May 19, 2024

ज़फरूल इस्लाम का रोना ही कोरोना हैं

  1. पंडित मुस्तफा आरिफ

हाल ही में फ्रांस से रवांडा के 1994 के नर संहार के लिए जिम्मेदार हेतू जाति के फेलेसिन काबूगा को गिरफ्तार किया गया है, काबूगा तब से ही फरार थे। उन पर तत्सु जाति के 8 लाख लोगो के नरसंहार में शामिल होने का आरोप है। सांप्रदायिकता दर असल नफरत का पर्याय है, जिसका मूल आधार मानवीय स्वार्थ होता है। स्वार्थ का कारण कुछ भी हो सकता है। जिसे हम मनु या आदम कहते हैं का निर्माण ईश्वर ने किया, तब दानव या शैतान ने उसके सामने नतमस्तक होने से इंकार कर दिया। इस संबंध में विभिन्न धर्म शास्त्रों की विभिन्न मान्यताएं या मत हो सकते हैं। लेकिन कुरान का मत यह है कि ईश्वर ने दोनों को जन्नत से निकाल दिया, शैतान ने ये संकल्प लिया कि जो मनुष्य सन्मार्ग पर चलेंगे मैं उन्हें भ्रमित कर धर्म विरोधी मार्ग पर चलाऊंगा। ईश्वर ने कहा कि जब फैसले का दिन आएगा जब जो तेरा साथ देंगे वो दंडित किये जाएंगे। सांप्रदायिकता विशुद्ध मुस्लिम देशों मे शिया, सुन्नी और एहमदिया के बीच है। पाकिस्तान में मूल और भारत से जाकर बसें मुसलमानों के बीच है। और अगर भारत के सब मुसलमान हिंदू बन जाएँ तब मूल और परिवर्तित मुसलमानों के बीच रहेगी। इसका मनुष्य का मनुष्य से कोई नाता नहीं है, ये एक राजनैतिक आवश्यकता है, जो सृष्टि के अंत तक कभी समाप्त नहीं होगी।।।

हिंदू धर्म शास्त्र देव और दानवों के युद्ध से भरे पङे है। महाभारत पांडवों और कौरवों के बीच हुई, भगवान श्री कृष्ण ने धर्म का साथ दिया। भगवान श्री राम ने रावण का संहार कर धरती को राक्षसीय प्रवृत्ति से मुक्ति दिलाई। इस्लाम के प्रादुर्भाव से अब तक शिया और सुन्नी विवाद सांप्रदायिकता ही है। भारत में शैव और वैष्णव संप्रदाय के विवाद किसी से छिपे नहीं है। 1968 के उज्जैन के सिंहस्थ में दोनो संप्रदायों के साधुओं के बीच हुई सांप्रदायिकता इतिहास के पन्नों में दर्ज है। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी का हिंदू मंदिरों से साईं प्रतिमा हटकर उन्हें नहीं पूजने का आव्हान सर्वविदित है। अगर इसे हवा मिल जाए तो सांप्रदायिकता साईं भक्त व गैर साईं भक्त में होगी। संक्षेप में सांप्रदायिकता स्थित परिस्थिति और आवश्यकता अनुसार उपजती है, सामान्यतः आधिपत्य की पूर्ति करती हैं, चाहे वह राजनैतिक हो,धार्मिक हो या सामाजिक। सीधे शब्दों में नफरत के साथ-साथ इसमें दादागिरी का भी समावेश है।।।

वर्तमान में इस्लामोफोबिया चर्चा में है और सांप्रदायिकता का आशय यहीं है कि जो इस्लाम के पक्षधर है वो इसे ग़लत बताते हैं और जो विरोधी है, इसकी घोर निंदा करते हैं। जहां तक मेरा प्रश्न है, मेरा दृष्टिकोण भारतीय संस्कृति, कानून और धर्म आधारित है। 2015 में भारतीय जनता पार्टी के श्री नरेन्द्र मोदी के सत्ता संभालने के बाद सांप्रदायवाद की नयी अवधारणा सामने आईं, जो सत्ता का समर्थन करें वो राष्ट्र भक्त और जो विरोध करें वो राष्ट्र द्रोही। पहले जो प्रभु श्री राम और मंदिर निर्माण का समर्थन करें वो राष्ट्र भक्त और जो विरोध करें वो राष्ट्र द्रोही माने जाते थे। लेकिन भारत की लगभग समस्त जनता व धर्मों ने प्रभु श्री राम और मंदिर निर्माण के संबंध में एक सूर बना लिया, तो अलगाव का मुद्दा निर्मूल हो गया। अब मंदिर निर्माण लगभग एक राष्ट्रीय मुद्दा है और सर्वानुमति है। लेकिन इससे राजनैतिक उद्देश्य की पूर्ति नहीं होती, इसलिए भक्त और राष्ट्र द्रोही नयी परिभाषा के साथ अपना स्थान बनाएं हुए और भविष्य में भी बनाये रखेंगे।।।

