April 26, 2024

ओंकारेश्वर वेदान्त दर्शन का अदभुत केन्द्र बनेगा –मुख्यमंत्री

आदिशंकराचार्य की प्रतिमा लगाकर उनके योगदान को चिरस्मरणीय रखा जायेगा
एकात्म यात्रा का शुभारम्भ

उज्जैन,19 दिसम्बर(ब्रजेश परमार/इ खबरटुडे)। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि ओंकारेश्वर में आदिशंकराचार्य की प्रतिमा स्थापित कर उनके योगदान को चिरस्मरणीय बनाया जायेगा। ओंकारेश्वर वेदान्त दर्शन के अदभुत केन्द्र के रूप में स्थापित होगा। समाज ठीक दिशा में चले, इसलिये सन्तों के नेतृत्व में आदिशंकराचार्य के अद्वैतवाद का प्रचार-प्रसार किया जायेगा।

आज सनातन धर्म बचा है तो वह शंकराचार्य की देन है। वे न होते तो भारत का यह स्वरूप ही न होता। उन्होंने उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम को जोड़ा। सांस्कृतिक रूप से देश को एक किया।

मुख्यमंत्री ने कहा कि यह एक अदभुत बात है कि बद्रीनाथ मन्दिर में केरल के नंबुरिपाद ब्राह्मण पुजारी हैं। द्वादश ज्योतिर्लिंग की कल्पना भी शंकराचार्यजी ने की। दुनिया के सामने आज जितने संकट हैं, उन सबका समाधान अद्वैत वेदान्त में है। शंकराचार्य सर्वज्ञ थे। ओंकारेश्वर में गुरू से ज्ञान प्राप्त कर वे भारत भ्रमण पर निकल गये और स्थान-स्थान पर शास्त्रार्थ कर अपनी विद्वता स्थापित की। वे सभी रूढ़ियों को समाप्त करने वाले सन्यासी थे।
‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के दर्शन के माध्यम से सारी दुनिया को एक ही परिवार के रूप में मानना, प्राणियों को भी अपने समान दर्जा देना उनकी विशेषता थी। आदि शंकराचार्य ने कहा कि धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो। प्राणियों में सद्भावना हो। उन्होंने विश्व कल्याण का आव्हान किया और कहा कि एक ही चेतना सभी में है। कोई भी छोटा-बड़ा नहीं है। पशु, पक्षी, पेड़, पौधों सभी को उन्होंने एक समान माना।

अद्वेत वेदांतवाद का प्रचार प्रसार हो
मुख्यमंत्री ने कहा कि अद्वैत वेदान्त का प्रचार-प्रसार जन-जन में होना चाहिये। आज की पीढ़ी उनको भूलती जा रही है। एकात्म यात्रा में अद्वैत वेदान्त का प्रचार-प्रसार तो होगा ही, माता, बहनों, बेटियों का सम्मान करने की शिक्षा भी दी जायेगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि मध्य प्रदेश सरकार ने बच्चियों के साथ दुराचार करने वालों को मृत्युदण्ड देने का प्रावधान किया है। एकात्म यात्रा के माध्यम से पर्यावरण बचाने, भेदभाव मिटाने का सन्देश भी दिया जायेगा।

संतों के साथ शुभारंभ
इसके पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, स्वामी परमात्मानन्द सरस्वती, स्वामी विश्वेरानन्द, सन्त रामेश्वरदासजी, स्वामी अतुलेश्वरानन्द सरस्वती एवं अन्य गणमान्य सन्तों द्वारा आदिशंकराचार्य के चित्र के संमुख दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। इसके बाद पादुका पूजन किया एवं एकात्म यात्रा का ध्वज यात्रा के लिये सौंपा गया। कार्यक्रम में सभी सन्तों की ओर से स्वामी परमात्मानन्द एवं स्वामी विश्वेरानन्द द्वारा मुख्यमंत्री को रूद्राक्ष की माला पहनाकर आशीर्वाद दिया।

