November 15, 2024

श्रृष्टि नहीं इसके प्रति दृष्टि है दुखों का कारण

भागवत ज्ञान गंगा यज्ञ के चौथे दिन सिंथल पीठाधीश्वर क्षमाराम महाराज ने भागवत कथा का भावपूर्ण वर्णन 

रतलाम 02 दिसम्बर(इ खबरटुडे)।भगवान के दो प्रेमियों, भक्तों का मिलन संसार के सामान्य प्राणियों की तरह नहीं होता है। उनके मिलन में भगवत प्रेम का रोमांच व भाव होता है। दोनों भक्तों की चर्चा में केवल भगवत रस प्रवाहित होता है। यह बात पुरोहितजी का वास स्थित बड़ा रामद्वारा पर चल रहे भागवत ज्ञान गंगा यज्ञ के चौथे दिन सिंथल पीठाधीश्वर क्षमाराम महाराज ने भागवत कथा का भावपूर्ण वर्णन किया जिसे सुनकर भक्त भाव विभोर हो गए।

महाराज ने शुक्रवार को श्रृष्टि चक्र का वर्णन करते हुए कहा कि परमात्मा ने शरीर व श्रृष्टि दुखों से छूटने के लिए निर्मित की है। परंतु हम श्रृष्टि और शरीर को पाकर और भी दुखी, सतापित हो जाते हैं। श्रृष्टि में शरीर के आधीन होकर माया, मोह, लोभ, काम जैसे बंधनों में फंस जाते हैं और दुखी होकर जिम्मेदार श्रृष्टि और शरीर को मानने लगते हैं। हमें जो लाभ श्रृष्टि और शरीर से लेना था वह नहीं ले पाते। दुखों का कारण श्रृष्टि नहीं बल्कि इसके प्रति हमारी दृष्टि हैं। यही हमारे दुखों, नरकों, 84 लाख योनियों और भ्रम का कारण है।

निस्वार्थ सेवा का प्रतीक के वराह अवतार
महाराज ने वराह अवतार के प्रसंग का वर्णन करते हुए समझाया कि व्यक्ति को स्वार्थ व अभिमान से शून्य होकर सबके भले के लिए कार्य करना चाहिए। यही मोक्ष प्राप्ति और पुण्य अर्जन का साधन है। जैसे वराह भगवान ने स्वयं के लिए नहीं बल्कि समाज के कल्याण और सेवा के लिए जन्म लिया और हर कार्य किया। महाराज ने कपिल अवतार का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि कपिल द्वारा दिए गए उपदेशों का भलीभांति अध्य्यन करने के बाद व्यक्ति के मन में भ्रम या संशय नहीं रहता । उन्होंने कहा कर्म योग, भक्ति योग, ज्ञान योग का रहस्य भक्तों के लक्ष्ण, आत्मा का स्वरूप, माया का स्वरूप, जगत का स्वरूप का वर्णन भी उन्होंने किया है।

महाराज ने गुरु कथा का भी वर्णन किया। कथा श्रवण के दौरान मौजूद महिला-पुरुष कई बार भाव विभोर हो उठे। कथा प्रारंभ के दौरान बड़ा रामद्वारा के महंत गोपालदास जी महाराज से भी बड़ी संख्या में भक्तों ने आशीष ली।

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