राग-रतलामी/ मजेदार मुकाबला भैयाजी और बहुरानी का, ग्रामीण में फूल छाप का खेल बिगाडेगी मामा भांजे की जोडी
तुषार कोठारी
रतलाम। जब तक लिस्ट नहीं आई थी,पंजा पार्टी के टिकट को लेकर रोजाना अलग अलग दावे किए जा रहे थे। टिकट की आस लेकर पंजा पार्टी में शामिल हुए दादा को पूरी उम्मीद थी कि टिकट उन्ही को मिलेगा,लेकिन अचानक नगर निगम वाली आपा का नाम चर्चाओं में आ गया। राजनीति के जानकारों ने हिसाब यह लगाया था कि जावरा में अल्पसंख्यक को टिकट नहीं मिला है,इसलिए रतलाम का टिकट अल्पसंख्यक कोटे में जाएगा और इसलिए नगर निगम वाली आपा का नाम चलने लगा। फूल छाप वाले खुश हो गए। हार जीत का हिसाब एक लाख तक जा पंहुचा। लेकिन जल्दी ही पंजा पार्टी की खबरें बदलने लगी और उस्ताद की बहुरानी का नाम चर्चाओं में आ गया। पिछले नगर निगम चुनाव में बहुरानी ने पचास हजार से ज्यादा वोट हासिल किए थे। यही तमगा बहुरानी के काम आया और आखिरकार पंजा पार्टी ने बहुरानी को ही टिकट थमा दिया। अब मुकाबला भैयाजी और बहुरानी के बीच है और सीधा है। शहर में कोई नेता बागी नहीं हुआ है। सेठ जी नाराज तो है,लेकिन बागी नहीं है।
चुनावी चकल्लस करने वालों का मानना है कि पंजा पार्टी ने टिकट बेहद समझदारी से दिए हैं। पंजा पार्टी ने शहर से किसी और को टिकट दिया होता तो इज्जत बचाना भी मुश्किल हो जाता। अब कम से कम सम्मान सुरक्षित रहने की पूरी उम्मीद है।
खेल बिगाडेगी मामा भांजे की जोडी
टिकट के मामले में पंजा पार्टी ने ग्रामीण सीट पर भी समझदारी दिखाई। जनपद वाले साहब को आखरी वक्त में ठेंगा दिखा दिया और थावर भूरिया को मैदान में उतार दिया। पंजा पार्टी के इस कदम से ग्रामीण सीट पर असंतोष समाप्त हो गया। जनपद वाले साहब के रहते फूल छाप वालों को बडी आसानी नजर आ रही थी,लेकिन अब मामला कठिन हो गया है। और तो और,फूल छाप का टिकट लेकर चुनाव लड रहे मास्टर साहब की शुरुआती चाल ही गडबडाती दिख रही है। मास्टर साहब,ग्रामीण क्षेत्र के चर्चित मामा भांजे की जोडी की गिरफ्त में आ गए है। फूल छाप को जानने समझने वालों का कहना है कि मामा भांजे की जोडी बने बनाए खेल को बिगाडने में सक्षम है। भांजे ने पहले जिला पंचायत में पंजे का दामन छोडकर फूलछाप वाली अध्यक्ष को कुर्सी से उतरवा दिया था। मामा ने जैसे तैसे जोड तोड करके काश्तकारों के लिए बनाए गए आयोग पर कब्जा कर लिया था,लेकिन इसके बावजूद भी मामा आम किसानों पर कभी असर नहीं डाल पाया। मामा भांजे की इस जोडी से पूरी फूलछाप पार्टी नाराज है। अगर मास्टर साहब इस जोडी के चक्कर में ही पडे रहे,तो उनका खेल बिगडने में देर भी नहीं लगेगी।
आचार संहिता फोबिया का असर लक्ष्मी जी पर
जिले के तमाम अफसरों पर आचार संहिता फोबिया हावी है। पहले संपत्ति विरुपण के नाम पर महाराणा प्रताप के चित्र पर चूना पोता और फिर माफियां मांगी गई। चुनाव आयोग को सफाई दी गई कि यह कृत्य अज्ञानतावश हो गया था। इतने से भी अफसरों को सबक नहीं मिला। दीपावली पर सदियों से लक्ष्मी पूजन करने की पंरपरा है। लक्ष्मी पूजन में नगद राशि और आभूषण भी रखे जाते है। इधर रतलाम में महालक्ष्मी मन्दिर पर आभूषण और नोट रखने की परंपरा भी बरसों पुरानी है। लेकिन आचार संहिता फोबिया के मारे अफसर वहां भी जा पंहुचे। जब श्रध्दालु जन अपनी स्वअर्जित धनराशि मन्दिर में जमा करवा रहे थे,तब तो किसी ने आपत्ति दर्ज नहीं करवाई,लेकिन जब राशि वापस करने का मौका आया,तो इस पर रोक लगा दी गई। चुनाव आयोग के साफ निर्देश है कि यदि किसी राशि का दुरुपयोग चुनाव को प्रभावित करने के लिए किया जा रहा हो,तो उसे जब्त किया जाए। लेकिन लकीर के फकीरों ने इसकी मंशा को नहीं समझा और केवल धनराशि की सीमा पचास हजार रु.को पकड लिया। मन्दिर के पुजारी को हुक्म सुना दिया कि पचास हजार से अधिक राशि देने वालों को राशि नहीं लौटाई जाए। उनसे कौन पूछे कि भईया मन्दिर में पूजा के लिए रखी गई राशि का चुनाव में कौन उपयोग या दुरुपयोग करने वाला है? आचार संहिता फोबिया के मारे अफसर मन्दिर में ऐसे पंहुचे,जैसे कोई आतंकवाद का अड्डा चल रहा हो। मन्दिर की रकमों की गिनती लगाई गई। लक्ष्मी जी की पूजा के लिए धनराशि देने वाले श्रध्दालुओं को अब यह भी पूछा जाएगा कि आचार संहिता लागू है,तो वे लक्ष्मी जी की पूजा क्यो कर रहे थे?
भगवान जाने कैसे चुनाव होंगे…?
कई कई चुनाव देख चुके अनुभवी लोगों को इस बार बडी शंकाएं है। जिले के साहब लोगों की ढील पोल के चलते यह सवाल बार बार पूछा जा रहा है कि चुनाव सही ढंग से हो पाएंगे या नहीं। ढील पोल का सबसे ताजा उदाहरण उस दिन सामने आया,जब पर्चे दाखिल करने का समय समाप्त हुआ। अंतिम समय दोपहर तीन बजे का था। खबरचियों को पूरे जिले की जानकारी चाहिए थी। ये काम महज आधे घण्टे का था। पांचों सीटों को मिलाकर महज ६६ पर्चे दाखिल हुए। लेकिन ६६ उम्मीदवारों की जानकारी इक_ा करने में अफसरों ने छ: घण्टे लगा दिए। खबरची रात तक परेशान होते रहे कि जिले में कितने प्रत्याशियों ने नामांकन दाखिल किए है? अभी तो केवल परचों की जानकारी का मुद्दा था। अभी चुनाव प्रक्रिया के कई पडाव बाकी है। ढील पोल का आलम ऐसा ही रहा,तो भगवान जाने आगे क्या होगा..?