November 20, 2024

राग रतलामी- विकास प्राधिकरण पर नजरें गडाए बैठे है पंजा पार्टी के नेता,काले कोट वाले भी उम्मीद से

-तुषार कोठारी

रतलाम। सूबे में पंजा पार्टी का परचम लहराया,तभी से पंजा पार्टी के नेताओं के मन में तरह तरह के लड्डू फूटने लगे थे। पंजा पार्टी के रतलामी नेताओं की नजरें तो विकास प्राधिकरण की इमारत पर लगी थी। ना जाने कौन किस्मतवाला होगा,जो इस इमारत में अध्यक्ष बनकर दाखिल होगा। पंजा पार्टी के तमाम नेता अपना सारा ध्यान इसी पर लगाए बैठे है।
सूबे में जब पंजा पार्टी की सरकार बनी थी,तभी से पंजा पार्टी के नेताओं के मन में लड्डू फूटने लगे थे। लेकिन शुरुआती दौर में कम बहुमत के कारण फूलछाप वाले, सरकार को लंगडी सरकार कहते थे और आए दिन डराते रहते थे कि सरकार को कभी भी गिरा देंगे। लेकिन पिछले दिनों पंजा पार्टी ने फूल छाप वालों के दो दांत तोड कर जोर का झटका दे दिया। इस झटके के असर से फूलछाप वाले अब तक नहीं उबर पाए है। लेकिन इधर पंजा पार्टी की इस मजबूती ने नेताओं के अरमानों को पंख लगा दिए है।
पंजा पार्टी के तमाम नेता अपने दिलों में हसरतें पाल रहे है। शहर में सबसे बडी हसरत तो विकास प्राधिकरण की ही है। जो कोई भी इस पर कब्जा कर लेगा,वही शहर का सबसे बडा नेता भी कहलाएगा। पंजा पार्टी के तमाम पुराने नए नेता अपने अपने आकाओं को टटोलने में लगे हुए है।
लेकिन फिलहाल पंजा पार्टी में एक बडी समस्या है। यह कोई नहीं जानता कि सत्ता की चाबी आखिरकार किसके हाथ में है। दिग्गी राजा के चेले,दिग्गी राजा के भरोसे है,तो श्रीमंत के चेले यह मान रहे है कि श्रीमंत ही सबकुछ करवाने में सक्षम है। लेकिन पंजा पार्टी के नाथ का शहर में कोई भी रजिस्टर्ड चेला नहीं है और आखिरकार चलना उनकी ही है।
पंजा पार्टी की सारी कहानी इन तीन आकाओं के बीच में झूल रही है। विकास प्राधिकरण हथियाने का हथियार कौन बनेगा कोई नहीं समझ पा रहा। कहां घंटे घडियाल बजाने से मनोकामना पूरी होगी,यह तय कर पाना बेहद मुश्किल है।
दावेदारों की तादाद का पता लगा पाना भी कठिन है। पंजा पार्टी का हर नेता खुद को सबसे मजबूत दावेदार मान रहा है। पंटा पार्टी का टिकट लेकर चुनाव में किला लडा चुकी बहुरानी से लगाकर पिछले चुनाव में पंजा पार्टी की तरफ से लडी मैडम जी तक और माम से लेकर दादा तक हर कोई दावेदारी करने को तैयार है। अपने आपको पंजा पार्टी का स्टार प्रचारक मानने वाला दादा भी पीछे नहीं है। दादा को लगता है कि पंजा पार्टी में शामिल होने के बाद उन्होने टिकट का त्याग किया था,इसलिए इस पद पर पहला हक उन्ही का है। उधर अल्पसंख्यक नेताओं का मानना है कि पंजा पार्टी की सारी इज्जत तो उन्ही के वोटों से बची है,ऐसे में पंजा पार्टी के लिए जरुरी है कि अब अल्पसंख्यकों को सम्मान दिया जाए। बरहाल एक अनार और सौ बीमार वाली इस कहानी में अनार,किस बीमार को मिलेगा इसका अंदाजा लगा पाना बेहद कठिन है। सियासत को समझने वालों का कहना है कि पंजा पार्टी में उपरी स्तर पर बडी खींचतान मची हुई है। सूबे के नेता मानते है कि नियुक्ति करने से खुश केवल एक व्यक्ति होता है और नाराज लोगों की तादात कई गुना हो जाती है। ऐसे में फिलहाल नई नियुक्तियों की कोई जरुरत ही नहीं। जो जैसा चल रहा है उसे वैसा ही चलने दिया जाए। नगर निगम चुनावों तक तो लोगों को नाराज करने का कोई मतलब ही नहीं है। जो भी करना है,चुनाव के बाद ही करेंगे।

