लोकायुक्त पुलिस ने दर्ज की आईएएस अधिकारी, तहसीलदार, अपर तहसीलदार, राजस्व निरीक्षक, पटवारी पर एफआईआर
अधिकारियों के खिलाफ दूसरी कार्रवाई होने से राजस्व विभाग में हड़कंप
उज्जैन 28 सितम्बर । शासन ने जिस जमीन को 22 वर्ष पहले सीलिंग एक्ट के तहत अधिग्रहित कर लिया था उसे अधिकारियों की सांठगांठ के बाद एक महीने में सीलिंग मुक्त कर दिया गया। हैरत की बात तो यह है कि इस पूरे गोरखधंधे में पटवारी से लेकर आईएस अधिकारी तक लिप्त रहे। लोकायुक्त पुलिस ने सीलिंग एक्ट के तहत हुए भ्रष्टाचार और पद के दुरुपयोग के मामले में एक और प्रकरण पंजीबध्द कर लिया है। अभी भी लोकायुक्त पुलिस कई और प्रकरणों की विवेचना कर रही है। अधिकारियों का कहना है कि आने वाले दिनों में और भी एफआईआर हो सकती है।
गौरतलब है कि आईएएस अधिकारी एवं उपायुक्त रमेश एस. थेटे ने 25 प्रकरणों में सीलिंग एक्ट के तहत अधिग्रहित की गई भूमि को मुक्त करते हुए किसानों के पक्ष में आदेश जारी कर दिए थे। अपने कार्यकाल में पद के दुरुपयोग के जरिये आईएएस अधिकारी ने कई लोगों को लाभ पहुंचा दिया। यह मामला जब प्रकाश में आया तो राजस्व विभाग में हड़कंप मच गया। एक के बाद एक सीलिंग एक्ट भूमि के प्रकरण सामने आते चले गये। दो दर्जन से अधिक मामले प्रकाश में आने के बाद आईएएस अधिकारियों के बीच जमकर खींचतान भी चली। इसी बीच जिन लोगों की भूमि सीलिंग एक्ट के तहत फंसी रह गई, उन्होंने लोकायुक्त पुलिस से शिकायत कर दी।
लोकायुक्त पुलिस ने मामले की जाँच की तो पूरे कुएं में भांग घुली मिली। एक के बाद एक लोकायुक्त पुलिस एफआईआर दर्ज कर रही है। पूर्व में लोकायुक्त पुलिस ने भरत नामक शिकायतकर्ता की रिपोर्ट पर आईएएस अधिकारी रमेश एस. थेटे आदि के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। इसके बाद दूसरे प्रकरणों की भी लगातार जाँच चलती रही। लोकायुक्त पुलिस अधीक्षक अरुण कुमार मिश्रा के पीए एफ.एल. पंदरे ने बताया कि शुक्रवार को लोकायुक्त पुलिस ने एक और एफआईआर दर्ज की है जिसमें पटवारी से लेकर आईएएस अधिकारी तक सभी को आरोपी बनाया गया है। लोकायुक्त पुलिस के मुताबिक ग्राम धतरावदा के अंतर्गत चेनाबाई पति दरवेज नायता निवासी धतरावदा की 2.155 हेक्टेयर भूमि को वर्ष 1990 में सीलिंग एक्ट के तहत अधिग्रहित किया गया था। शासन ने विधिवत अधिग्रहित कर लिया।
इसके बाद अपने कार्यकाल में आईएएस अधिकारी थेटे सहित अन्य अधिकारियों ने सांठगांठ कर उक्त भूमि को सीलिंग से मुक्त कर दिया। लोकायुक्त पुलिस के मुताबिक 28 फरवरी 2013 को अपर आयुक्त न्यायालय में किसान की ओर से अपील की गई। इस मामले में पटवारी धतरावदा शंकरलाल कोरट ने राजस्व निरीक्षक मूलचंद जूनवाल के साथ मिलकर अपनी रिपोर्ट अपर तहसीलदार धर्मराज प्रधान और तहसीलदार आदित्य शर्मा के माध्यम से उपायुक्त रमेश एस. थेटे के न्यायालय में भिजवाई। इस रिपोर्ट में उक्त भूमि पर महिला के वारिस करामात पिता नगजी का कब्जा बताया गया। यह भी कहा गया कि वर्तमान में करामात ही जमीन पर खेती कर रहा है।
इसके बाद उपायुक्त की ओर से किसान के पक्ष में नामांतरण करने के आदेश दिये गये। आखिरकार 21 मार्च 2013 को नामांतरण की कार्रवाई शुरु हुई। इस प्रकार 22 सालों तक शासन के पास रही अधिग्रहित भूमि महज एक महीने में किसान के खाते में चली गई। हालांकि कलेक्टर बी.एम. शर्मा की ओर से उक्त मामलों में उच्च न्यायालय से स्टे ले रखा है। बताया जाता है कि उक्त मामलों में लाखों रुपये का लेनदेन हुआ है। कलेक्टर की ओर से यदि तत्काल कार्रवाई नहीं की जाती तो उक्त मामले में शासन को करोड़ों रुपये का नुकसान उठाना पड़ता। इसके बाद एक अलग ही परिपाटी शुरु हो जाती जिसके जरिये सीलिंग एक्ट के तहत अधिग्रहित भूमियों को पुन: किसानों को सौंप दिया जाता। लोकायुक्त पुलिस का कहना है कि अभी और भी प्रकरणों की जांच चल रही है जिनमें इस प्रकार के अपराध पंजीबध्द हो सकते हैं।
इन धाराओं में दर्ज हुआ अपराध
लोकायुक्त पुलिस ने आईएएस अधिकारी, तहसीलदार आदित्य शर्मा सहित जिन अधिकारियों के खिलाफ अपराध पंजीबध्द किया है उनके विरुध्द धारा 420, 109, 120बी के विरुध्द एफआईआर दर्ज की गई है। इसके अलावा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 13 (1) डी, 13 (2) के तहत कार्रवाई की गई है। उक्त मामलों में लोकायुक्त पुलिस आरोपियों की गिरफ्तारी भी करेगी।
ऐसे प्रकाश में आया था मामला
लोकायुक्त पुलिस के मुताबिक फरवरी 2013 में लोकायुक्त पुलिस के पास शिकायत पहुंची थी कि तत्कालीन पटवारी और उपायुक्त के स्टेनो की ओर से सीलिंग एक्ट के तहत अधिग्रहित की गई भूमि को मुक्त करने के लिये रिश्वत मांगी जा रही है। इसके बाद अधिकारियों की ओर से जाँच करवाई गई। उधर लोकायुक्त पुलिस भी सक्रिय हो गई, जिसके बाद धड़ाधड़ मामले प्रकाश में आने लगे।