May 18, 2024

पंजाब केसरी लाला लाजपतराय

(पुण्यतिथि 17 नवंबर पर विशेष लेख)

-डॉ.डीएन पचौरी

आज शेरे पंजाब या पंजाब केसरी लाला लाजपत राय का पुण्य सम्रण दिवस है। 30 अक्टूबर 1928 को जब लाला जी के नेतृत्व में साइमन कमीशन वापिस जाओ ,का नारा लगाते हुए रैली पर तत्कालीन लाहौर के एसपी मिस्टर स्काट ने लाठी चार्ज का आर्डर दिया तो लाला लाजपत राय को गंभीर चोट आई और उसी शाम एक सभा में भाषण देते हुए लाला जी ने हुंकार भरी कि मेरे शरीर पर पडी लाठी की एक एक चोट ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत की कील साबित होगी। उनकी हालत बिगडती गई और 17 नवंबर को उनका देहान्त हो गया। भगतसिंह ने घोषणा की  कि लाला जी की मृत्यु का बदला लिया जाएगाऔर अगले ही माह भगतसिंह,राजगुरु और चन्द्रशेखर आजाद ने स्काट के धोखे में सहायक पुलिस सुपरिटेन्डेन्ट सांडर्स को गोली मार दी।
उस समय भारत में कांग्रेस में दो दल थे। एक उदारवादी या नरम दल ,जिसमें गोपालकृष्ण गोखले और उनके अनुयायी गांधी जी,मोतीलाल नेहरु आदि थे। जबकि दूसरा उग्रवादी संगठन या गरम दल कहलाता था जिसे लाल-बाल-पाल के नाम से जाना जाता था। इसमें पंजाब से लाला लाजपतराय,महाराष्ट से लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और बंगाल से विपिनचन्द्र पाल थे। देश की आजादी के लिए कौन से दल के कार्यकलाप अधिक कारगर थे ये विवाद का विषय हो सकता है,किन्तु इसके पूर्व सन 1942 के भारत छोडो आंदोलन पर ध्यान केन्द्रित करें,तो यह पता चलता है कि भारत में अंग्रेजी साम्राज्य की नींव सन 1942 से 45 के बीच हिली। सन 1857 के बाद पहली बार इतनी बडी क्रान्ति हुई थी। हजारों रेल की पटरियां उखाडी गई,सैंकडों पोस्ट आफिस जला दिए गए,सरकारी कार्यालयों में तोडफोड की गई,देश के लाखों लोग गिरफ्तार हुए और हजारों गोलीबारी का शिकार हुए। बम्बई में ग्वालिया टैंक पर सरदार पटेल ने एक लाख लोगों के सम्मुख जो उत्तेजक भाषण दिया उसका व्यापक प्रभाव पडा और अधिकतर नेताओं को जेल में डाल दिया गया। इस बात का जिक्र इसीलिए किया जा रहा ैह कि ब्रिटिश पार्लियामेन्ट में विन्सटन चर्चिल ने सन 45-46 मे वहांं के तत्कालीन प्रधानमंत्री क्लैनेट एटली से पूछा था कि भारत को आजादी देने की इतनी जल्दी क्यो की जा रही है? तो ऐटली का कहना था हमारी खुफिया विभागीय रिपोर्ट है कि भारत की जनता अब हमारे नियंत्रङ्क से बाहर होती जा रही है। अब हम अधिक समय तक भारत की सेना और भारत की जनता पर अधिक समय तक शासन नहीं कर सकेंगे। अत: समझदारी इसी में है कि हम जल्दी उन्हे आजादी देकर सम्मानित वापिस आ जाए।यदि उग्रवादी गरम दल की राह पर चला जाता तो हो सकता है कि ऐसी स्थिति लाल-बाल-पाल के जमाने में भी आ सकती थी और देश को आजादी 20 वर्ष पहले ही मिल जाती। ये तो स्पष्ट है कि अंग्रेज इसलिए देश छोड कर नहीं गए कि अंहिसा से उनका हृदय परिवर्तन हो गया था। पंजाब,महाराष्ट्र,बंगाल और देश के सभी कोनों से क्रान्ति का बिगुल बजता तो मु_ी भर अंग्रेजों को भगाना कोई बडी बात नहीं थी।
लाला लाजपतराय विचारों और कार्यकलापों से ही क्रान्तिकारी थे। सन 1907 में रावलपिण्डी में अशान्ति फैलाने के जुर्म में 6 माह के लिए माण्डले जेल भेजे गए। भारत की दयनीय स्थिति स्पष्ट करने के लिए वे विदेश भी गए और अप्रैल 1914 में लन्दन गए। प्रथम विश्वयुध्द छिडने पर वे भारत नहीं आ पाए। उन पर अंग्रेजों ने जर्मनी से दस हजार रुपए लेने का आरोप लगाया। लाला जी ने यंग इण्डिया नामक पुस्तक लिखी,जिसमें ब्रिटिश शासन के दमन का यथार्थ वर्णन था और इसकी भूमिका ब्रिटिश पार्लियामेन्ट के सदस्य वेजवुड ने लिखी किन्तु ये ब्रिटेन और भारत दोनो जगह प्रतिबन्धित हो गई।
लाला लाजपतराय विश्व युध्द के पश्चात 1920 में देश लौटे और असहयोग आन्दोलन छेड दिया,जिसके कारण उन्हे डेढ वर्ष की जेल हुई। बारडौली और चोरी-चौरा काण्ड जिनमें गोलियां चली और किसानों और पुलिसवालों की हत्याएं हुई। तब गांधी जी ने असहयोग आन्दोलन वापिस ले लिया। इस पर लाला लाजपतराय ने विरोध किया और कांग्रेस की एक अलग स्वतंत्र पार्टी का गठन किया। उन्होने आर्य समाज की सदस्यता ग्रहण की और डी.ए.वी कालेज तथा एंग्लो संस्कृत विद्यालय की स्थापना की। अपनी मात श्री के नाम पर एक लाख रुपए देकर गुलाब देवी अस्पताल बनवाया। उन्होने 1897 व 1899 के अकाल  पीडितों की भरपूर सहायता की और 1905 में कांगडा में आए भूकम्प में दिल खोलकर दान दिया। वे घर से सम्पन्न थे और उन्होने वकालत में अच्छा पैसा बनाया था। जो उन्होने देशहित में खर्च कर दिया। यदि कोई पीडीत लाहौर आता था तो लाला जी उसकी यथोचित सहायता करते थे। वे अच्छे वक्ता और विद्वान थे। तथा उन्होने आर्य समाज गजट,पीपल तथा वन्दे मातरम जैसे समाचार पत्रों का प्रकाशन किया। आज उनके नाम पर दिल्ली में लाजपत नगर,लाजपतराय मार्केट,खडगपुर में लाला लाजपतराय हाल आफ रेसीडेन्सी,मोंगा पंजाब में लाला लाजपत राय इंजीयिरिंग कालेज वैटरनरी कालेज आदि स्थित है। इस महान देश भक्त और मनीषी को उनकी पुण्यतिथि पर सादर नमन।

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