काले कोट वाले भी उम्मीद से

जहां एक ओर पंजा पार्टी के नेता हसरतें पाले बैठे है,वहीं काले कोट वाले भी उम्मीद से है। अदालत में सरकार का नुमाइंदा बनना कोई छोटी मोटी बात नहीं होती और नुमाइंदा भी केवल एक नहीं बल्कि चार या पांच। पंजा पार्टी से जुडे तमाम काले कोट वाले इस उम्मीद में है कि सरकारी की चाबी उसी के हाथ लग जाए। उधर सरकार और कलाकार निकली। सरकार ने फूल छाप वालों के लोगों को तो बाहर का रास्ता दिखा दिया,लेकिन पंजा पार्टी वालों को लाने की बजाय सरकारी काले कोट वालों को ही काम दे दिया। सरकार की सोच यह है कि सरकारी काले कोट वाले तनख्वाह तो ले ही रहे है। इसलिए एक पंथ दो काज हो रहे है। अगर पार्टी से जुडे लोगों को काम देंगे तो उन्हे वेतन दना पडेगा और कडकी सरकार के लिए यह खर्चा भारी पड सकता है। शायद इसीलिए काले कोट वालों की फाईल भी अठकी पडी है।

मिलावटी मस्त,प्रशासन सुस्त

पूरे प्रदेश में सरकार ने मिलावटखोरों के खिलाफ महिम छेड रखी है। ना जाने कितनी जगहों पर सिंथेटिक दूध,नकली मावा,मिलावटी मसाले जैसी चीजें पकडी जा चुकी है। लेकिन रतलाम में अब तक कुछ भी नहीं हुआ। ऐसा लगता है जैसे रतलाम में सब भले लोग ही रहते है। कहीं कोई मिलावट नहीं,कहीं कोई गडबड नहीं। इस बात को लेकर इक्का दुक्का खबरें प्रकाश में आई तो बडे बेमन से एक मावा कारोबारी के यहां छापा मारा गया। वहां बडी मात्रा में मावा बरामद भी हो गया। लेकिन इसके अलावा कुछ नहीं। खाद्य विभाग के अफसरों को राशन दुकानों की वसूली से फुरसत ही नहीं है। उपर से डंडा आया तो गांव से दूध लेकर आने वाले दो चार दूध वालों को पकड कर उनके सैंपल ले लिए।
अब खाद्य विभाग के अफसरों को कौन बताए कि रतलाम के बन्दे कम नहीं पडते। कुछ सालों पहले नकली घी की एक पूरी फैक्ट्री यहां पकडी जा चुकी है। बडे बडे माल चलाने वाले धडल्ले से मिलावट कर रहे है। नामचीन मिठाई कारोबारी खराब मावे की मिठाईयां खिला रहे है,तो सेव बनाने वाले मूगफली तेल के नाम पर घटिया तेल में सेव बना रहे है। मसाले वाले भी मिलावट में पीछे नहीं है। लेकिन खाद्य विभाग की नींद अब तक नहीं खुली है। कहने वाले तो यह भी कहते है कि खाद्य विभाग को सबकुछ पता है,लेकिन कार्यवाही नहीं करने की मोटी कीमत उन्हे मिल जाती है,इसलिए सबकुछ चलता रहता है। सरकार अभियान चला रही है इसलिए यहां भी सिर्फ दिखावे के लिए काम हो रहा है। असली कलाकार तो धडल्ले से कलाकारी में जुटे है।

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