पटवारी के तेल का ऐसा खेल
प्रकाश भटनागर
बचपन से सुनते आए हैं। शरीर में अलसुबह तेल से मालिश करो तो कई बीमारियों से बचे रह सकते हैं। शरीर में हाथ का पंजा भी शामिल है। निश्चित ही मालिश से पंजे की ग्रिप बढ़ती है। कलाइयों का और अधिक सटीक उपयोग संभव हो पाता है। इसलिए प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष और युवा विधायक जीतू पटवारी यदि अपनी पार्टी के तेल लेने जाने की इच्छा व्यक्त कर रहे हैं, तो इसे अन्यथा नहीं लिया जाना चाहिए। पार्टी और उसके पंजे को वैसे भी तेल मालिश की सख्त जरूरत है। पंद्रह साल की जंग को जो हटाना है।
अब बवाल मचा तो पटवारी ने कह दिया कि यह बात वह भाजपा के लिए कह रहे थे। हालांकि 28 सेकंड का वीडियो चुगली तो यही करता है कि मामला कांग्रेस से जुड़ा हुआ है। ऐसा हो तो भी कोई खास बात नहीं। यह पटवारी एंड कंपनी के लिए फिक्र की बात नहीं होना चाहिए। क्योंकि पूरी तरह तो वो भी नहीं निपटाए जा सके, जिन्होंने सन 2009 में विदिशा संसदीय सीट पर पार्टी की इज्जत सरेबाजार नीलाम कर दी थी। मध्यप्रदेश की ही बात क्या करना, दिल्ली में वह सज्जन आज भी कांग्रेस की ओर से अधिकृत तौर पर ईमानदारी तथा नैतिकता की दुहाई देते दिखते हैं, जो कुछ साल पहले लीक हुए एक वीडियो में किसी महिला के साथ बेईमानी एवं अनैतिकता से परिपूर्ण आचरण करते नजर आए थे। और बात भर पांच साल पुरानी ही तो है जब विधायक दल का उपनेता ही अपनी पार्टी के रखे अविश्वास प्रस्ताव को घता बता कर चर्चा के दौरान ही पाल बदल गया। हां, चिंता की बात तब हो सकती थी, जब पटवारी के पास एक अदद गॉडफादर नहीं होता। उन्होंने इसका पुख्ता इंतजाम कर रखा है। संभवत: राहुल गांधी को आज भी याद होगा कि किस तरह मंदसौर के सियासी महाभारत के वक्त मोटरसाइकिल रूपी रथ पर पटवारी ही उनके अर्जुन बने थे। यानी मामला सीधे ऊपर से आशीर्वाद वाला है। मध्यप्रदेश में तो फिर राजा का आशीर्वाद है ही। अब पटवारी जमीन से इतने ऊपर तो हैं ही, जहां से मिले अभयदान की काट कांग्रेस में किसी के पास नहीं है।
लेकिन कुछ संजीदा होकर विचार करें तो यह मामला वाकई शर्मनाक है। युवा मतों के दम पर मोदी ने सन 2014 में स्पष्ट बहुमत हासिल किया। शिवराज सिंह चौहान भी इसी वर्ग को फोकस करते हुए इस साल के विधानसभा चुनाव में फिर जीत पाने का दम भर रहे हैं। इन तथ्यों के बीच किसी युवा विधायक द्वारा अपनी इज्जत की खातिर सरेआम पार्टी की पगड़ी उछालने से कांग्रेस के लिए किस कदर प्रतिकूल संदेश जाएगा, इसकी अलग से व्याख्या की जरूरत नहीं है। यह कांग्रेस का अंदरूनी मामला है, लेकिन क्या यह नहीं होना चाहिए कि पटवारी को विधानसभा चुनाव के टिकट तो दूर, उसकी सम्पूर्ण प्रक्रिया से दूर कर दिया जाए! ताकि साफ संदेश जाए कि जिसकी निष्ठा दल में नहीं है, उसके लिए दल में कोई स्थान नहीं है।
कांग्रेस में ऐसा हो पाएगा, इसमें मजबूत किस्म का संदेह है। लगातार तीन विधानसभा चुनाव हार चुकी कांग्रेस के लिए यह संभव नहीं दिखता कि वह पटवारी जैसे तेजी से उभरे नेता को यूं नजरंदाज कर दे। विशेषत: तब, जबकि बात उस नेता की हो रही हो, जिसे चुनावी साल में कार्यकारी अध्यक्ष बनाने का निर्णय लिया गया हो। कांगे्रस के लिए अजीत जोगी का उदाहरण सामने है। पार्टी में रहते हुए जोगी ने उसकी छवि को नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, किंतु जब इसके चलते उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया तो वह और आत्मघाती तरीके से कांग्रेस के लिए नासूर बन चुके हैं।
ऐसे में यह दल पटवारी को लेकर ऐसा जोखिम उठा पाएगा, यह संभव नहीं दिखता है। हालांकि पटवारी और जोगी में किसी तरह की तुलना अजीत जोगी के साथ ज्यादती करने जैसी होगी। सोशल मीडिया पर कांग्रेस के तेल लेने जाने मेरे हाजिर जवाब पत्रकार मित्र मनोज वर्मा ने फेसबुक पर इंतजार शुरू कर दिया है, उन्होंने लिखा है, कांग्रेस तेल लेके आ जाए तो मुझे बताना गाड़ी में तेल खत्म हो गया है। अब पन्द्रह साल में भी कांग्रेस आखिर पांचों उंगलियां घी में और सिर कड़ाही में जाने का इंतजार ही तो कर रही है। तेल लेने तो जाना पड़ेगा कि नहीं?