भारतीय संस्कृति आज भी यथावत
आचार्य परिषद के सचिव सन्त परमात्मानन्द सरस्वतीजी ने कहा कि भारतीय संस्कृति वेद पर आधारित है और निरन्तर है। विश्व में कई संस्कृतियां खड़ी हुईं और नष्ट हो गईं, लेकिन भारतीय संस्कृति आज भी जीवित है। हमें इस संस्कृति का संवर्द्धन कर इसकी रक्षा करना होगी। हिन्दू धर्म ऐसा धर्म और संस्कृति है, जो सर्वग्राही है। द्वैत होने पर भी अद्वैत का दर्शन कराने वाली हमारी संस्कृति है। उन्होंने कहा कि अभिवादन की परम्परा हमारी संस्कृति का परिचायक है। एकत्व की, समन्वय की, समरसता की भावना हमारे अभिवादन में ही है। हमारी संस्कृति ने आदिकाल से ऐसी सन्तानों को जन्म दिया, जिन्होंने भारत माता की सेवा की। हम सदैव सर्वे भवन्तु सुखिन: की चाह रखने वाले हैं। इसी उज्ज्वल परम्परा में आदिशंकराचार्य ने जन्म लिया। उनका जन्म संक्रमणकाल में हुआ, जब आन्तरिक व बाह्य विभाजन विकट स्थिति में था।
वे इतने समर्थ पुरूष थे कि उन्होंने आध्यात्मिक व धार्मिक साम्राज्य की प्रतिस्थापना की। आध्यात्म मार्ग से देश को एक बनाया। शंकराचार्य ने हमारे पारम्परिक व सामाजिक मूल्य को समृद्ध किया। मातृ देवो भव:, अतिथि देवो भव: के सिद्धान्त का पालन करते हुए शंकराचार्य ने सन्यास लेने के बाद भी परम्पराओं को तोड़ते हुए अपनी मां का अन्तिम संस्कार किया। उन्होंने कहा कि आज भी हम उसी संक्रमणकाल से गुजर रहे हैं। विकास के दो पहलू हैं। बाह्य जगत से संसाधन का व आन्तरिक रूप से जीवन मूल्य का विकास होना चाहिये। यह काम वेदान्त दर्शन से ही हो सकता है।
उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एकात्म यात्रा के माध्यम से आन्तरिक विकास करने का बीज स्थापित कर दिया है। ऋषियों के आशीर्वाद से ही ऐसे शासक मिलते हैं। परमात्मानन्दजी ने कहा कि मुख्यमंत्री ओंकारेश्वर को आने वाले समय में शंकराचार्य के तीर्थ के रूप में विकसित करने जा रहे हैं।

आद्ध शंकराचार्य ने देश को जोड़ने का काम किया
कार्यक्रम में सन्त विश्वेश्वरानन्दजी ने कहा कि आदि शंकराचार्य ने अदभुत कार्य किया। वे सैकड़ों वर्ष पूर्व दक्षिण में जन्मे और ओंकारेश्वर में आकर उन्होंने सन्यास ग्रहण किया। तत्कालीन समय में हमारा देश विभक्त हो रहा था, उसको जोड़ने का काम उन्होंने किया। आदिशंकराचार्य की देन हमारे देश के तीर्थ हैं। जब हम बद्रीनाथ और रामेश्वरम जाते हैं तो उन्हें स्मरण करते हैं। सभी तीर्थों की पृष्ठभूमि में कोई है तो वह आचार्य शंकर हैं। भारत को शंकराचार्य ने बहुत कुछ दिया। उन्होंने देश की तीन बार पदयात्रा की। शास्त्रार्थ करके वैदिक धर्म की पुनर्स्थापना करने में उनका महती योगदान है। वे हमारे धर्म, संस्कृति के आधार स्तंभ हैं। चारों दिशाओं में स्थापित चारों मठों की सुरक्षा करने का दायित्व हमारा है। बत्तीस वर्ष की आयु में उन्होंने शरीर त्याग दिया। शंकराचार्य ने समाज को एक किया और समरसता प्रदान की है।

एकात्म यात्रा के उज्जैन प्रखण्ड के प्रभारी राघवेन्द्र गौतम ने स्वागत भाषण में कहा कि नर्मदा यात्रा के समय जब नर्मदा यात्रा ओंकारेश्वर पहुंची थी, तब सन्तों के आग्रह पर आदिशंकराचार्य की प्रतिमा स्थापित करने का विचार उपजा था। सरकार व समाज मिलकर शंकराचार्यजी की मूर्ति की स्थापना करेंगे। इससे ओंकारेश्वर को एक नई पहचान मिलेगी। ओंकारेश्वर में 108 फीट ऊंची शंकराचार्य जी की मूर्ति की स्थापना होगा और इसके लिये धातु संग्रहण करने हेतु एकात्म यात्रा निकाली जा रही है। एकात्म यात्रा उज्जैन के साथ-साथ तीन अन्य स्थानों से आज ही प्रारम्भ हो रही है।

