इस पर नजर रखी जा रही है।
दबंग लेडी की दबंगाई,काम नहीं आई
कुछ सालों पहले तक फूल छाप पार्टी में फायर ब्रान्ड दबंग लेडी कहलाने वाली बहनजी की दबंगाई इस बार जरा भी काम नहीं आई। हांलाकि दबंग लेडी ने अपनी दबंगाई दिखाने की कोशिश तो बहुत की,लेकिन इस कोशिश के कारण केस अलग से झेलना पड गया। दबंग लेडी खुद को महापौर ही समझने लगी थी,इसलिए उन्हे लग रहा था कि महापौर नहीं तो पार्षद का टिकट तो कोई काट ही नहीं सकता। लेकिन इस बार किसी ने उनकी दबंगाई पर ध्यान नहीं दिया और टिकट भी कट गया। नयागांव से स्टेशनरोड जाकर दबंगाई दिखाने का भी जब कोई असर नहीं हुआ तो थक हार कर दबंग लेडी ने खुद ही पर्चा दाखिल कर दिया है। कहने को तो फूल छाप वाले कह रहे है कि उन्हे मनाने की कोशिश करेंगे,लेकिन लगता नहीं कि ऐसा होगा।
तीन दिन का महापौर
एक बडे अखबार ने शहर सरकार में दो नंबर के नेता रहे नेताजी को फूलछाप का उम्मीदवार घोषित कर दिया था। बस फिर क्या था,नेताजी खुद को महापौर ही समझने लगे। शहर भर के कई सारे लोग भी यह मानने लगे थे कि नेताजी ही महापौर है। लेकिन फूल छाप पार्टी का टिकट पाने की जंग चुनावी जंग से बडी होती है। नेताजी बस तीन दिन ही महापौर रह पाए। तीन दिनों के बाद कुर्सी,वाटर पार्क वाले भैया ले गए।
साष्टांग दण्डवत का अर्थ
फूल छाप पार्टी के टिकट की जंग बेहद कमाल की थी। पहले तो अखबार ने किसी और को टिकट मिलने की खबर छापी लेकिन बाद में फूल छाप ने वाटर पार्क वाले भैया को उम्मीदवार घोषित कर दिया। लोग दंग रह गए कि वाटर पार्क वाले भैया ने ये कमाल कैसे कर दिया। उनके सिर पर आखिर किसका हाथ था? सवाल का जवाब भी जल्दी ही मिल गया। टिकट मिलने के बाद भैया जैसे ही स्टेशनरोड पंहुचे तो उन्होने पंहुचते ही साष्टांग दण्डवत प्रणाम किया। राजनीति में नेताओं के पैर छूने का रिवाज तो है,लेकिन साष्टांग दण्डवत करने का रिवाज नहीं है। जिसने भी ये सीन देखा फौरन समझ गया कि टिकट किसने दिलवाया है?
पंजा पार्टी में भी कम नहीं है दुखियारे
पंजा पार्टी को वैसे तो कमजोर माना जा रहा था,लेकिन पंजा पार्टी के टिकट को लेकर भी जमकर मारामारी थी। टिकट के दंगल में पंजा पार्टी के युवा पहलवान ने दूसरे सारे दावेदारों को पटखनी दे दी तो दूसरे दावेदारों को दुख होना स्वाभाविक था। पंजा पार्टी के एक दावेदार आखरी दिन फार्म भरने पंहुच गए। खबरचियों ने पूछा कि क्या डमी फार्म भर रहे हो,नेताजी का जवाब था ये पंजा पार्टी है यहां टिकट किसी का होता है और बी फार्म किसी और को मिल जाता है। उन्हे उम्मीद है कि पंजा पार्टी में कभी भी बदलाव हो सकता है। जाहर है नेताजी टिकट नहीं मिलने से दुखी थे,लेकिन खुलकर कुछ कह नहीं पा रहे थे। दुखियारे और भी है,लेकिन सब के सब मुंह पर ताले लगाए हुए है।
महापौर ही नहीं पार्षद के टिकट को लेकर भी पंजा पार्टी में खीचतान मची। खुद को खबरची बताने वाले युवा नेता पंजा पार्टी के आईटी सेल से जुडे थे। उन्हे पूरी उम्मीद थी कि टिकट उन्ही को मिलेगा। लेकिन जब टिकट नहीं मिला तो युवा नेता अपने साथियों के साथ पंजा पार्टी के मुखिया के घर पंहुच गए। जब मुखिया ने उनकी नहीं सुनी,तो युवा नेता ने अपने ही मुखिया पर फूल छाप पार्टी का एजेन्ट होने का आरोप लगाकर खूब नारे लगाए। मामला गरमाया तो वर्दी वालों को मौके पर पंहुचना पडा। वैसे पंजा पार्टी के नेताओं पर फूल छाप से मिले होने की बातें पंजा पार्टी वाले अक्सर दबी जुबान से करते रहते है,लेकिन ये चुनाव का असर है कि पहली बार इसके नारे भी लग गए।
पंजा पार्टी का वंशवाद
इधर तो फूल छाप वाले लगातार वंशवाद को आडे हाथों ले रहे है और उधर पंजा पार्टी को इससे कोई लेना देना नहीं। पंजा पार्टी की लिस्ट में पंजा पार्टी के पुराने नेता के साथ साथ उनकी श्रीमती जी का नाम है। पंजा पार्टी ने ऐसा कमाल शायद पहली बार दिखाया है। पुराने नेता तो कई बार शहर सरकार का हिस्सा रह चुके है,इस बार वे सपत्नीक शहर सरकार में जाना चाहते है। पंजा पार्टी में कई लोग इससे खासे नाराज नजर आ रहे है।