संभागायुक्त को प्रथम श्रेणी अधिकारियों पर कार्रवाई का अधिकार नहीं-हाईकोर्ट
रतलाम 08 सितम्बर(इ खबरटुडे)। संभागायुक्त को प्रथम श्रेणी अधिकारियों की विभागीय जांच और निलंबन के आदेश जारी करने के अधिकार नहीं है। म.प्र. उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सतीशचंद्र शर्मा यह सिद्धांत पारित करते हुए उज्जैन के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डा. अशोक कुमार यादव के निलंबन और विभागीय जांच के संबंध में दिए गए आरोप पत्र को निरस्त कर दिया है।
रतलाम के एडवोकेट प्रवीण कुमार भटट ने बताया कि उज्जैन के संभागायुक्त ने एक समाचार पत्र में प्रकाशित समाचार के आधार पर अपने मातहत अधिकारी से प्रांरभिक जांच कराने के बाद 28 फरवरी 2015 को डा. यादव को निलंबित कर गंभीर आर्थिक अनियमितताओं के मामले में आरोप पत्र जारी कर कलेक्टर उज्जैन को जांच अधिकारी नियुक्त किया था। कलेक्टर द्वारा विभागीय जांच शुरू करने से व्यथित डा. यादव ने उच्च न्यायालय में याचिका प्रस्तुत की और तर्क दिया कि वे लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के अधीन कार्यरत हैं । उनके सम्बन्ध में अनुशासनात्मक कार्यवाही विभाग को है। शासन द्वारा इस पर 15 सितम्बर 2008 को राजपत्र में जारी अधिसूचना के आधार पर प्रथम श्रेणी अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही करने हेतु संभागायुक्त को सशक्त बताते हुए याचिका निरस्त करने की प्रार्थना की गई ।
याचिकाकर्ता की ओर से 15 अक्टूबर 2008 के शासन के परिपत्र में निहित प्रावधानों के अनुरूप शासन द्वारा लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के प्रथम एवं द्वितीय श्रेणी अधिकारियों के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही के सम्बन्ध में 21 मार्च 2006 को जारी अधिसूचना का हवाला दिया और बताया कि इस अधिसूचना में स्वास्थ्य आयुक्त को अनुशासनात्मक प्राधिकारी बनाए जाने से संभागायुक्त को नियम 14 म.प्र. सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) अधिनियम के प्रावधानों के तहत विभागीय जांच के अधिकार प्राप्त नहीं हैं। 15 सितम्बर 2008 को जारी अधिसूचना नियम 10 के तहत लघुशास्ति के लिए सशक्त करती है, ना कि नियम 14 के लिए।
न्यायालय ने इन तर्कों से सहमत होते हुए याचिका स्वीकार कर डॉ. यादव के विरुद्ध विभागीय जांच आदेश व आरोप पत्र को निरस्त कर दिया। प्रकरण में याचिकाकर्ता की पैरवी अभिभाषक प्रवीण कुमार भट्ट ने की।