तालिबान के साथ पहली बार बातचीत की मेज पर भारत, उमर अब्दुल्ला ने कसा तंज
नई दिल्ली,09 नवंबर (इ खबरटुडे)।अफगानिस्तान में शांति बहाली की कोशिशों के तहत भारत शुक्रवार को पहली बार आतंकी संगठन तालिबान के साथ बातचीत की मेज पर बैठेगा. तीन दशकों से युद्ध और आतंक का दंश झेल रहे अफगानिस्तान के भविष्य के लिहाज से ये बहुपक्षीय बैठक बेहद महत्वपूर्ण है. इस बैठक में तालिबान के प्रतिनिधि भी मौजूद रहेंगे.
भारत की गैर आधिकारिक एंट्री
रूस में हो रही इस बैठक में अफगानिस्तान में शांति और स्थायित्व के मुद्दे पर भारत चर्चा करेगा. भारत ने गुरुवार को कहा कि वह अफगानिस्तान पर रूस द्वारा आयोजित की जा रही बैठक में “गैर-आधिकारिक स्तर” पर भाग लेगा.
अफगानिस्तान में भारत के राजदूत रह चुके अमर सिन्हा और पाकिस्तान में भारत के पूर्व उच्चायुक्त टीसीए राघवन इस बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे.
रूसी विदेश मंत्रालय ने पिछले सप्ताह कहा था कि अफगानिस्तान पर मास्को- प्रारूप बैठक नौ नवंबर को होगी और अफगान तालिबान के प्रतिनिधि उसमें भाग लेंगे. बैठक में भारत की भागीदारी के बारे में पूछे जाने पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा कि हम अवगत हैं कि रूस नौ नवंबर को मास्को में अफगानिस्तान पर एक बैठक की मेजबानी कर रहा है.
भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि भारत अफगानिस्तान में शांति और सुलह के सभी प्रयासों का समर्थन करता है जो एकता और बहुलता को बनाए रखेगा तथा देश में स्थिरता और समृद्धि लाएगा.
अफगान नेतृत्व में हो प्रयास
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने जोर दिया कि भारत की सतत नीति यह रही है कि इस तरह के प्रयास अफगान-नेतृत्व में, अफगान-स्वामित्व वाले और अफगान-नियंत्रित तथा अफगानिस्तान सरकार की भागीदारी के साथ होने चाहिए.
रूसी समाचार एजेंसी तास के मुताबिक यह दूसरा मौका है जब रूस युद्ध से प्रभावित अफगानिस्तान में शांति लाने करने के तरीकों की तलाश करते समय क्षेत्रीय शक्तियों को एक साथ लाने का प्रयास कर रहा है.रूसी विदेश मंत्रालय के अनुसार, इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए अफगानिस्तान, भारत, ईरान, चीन, पाकिस्तान, अमेरिका और कुछ अन्य देशों को निमंत्रण भेजा गया है.
बता दें कि कुछ ही दिन पहले रूसी राष्ट्रपति पुतिन भारत दौरे पर आए थे. इस दौरान पीएम मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कई वैश्विक मुद्दों पर बातचीत की थी. उसके बाद ही यह बैठक आयोजित की जा रही है.
जम्मू-कश्मीर में भी ऐसी ही बातचीत क्यों नहीं?
इधर भारत सरकार की इन कोशिशों पर जम्मू कश्मीर के पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला ने तंज कसा है. उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि यदि मोदी सरकार को बातचीत की मेज पर तालिबान कबूल है तो जम्मू कश्मीर में केंद्र मुख्यधारा से इतर दूसरे तत्वों से बात क्यों नहीं कर सकती है. उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट किया, “ऐसी बैठक जहां की तालिबान भागीदारी है, इसमें मोदी सरकार को अपना गैर आधिकारिक प्रतिनिधित्व मंजूर है तो सरकार जम्मू-कश्मीर में भी मुख्यधारा से इतर काम कर रहे संगठनों से केन्द्र गैर आधिकारिक बात क्यों नहीं करती है.