Raag Ratlami- सडक़ नाली वाली सरकार के चुनाव से पहले फूटा लैटर बम,कुछ दावेदारों की करतूतें जगजाहिर करने की कोशिश
-तुषार कोठारी
रतलाम। सडक़ नाली वाली शहर की सरकार चुनने का मौसम आने वाला है और दोनो पार्टी के तमाम लीडरान अपनी अपनी पार्टी का टिकट हासिल करने की जोड जुगाड में लग गए है। चुनावी सियासत में जहां दावेदार अपने टिकट को पक्का करने की जुगत लगाते है,वहीं दूसरे दावेदारों का नाम कटवाने के रास्ते भी ढूंढते है। फूल छाप पार्टी में चूंकि दावेदारों की लिस्ट बेहद लम्बी है,इसलिए यहां खींचतान के खेल भी अभी से चालू हो गए है। इन दिनों लैटर बम चर्चाओं में है। इस लैटर बम के जरिये फूल छाप के कई दावेदारों का कच्चा चिट्ठा उजागर किया गया है। जाहिर है लैटर भेजने वाले ने अपना नाम उजागर नहीं होने दिया है,लेकिन लेटर में फूल छाप के एक तबके के नेताओं और दावेदारों की करतूतें फूल छाप के बडे नेताओं तक पंहुचाई गई है। इस चिट्ठी को फूल छाप के बडे नेता भले हींं देखें या न देखें और भले ही इसे तरजीह दें या ना दें। लेकिन इस चिट्ठी को इतना वायरल कर दिया गया है कि दावेदारों की करतूतें आम लोगों तक तो पंहुच ही गई है।
लैटर में सडक़ नाली वाली सरकार के पिछले कार्यकाल में नम्बर दो पर रहे और इस बार जोर शोर से दावेदारी कर रहे नेताजी पर वसूली करने के आरोप मढे गए हैैं। लैटर में कहा गया है कि नेताजी ने अपने पद का उपयोग कर अफसरों से जमकर वसूली की। अफसरों और कारिन्दों को कई बार जलील भी किया। पिछली बार नम्बर दो पर रहे नेता जी फिलहाल सबसे मजबूत दावेदार माने जा रहे हैै और शायद इसी वजह से लेटर में सबसे ज्यादा कहानियां उन्ही की कही गई है। लेकिन नेताजी की दावेदारी क्या रंग लाएगी,अभी यह कहना मुश्किल है। पांच सात तक नम्बर दो पर रहने के बावजूद ये नेताजी शहर में कोई खास मुकाम हासिल नहीं कर पाए। दादा पहलवान वाली उनकी छबि में भी कोई खास बदलाव नहीं आया है। फूल छाप में अन्दर तक की जानकारी रखने वालों का कहना है कि इस बार फूल छाप टिकट देने के मामले में उम्मीदवार की छबि पर विशेष ध्यान देने वाले है। फूल छाप में इन दिल्ली से नए सुधारों की नई बयार चल रही है। पहले तो फूलछाप ने पार्टी संगठन में पद देने के लिए उम्र की सीमा रेखा तय की जा चुकी है। अब ज्यादा उम्र वाले लोग फूल छाप के मण्डल या जिले के प्रमुख पदों पर तैनात नहीं किए जा सकते। इस बार फूल छाप पार्टी, सडक नाली वाली सरकार के चुनाव में भी उम्र का बन्धन लगाने की तैयारी में है। यही नहीं फूल छाप वाले लगातार दो या तीन बार जीते हुए नेताओं को भी टाटा बाय बाय बोलने के मूड में है। अगर ऐसा हो गया तो उम्मीद लगाए बैठे कई सारे नेता बेरोजगार हो जाएंगे। वैसे अभी फूल छाप पार्टी में कई सारे ताम झाम होना बाकी है। फूल छाप के किसी बडे नेता को पहले रतलाम का प्रभारी बनाया जाएगा। इसके बाद फूल छाप की कोर कमेटी बनेगी। टिकट का मामला तब कहीं जाकर सिरे से लग पाएगा. फिलहाल तो फूल छाप में नेता कार्यकर्ताओं को चुनावी प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
फूल छाप में नेता कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित किए जाने के प्रोग्राम हो रहे है,वहीं दूसरी ओर पंजा पार्टी में ऐसी किसी तैयारी का दूर दूर तक अता पता नहीं है। पंजा पार्टी के दावेदार तो बस अपने अपने आकाओं को साधने में लगे है जिससे कि टिकट की जुगाड हो जाए। चुनाव की हार जीत से बडा मसला उनके लिए यही है। उनमें से ज्यादातर तो यही मानते है कि जीत ना भी मिली तो हारकर भी नाम तो हो जाएगा।
चुनाव पंजा पार्टी का-जीत फूल छाप वालों की
फूल छाप वाले जहां सडक़ नाली वाली सरकार के चुनाव की तैयारियों में लग गए हैैं वहीं पंजा पार्टी वाले अभी अभी जवानों के चुनाव से निपटे है। पंजा पार्टी ने वैसे तो बडा कमाल कर दिखाया था,कि पंजा पार्टी की युवा इकाई का चुनाव कर लिया। चुनाव भी हाईटेक तरीके से करवाया गया। रतलाम मेंं तो पहलवान ने एमएलए पुत्र को पटखनी दे दी। वोटिंग आनलाइन हुई और गिनती भी आनलाईन। वोटर जरुर दो साल पहले ही तय हो गए थे। पंजा पार्टी वाले ही कह रहे हैैं कि जिस वक्त पूरी पार्टी को एकजुट होकर आने वाले चुनावों की तैयारियों में लगना था उस वक्त पार्टी के भीतर चुनाव करवाकर पहले से आपस में लडने वाले नेताओं को और ज्यादा लडवा दिया गया। इस का बुरा असर सडक नाली वाली सरकार के चुनाव में साफ साफ दिखाई देने वाला है। ये सब तो हुआ,लेकिन इससे भी बडी बात यह हुई कि सूबे के एक इलाके में पंजा पार्टी के पदों पर फूल छाप वाले चुनाव जीत गए। असल में हुआ ये कि पंजा पार्टी के जो नेता महाराज के साथ मामा के पास यानी फूल छाप पार्टी में चले गए,उनमें से कई सारे पंजा पार्टी के इस हाईटेक चुनाव में जीत हासिल कर पंजा पार्टी के नए पदाधिकारी बना दिए गए है। अब सूबे के एक इलाके में इतनी बडी गडबडी हुई है तो जाहिर है कि दूसरे इलाके भी गडबडियों से अछूते नहीं रह सकते। पंजा पार्टी की युवा इकाई में सूबे के मुखिया का पद किसी समय रतलाम के जनप्रतिनिधि रहे और आजकल झाबुआ के प्रतिनिधि बने हुए नेताजी के डाक्टर सुपुत्र के कब्जे में गया है। कहने वाले कह रहे हैैं कि पंजा पार्टी के कई पदों पर जब फूल छाप वालों को चुनाव जिताया जा सकता है,तो मुखिया के चुनाव में गडबडी क्यों नहीं हो सकती। गडबडी हुई हो या नहीं,इतना तय है कि पंजा पार्टी के इस चुनाव ने आने वाले चुनावों के लिए फूल छाप वालों की राह जरुर आसान कर दी है। कह सकते है कि चुनाव पंजा पार्टी का और जीत फूल छाप की।