संतों का स्वागत, प्रतिभागियों को पुरस्कार
कार्यक्रम में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मौजूद सभी सन्तगणों का पुष्पहार से एवं नमन कर स्वागत किया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने आदिशंकराचार्य के जीवन पर आधारित चित्रकला प्रतियोगिता के विजेता देव परमार, आध्या द्विवेदी एवं सिद्धार्थ वर्मा को प्रमाण-पत्र एवं पुरस्कार वितरित किया। कार्यक्रम में सन्त श्री रामेश्वरदास, श्री अतुलेश्वरानन्द सरस्वती, श्री रामेश्वरदास तराना, श्री उमेशनाथजी महाराज, श्री रंगनाथजी महाराज, ब्रह्मकुमारी उषा दीदी, श्री दिग्विजयदास, श्री विष्णुदास, श्री कृष्णदास महाराज, श्री शेषानन्दजी महाराज, श्री राधेबाबा, श्री राघवदास महाराज, नित्यऋषि, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की धर्मपत्नी श्रीमती साधना सिंह चौहान, ऊर्जा मंत्री पारस जैन, महापौर श्रीमती मीना जोनवाल, विधायक डॉ.मोहन यादव, दिलीपसिंह शेखावत, बहादुरसिंह चौहान, मुकेश पण्ड्या, मेला प्राधिकरण अध्यक्ष श्री विजय दुबे, एकात्म यात्रा के उज्जैन प्रभारी राघवेन्द्र गौतम, यूडीए अध्यक्ष जगदीश अग्रवाल, मप्र पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष तपन भौमिक, इकबालसिंह गांधी, श्याम बंसल, एकात्म यात्रा ग्रामीण प्रभारी किशोर मेहता, केशरसिंह पटेल, मप्र फार्मेसी काउंसिल के ओम जैन, कलेक्टर संकेत भोंडवे, पुलिस अधीक्षक सचिन अतुलकर सहित बड़ी संख्या में गणमान्य नागरिक एवं जनप्रतिनिधिगण मौजूद थे। आभार प्रदर्शन यूडीए अध्यक्ष जगदीश अग्रवाल ने किया। कार्यक्रम का संचालन श्री शैलेन्द्र व्यास स्वामी मुस्कुराके ने किया। कार्यक्रम में भोपाल के जिया बैण्ड ने भजन की प्रस्तुति दी, नित्यऋषि ने शिव भजन तथा खुशबू पांचाल ने कथक नृत्य प्रस्तुत किया।

इमली चौराहा अब शंकराचार्य चौराहा
मुख्यमंत्री श्री चौहान ने घोषणा की कि उज्जैन के इमली चौराहे का नामकरण अब शंकराचार्य चौराहा किया जायेगा। साथ ही यहां शंकराचार्य की आदमकद प्रतिमा भी स्थापित की जायेगी।

मुख्यमंत्री ने ध्वज थामा
कार्यक्रम के समापन पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एकात्म यात्रा का ध्वज थामा, उनकी धर्मपत्नी श्रीमती साधना सिंह ने मंगल कलश थामा एवं कार्यक्रम के अध्यक्ष स्वामी विश्वेश्वरानन्दजी ने शंकराचार्यजी की चरण पादुकाएं थामी तथा भगवान आदि शंकराचार्य की एकात्म यात्रा का नेतृत्व किया।

मुख्यमंत्री श्री चौहान की हवाई पट्टी पर अगवानी
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आज मंगलवार को पूर्वाह्न 11.30 बजे उज्जैन पहुंचे। उज्जैन पहुंचने पर दताना हवाई पट्टी पर जनप्रतिनिधियों एवं प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा उनका स्वागत किया गया। मुख्यमंत्री के साथ उनकी धर्मपत्नी श्रीमती साधना सिंह भी थीं।

आदिवासियों ने सौंपा कलश एवं तीर्थ क्षेत्र की मृदा
आदि शंकराचार्य की प्रतिमा बनाने के लिये धातु संग्रहण महाअभियान के शुभारंभ पर मगंलवार को यहां आरोण्या आदिवासी सेवा संस्थान उज्जैन रजि. के तत्वावधान में आदिवासी समाज के महिला-पुरुष ने धातु के रूप में ताम्बे का कलश व तीर्थ क्षेत्र उज्जयिनी की मंत्रोक्त मृदा भेंट की।

विधिवत मंत्रोच्चार के साथ कलश व मृदा पूजन कर मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को भेंट किया गया। संस्थान के सचिव विजयेन्द्रसिंह आरोण्या ने बताया कि करीब दो किलो वजन के तांबे के कलश में शिप्रा नर्मदा के साथ गंगा का जल था ।इस दौरान आदिवासी वर्ग के गौड़, माझी, भील, भिलाला आदि समाज के लोग मौजूद रहेंगे। तीर्थक्षेत्र की मंत्रोक्त मृदा का उपयोग आधारस्तंभ व धातु का उपयोग प्रतिभा हेतु होगा।

आरोण्या के अनुसार भगवान शंकर के अंश व महानता वनस्पतिज्ञ आदि शंकराचार्य ने अपने जीवनकाल में शास्त्रोक्त व वानस्पतिक महत्व प्रतिपादन तीर्थक्षेत्र उज्जयिनी में क्षिप्रा पार ही किया था, जिससे यहां की वनस्पति मृदा का प्रतिमा निर्माण हेतु सर्वाधिक है।

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