मंजूर है एलोपैथ का योगदान,आयुर्वेद ने ही रोका तूफान,बाबा रामदेव के तीखे बाण,डाक्टर हुए लहूलुहान
-पंडित मुस्तफा आरिफ
पिछले सप्ताह में देश का मिडिया और सोशल मिडिया दोनो ही बाबा रामदेव के एलोपैथिक चिकित्सा पर कोरोना संक्रमण को लेकर किए गए आक्रमण की चर्चा और वाद विवाद में गुजरा। देश मे कोरोना महामारी की पहली लहर पर सफलतापूर्वक काबू पा लिया गया था, संपूर्ण विश्व स्तब्ध था। उपर से 6 करोड़ वैक्सीन हमने लगभग 30 जरूरतमंद देशो को भेंट स्वरूप दिये थे। 21 मार्च 2021 को कोरोना ताली की प्रथम वर्षगांठ थी, तब सिर्फ 200 के लगभग मृत्यु संख्या थी। फिर अचानक ऐसा क्या हो गया, कि मृतको की संख्या 4000 प्रतिदिन की सीमा पार गई। कोरोना वारियर्स के रूप में रात दिन एक करने वाले डाक्टर्स की संख्या 1000 पार गई, जिसमे कोरोना वारियर्स चिकित्सको के आदर्श डाक्टर केके अग्रवाल का नाम सर्वोपरि हैं। इन्हीं सब मुद्दो को लेकर योगाचार्य और पतंजली योग पीठ के संस्थापक बाबा रामदेव मुखर है, उनका आरोप है कि कोरोना महामारी को रोकने में एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति असफल रही है, वैक्सिनेशन के दूसरे डोज के बाद भी मौत रुकी नही है, यहां तक की 10000 से ज्यादा एलोपैथिक डाक्टर भी मौत के शिकार हुए हैं।
इस बात में कोई दो मत नहीं है कि एलोपैथिक चिकित्सा के बिना देश में तो क्या संपूर्ण विश्व में कोरोना पर रोकथाम असंभव थी। मेडिकल पेरा मेडिकल अमले की भूमिका को नकारना न तो उचित है और न ही न्याय संगत हैं। इसी बात ने केंद्र सरकार को विचलित किया और केन्द्रीय स्वास्थ मंत्री हर्षवर्धन को बाबा रामदेव को उस पत्र को क्षमा याचना सहित वापस लेने का अनुरोध लिखित में करना पड़ा, जिसमें बाबा ने कोरोना महामारी की दूसरी लहर को रोकने मे एलोपेथी को असफल बताते हुए आरोप लगाए थे। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने उनके साथ जमकर लोहा लिया। बाबा को अपने पत्र को न केवल वापस लेना पड़ा अपितु खेद भी व्यक्त करना पड़ा। आज देश कोरोना महामारी की रोकथाम को लेकर संघर्ष की स्थिती में हैं, संपूर्ण विश्व चिंतित है और भारत की तरफ सहानुभूति की नजर से देख रहा है। ऐसी हालत मे चिकित्सा पद्धति के गुण अवगुण पर चर्चा का समय इसलिए नहीं है, क्योंकि त्वरित निदान की दृष्टि से हमारे पास एलोपैथी का कोई विकल्प नहीं है। आयुर्वेद, होम्योपैथिक या और कोई पद्धति सहायक तो हो सकती है, परंतु तुरंत निदान देने में समर्थ नहीं है। लेकिन ये बात भी सही है, कि लगभग 99% मृत्यु एलोपैथिक अस्पतालो में हुई, आयुर्वेद चिकित्सालय में मृत्यु का एक भी साक्ष नहीं है। आयुर्वेद चिकित्सको ने बड़ी संख्या मे घरो पर इलाज किया जो रेकार्ड पर भले न हो लेकिन ठीक हुए है। उज्जैन के एक वयोवृद्ध प्रसिद्ध एलोपैथ मेडिकल विशेषज्ञ सबसे पहले आक्सीजन सिलिंडर हटाते थे और फिर योगा से इलाज करते थे, उनके शतप्रतिशत मरीज ठीक हुए। जिन्हे हम झोला छाप कहते है उन्होने घरेलू कारगर इलाज किया, उज्जैन के ही एक ऐसे चिकित्सक ने 5000 मरीज ठीक किए, उनमे से कुछ की हालत बड़े स्वनामधन्य एलोपैथ अस्पतालो मे बिगड़ी, और उनको वहां से निकालकर लाया गया। ये सही है कि एलोपैथी का योगदान महामारी को रोक थाम में अतुलनीय है, परंतु इस सुनामी को रोकने मे आयुर्वेद का योगदान भी कम नहीं है। बाबा रामदेव के तीखे बाणो का प्रहार एलोपैथ के महारथियों को लहूलुहान कर रहा है। और अपनी संगठन शक्ति से बाबा को मौन करने में सफल हुए है और उन्हें कोर्ट मे भी ले गये है।
भारत के एक प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य ने कहा कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन जैसी अंग्रेज परस्त एलोपैथिक संस्थान को शासन ने मनमानी करने की छूट दे रखी हैं। वो किर्लोस्कर मोटर को भी प्रमाणित कर देती है, तो एशियन पेंट को भी। कहीं न कहीं इस भूमिका में शासन व नौकरशाहों की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। यहीं कारण है कि महामारी की रोकथाम में अब तक एचसीएल से लेकर प्लाजमा और यहीं तक वैक्सिनेशन भी एलोपैथिक पद्घति के प्रयोग ही है, दावे के साथ एलोपैथिक दवा और उपचार की सफलता के बारे में कोई भी नहीं कह सकता। भले ही आयुर्वेद ने एलोपैथ की अपेक्षा कम रोगियो का उपचार किया होगा, परंतु उसमे शर्तिया सफलता मूल में है, और भारत को एक बड़े तूफान से बचाया है। आज भी एलोपैथिक चिकित्सक आयुर्वेद को साथ में मिलाकर उपचार कर के ही सफल हो सकता है। चाहे योग हो या काड़ा या दवाइयां आदि का इस्तेमाल हो, देश मे कईं ऐसे एलोपैथिक चिकित्सक है, जिन्होने आक्सीजन सिलिंडर को छुआ तक नहीं योग के माध्यम से उचित आसन कराकर अपने मरीज उनके घर पर ही ठीक कर दिए। सर्वेक्षण करने पर ये बात स्पष्ट हो जाएगी कि एलोपैथिक अस्पतालो से ही मरीज मृत्यु का वरण कर बाहर निकले बेचारी की लाशो की भी दुर्गति हुई।