भारत के मुसलमान अक्टूबर में संशोधित नागरिकता कानून और अब तबलीगी जमात के कोरोना संक्रमितों को लेकर इस्लामोफोबिया के आरोपों के चपेट में हैं। कोरोना के आगमन से CAA विरोधी आंदोलन को लगभग पूर्ण विराम लग गया है। लेकिन उसका स्थान तबलीगी जमात के एकत्रीकरण से फैले कोरोना संक्रमण ने ले लिया है। शुरूआत में इसे सांप्रदायिक बनाकर राजनैतिक लाभ उठाने का आधार बनाया गया। परंतु बाद में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री श्री अमित शाह और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत की समझाईश ने पूर्ण विराम लगाने की कोशिश की। लेकिन दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष श्री जफरूल इस्लाम के वक्तव्य ने इस्लामिक देशों के सामने रोना रोकर आग में घी डालने का काम किया। जिसे निश्चित रूप से एक समझदारी किसी भी हालत में नहीं कहा जा सकता। अगर वे तबलीगी जमात की गतिविधियों और दूरदर्शिता के अभाव का न्यायोचित अध्ययन करते तो, उन्हें ऐसे उट पटांग व्यक्तित्व की जरूरत ही नहीं पड़ती। आज सबसे पहली आवश्यकता इस्लाम धर्मावलम्बियों के आत्म मूल्यांकन की है। वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों में धार्मिक कट्टरता का उन्मूलन जरूरी है, कहीं न कहीं जेहाद के नाम पर आतंकवाद के लेवल चस्पां होने का आधार भी यहीं है।।।

तबलीगी जमात का आधार यद्यपि जहालत को मिटाना है, लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में जो शिक्षा के तरीके हैं उसे अपनाये बगैर उद्देश्य की पूर्ति असंभव है। अगर उन तरीकों को अपनाया जाता तो अनावश्यक देशाटन को रोका जा सकता है, और जो वजह विदेशी तबलीगी जमात के आवागमन की जरूरत ही नहीं है, उसे बंद किया जा सकता है। इंडोनेशिया, थाईलैंड, मलेशिया, योरोप, ब्रिटेन अमेरिका आदि विदेशी जमातो की भाषा न तो भारत में कोई समझता है और न ही भारत का निरक्षर वर्ग जिन्हें समझाना इनका लक्ष्य है समझ पाता है। दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष श्री जफरूल इस्लाम विदेशी मुस्लिम देशों के सामने रोना रोने की बजाय मुसलमानों के तौर तरीके और शैक्षणिक स्तर को सुधार कर राष्ट्रीय धारा में सम्मिलित होने की दिशा में कार्य करें तो कौम का ज्यादा भला कर पाएंगे। इस्लामिक देशों की अपनी राजनैतिक मर्यादा और भारत के साथ संबंधों की नीति हैं। 2015 से अब तक भारत से उनके संबंध और प्रगाढ़ हुए हैं। सिर्फ जफरूल इस्लाम के कहने से वो भारत के विरोध में उठ खङे होंगे ऐसा कहना और सौचना निरीह मूर्खता है। कुरान के उस सिद्धांत के विरूद्ध है जो हमें जिस जमीन पर पैदा हुए उसके प्रति वफादार होने के लिए प्रेरित करता है।।।

राष्ट्र अगर आपका आधार है तो आपको अस्थायी रूप से कोई परेशानी हो सकती है, परंतु भविष्य के लिए वे न केवल कौम का अपितु देश का भी भला कर रहै हैं। ये काम उनको व उन जैसे अन्य विचारकों को, विद्यमान राजनैतिक परिस्थितियों व उत्तेजित करने वाले तत्वों की परवाह न करते हुए करना चाहिए। याद रहै राष्ट्र सर्वोपरि का मार्ग ही समग्र कल्याण का “सिरातुल मुस्तकीम” यानि सीधा रास्ता है। अन्यथा धोबी का कुत्ता घर का न घाट का वाली स्थिति हो जाएगी। यहीं हुआ डाक्टर जाकिर नायक के साथ, जो अपने वतन को छोड़कर गिरफ्तारी के डर से भारत छोङकर चलें गयें। इस्लाम का मूलभूत आधार कुरान की वह प्रेरणा है जो हर अनुयायी को अल्लाह और उसके रसूल से जोङती है। जो अल्लाह से डरता है और रसूल के निर्देशो पर चलता है, उसे अपने देश के कानून का सम्मान करना चाहिए। अगर वो देश के कानून का उल्लंघन कर देश छोड़कर भागता है तो वो निश्चित रूप से भले ही स्वयंभू बहुत बङा विद्वान हो वोकल तो हो सकता है परंतु लोकल नहीं हो सकता है। गिरफ्तारी और कानून से डरने वाला निश्चित रूप से अल्लाह से डरने वाला नहीं है, यानी की जो सच्चा भारतीय नहीं है वो सच्चा मुसलमान नहीं है। उसे सांप्रदायिकता के वैमनस्य के ज़हर से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है। उसे सृष्टि के अंत तक समाप्त करना असंभव है।।।

विद्यमान परिस्थितियों का सामना करते हुए राष्ट्र की अस्मिता का सम्मान करते हुए जो अपना रास्ता निकाले वो ही मार्ग दर्शक है वो ही विद्वान है। याद रखें राष्ट्र सर्वोपरि है 1994 के रवांडा के नरसंहार के अभियुक्त बहुसंख्यक समुदाय हेतू जाति के नेता फेलेसिन काबूगा अपने परिवार के साथ नाम बदलकर फ्रांस में रह रहै थे, दो तीन दिन पूर्व गिरफ्तार कर लिए गये। सभी भगोङो को भारत भी पकङ रहा है। इसलिए देश के कानून पर भरोसा रखें आपके साथ निश्चित न्याय होगा और किसी स्वार्थ के वशीभूत कानून ने पक्षपात किया तो ईश्वर का न्याय जरूर आपके साथ रहेगा। लेकिन अंत में मेरी इस बात को ध्यान में रखे कि भगोङो के साथ न तो ईश्वर है न कानून। यहीं हर धर्म का मूलभूत सिद्धांत व मान्यता है।

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