संगठन शक्ति का अपना महत्व है, आयुर्वेद का भारत में कोई ऐसा सशक्त संगठन नहीं है, जिसको छेड़ने में हाथ पैर फूल जाए। आयुर्वेद छोटे मोटे संगठनो में बिखरा हुआ है, बिखराव की हालत कमोबेश साधु संतो जैसी हैं। उसके विपरीत एलोपैथिक चिकित्सक मजबूत इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के झंडे तले लामबंद है। बड़े कार्पोरेट जगत का इतना मजबूत संगठन है कि उन्हें हिलाने के लिए ऐड़ी चोटी का ज़ोर लगाना पड़ता है। ये ही बड़े बड़े पाच सितारा अस्पताल चला रहैं हैं, जहां बड़ी संख्या पांच सितारा व्यक्तित्व, नेता और अभिनेताओं ने गर्व के साथ मृत्यु का वरण किया है, जिससे पश्चाताप की गुंजाइश न रह जाए। आयुर्वेद की संगठन शक्ति का अभाव ही उनकी कमजोरी है, अन्यथा एलोपैथ की वैक्सिनेशन सहित सारी दवाएं प्रयोग के तौर पर चल रही है, कोई ये दावे के साथ कहने में सक्षम नहीं है कि वैक्सीन की वेलिडिटी क्या है, या अब कभी इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी, ये जीवन पर्यन्त पर्याप्त है। फिर भी एलोपैथ की सभी दवाओं को मान्यता दी है, तो फिर कोरोनील को प्रयोग के तौर पर मान्यता क्यों नहीं? अब तक के घरेलु प्रयोगो मे योग और आयुर्वेद के उपचार सफल रहै है। संभव है कोरोनील भी अपार सफलता प्राप्त करें, क्या ये भय तो एलोपैथ संरक्षक आकाओं को नहीं सता रहा है। इस संबंध मे हरियाणा सरकार की तारीफ करना होगी, उन्होने कोरोनील को राज्य मे निःशुल्क बांटने का बीड़ा उठाया। बहुत कम लोग जानते है कि पिछले दिनो रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने जो पाउच आक्सीजन की निर्भरता कम करने के लिए मार्केटिंग हेतु लांच किया है। उसका आधार लाड़नु राजस्थान की जैन शोध संस्थान और पतंजलि योग पीठ का संयुक्त शोधपत्र है।
आयुर्वेद और एलोपैथ की भूमिका पर निष्पक्ष समीक्षा होना चाहिए, और आयुर्वेद को भी जिस तरह योग को प्रतिष्ठा मिली है, उसी प्रकार स्थान मिलना चाहिए। आयुर्वेद विशुद्ध रूप से भारतीय विधा है, और एक कारगर पद्धति है। बाबा रामदेव के 25 प्रश्नो के जवाब मे आइएमए ने भी स्वीकार किया है, की बिमारी को जड़मूल से नष्ट करने मे आयुर्वेद उत्कृष्ट है। फिलहाल तो इस असामयिक वाद विवाद और लड़ाई में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन का पलड़ा भारी दिखाई देता है, उसकी वजह यहीं है कि बाबा रामदेव ने मुखर होने के लिए सही समय नहीं चुना, निष्पक्ष मुल्यांकन में उनका पलड़ा भारी न भी रहै, परंतु बराबर जरूर रहैगा। अभी भी उन्होने भले ही अपना पत्र केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के अनुरोध पर वापस ले लिया हो, परंतु वे झुके नहीं है। 25 सवाल एलोपैथ पर फिर से दागे है, उसके तकनीकी जवाब भी मिल गये है। बाबा रामदेव पर एलोपैथ समर्थक चिकित्सको ने आपराधिक प्रकरण भी दर्ज कराए हैं। परंतु अविचलित बाबा समझोते की भूमिका में नहीं दिखाई दे रहै है, सत्ता पक्ष के साथ उनके संबंध, लॉबिंग और एक सशक्त कार्पोरेट के रूप में उनकी मजबूत स्थिती उसकी जड़ है। आयुर्वेद को अपनी जड़े मजबूती से जमाने के लिए बाबा जैसे शक्तीशाली माध्यम की जरूरत है। इसका मतलब एलोपैथ चिकित्सको और सहयोगियो के बलिदान को नकारना बिल्कुल नहीं है, क्योंकि मूलतः तो वे सब भी भारतीय है। अगर आयुर्वेद सशक्त होता है फूलता फलता है तो एक भारतीय के नाते गर्व उनको भी होगा। वर्तमान मे दूसरी लहर काबू में आती दिख रही है, तीसरी लहर अपना जलवा न दिखा दे, इसी के मद्देनजर एलोपैथ, आयुर्वेद, होम्योपैथ और योग में सामंजस्य बैठाकर राष्ट्र हित सर्वोपरि हो, इस देश में केंद्र सरकार को अहम भूमिका निभाना चाहिए।