September 29, 2024

राग-रतलामी/ जल्दबाजी में उलटा पडा छोटे भूरिया का दांव,मैडम का दावा मजबूत, क्या भाई से भाई को लडाएगी राजनीति…?

-तुषार कोठारी

रतलाम। वैसे तो चुनाव पर फिलहाल त्यौहार भारी है। लोग अब तक तो लोग नवरात्रि के गरबे,मेले और रावण दहन का आनन्द ले रहे थे। अब दीपावली की तैयारियों में व्यस्त होने लगे है। लेकिन नेताओं के लिए मुसीबत है। इधर त्यौहार की मारामारी,उधर चुनावी जमावट का तनाव। दीपावली निपटते निपटते पार्टियां उम्मीदवारों की सूचियां तैयार कर लेगी। नेताओं को जो कुछ करना है,इसी समय करना है। पार्टियों और नेताओं के लिए ये वक्त अपनी जमावट मजबूत करने का है।
लेकिन राजनीति में कुछ दांव उलटे भी पड जाते है। इन दिनों पंजा पार्टी के भूरिया जी का दांव उलटा पडने की चर्चाएं जोरों है। कहानी पिछले हफ्ते शुरु हुई थी। ग्रामीण के कुछ नेताओं ने जैसे ही पैराशूट उम्मीदवारों के विरोध की घोषणा की,पंजा पार्टी के प्रदेश मुखिया रहे भूरिया जी का तनाव बढ गया। बढती उम्र के चलते वे छोटे भूरिया को सैट करने में लगे हुए है। पिछले चुनाव में वे पंजा पार्टी के मुखिया थे,लेकिन फिर भी वे छोटे भूरिया के लिए टिकट नहीं ला पाए थे। इस बार वे जी जान से टिकट लाने की कोशिशों में लगे है। जैसे ही पैराशूट उम्मीदवारों के विरोध की बात उनके कानों में पडी,उन्होने फौरन डैमेज कंट्रोल शुरु किया। बगावती आवाजें उठाने वाले तमाम नेताओं को इकट्ठा करके खबरचियों के सामने पेश कर दिया गया। दबाव का नतीजा था कि सारे बागियों ने खबरचियों के सामने घोषणा कर दी कि वे छोटे भूरिया को पैराशूट उम्मीदवार नहीं मानते और अगर पंजा पार्टी का टिकट छोटे भूरिया को मिला तो सब के सब जमकर काम करेंगे।
बस भूरिया जी का यही दांव उलटा पड गया। कहने को तो छोटे भूरिया का नाम चर्चाओं में आ गया,लेकिन यही बात उनके खिलाफ हो गई। पंजा पार्टी में ग्रामीण सीट पर नजरे गडाए बैठे दूसरे नेताओं ने छोटे भूरिया की इस जमावट पर जमकर आपत्ति दर्ज कराई। पंजा पार्टी में भीतरखाने की जानकारी रखने वालों का कहना है कि भूरिया जी को छोटे भूरिया के लिए झाबुआ में जमावट करना चाहिए ना कि रतलाम में। पंजा पार्टी वाले बताते है कि पहले पंजा पार्टी की ग्रामीण अध्यक्ष रही मैडम जी पंजा पार्टी के अभी के नाथ की खास है। छोटे भूरिया की जल्दबाजी के चलते अब उनका दावा मजबूत हो गया है।
पंजा पार्टी की नजर में जो दूसरी सीट है,वह सैलाना है। सैलाना में पंजा पार्टी के पास मजबूत दावेदार पिछली बार हारे हुए गुड्डू भईया है। ज्यादातर लोग यह मानकर चल रहे हैं कि पंजा पार्टी गुड्डू पर ही दांव लगाएगी। राजनीति जो न कराए,वह थोडा है। फूल छाप पार्टी के जानकारों का कहना है कि सैलाना में पंजा पार्टी को कमजोर करने के लिए फूल छाप वाले लम्बे समय से कोशिशों में लगे थे। इसके लिए उन्होने भाई भाई को आमने सामने करने की योजना बनाई है। गुड्डू भाईया के बडे भईया किसी जमाने में सैलाना की मण्डी के मालिक थे। लेकिन लम्बे समय से पंजा पार्टी में उनकी कोई पूछ परख नहीं हो रही है। पंजा पार्टी अगर टिकट गुड्डू भईया को दे देती है,तो बडे भईया पूरी तरह बेकार हो जाएंगे। इसी चक्कर में बडे भईया,फूल छाप पार्टी से नजदीकियां बढा रहे थे। इधर फूल छाप पार्टी में चारेल मैडम से नाराज लोग भी बडे भईया को फूल छाप पार्टी में लाकर मैडम को चुनौती देने के चक्कर में है। अब आलम यह है कि बडे भईया के पंजे को छोडकर फूल का हाथ पकडने की चर्चाएं जोरों पर है। हांलाकि खुले तौर पर कोई भी कुछ कहने को तैयार नहीं है। आगे आगे देखिए क्या सीन बनता है..?

खाकी पेन्ट काली टोपी से टिकट की जुगाड

आरएसएस का पथ संचलन हर साल दशहरे के मौके पर निकलता है। लेकिन जब चुनावी साल हो,तो इसका नजारा कुछ अलग हो जाता है। पूल छाप पार्टी में टिकट के दावेदारों को जैसे ही यह पता चला कि इस बार के टिकट बंटवारे में आरएसएस का दखल ज्यादा रहने वाला है,सारे के सारे खाकी पेन्ट काली टोपी लगाकर तैयार हो गए। स्वागत मंचों में इसका असर नजर आता रहा। फूल छाप पार्टी के वो तमाम नेता,जो कभी आरएसएस के कार्यक्रमों में नजर नहीं आते,पथ संचलन के मौके पर सजे संवरे नजर आ गए। ये अलग बात है कि इनमें से ज्यादातर केवल प्रदर्शन करने आए थे,संचलन में कदमताल करने नहीं।

स्वास्थ्य सेवाओं पर भारी चुनावी तैयारी

राजनीतिक पार्टियों और शासन प्रशासन पर इन दिनों चुनावी बुखार चढने लगा है। इसका नतीजा यह है कि कई महत्वपूर्ण कामों को नजर अंदाज किया जाने लगा है। शहर में डेंगू तेजी से पांव पसार रहा है। अब तक डेढ सौ ज्यादा डेंगू के मरीज सामने आ चुके हैं। सरकारी और निजी अस्पतालों में बीमारों की भरमार हो रही है। मच्छरों और डेंगू के लार्वा की रोकथाम जैसा जरुरी काम भी चुनावी असर में भुला दिया गया है। कहने वाले तो यहां तक कह रहे हैं कि जिन महकमों पर इसकी रोकथाम का जिम्मा है,वहीं डेंगू का लार्वा पनप रहा है। अस्पताल और सरकारी दफ्तरों की टंकियों की अगर व्यवस्थित जांच की जाए,तो पता चलेगा कि डेंगू की जानलेवा समस्या यहीं से पनप रही है। दिखाने के लिए नगर निगम वाले होटलों और स्कूलों का निरीक्षण करके स्पाट फाईन करने की खबरें छपवा रहे है,लेकिन डेंगू के लार्वा की ईमानदारी से खोजबीन कोई करने को तैयार नहीं है। कहीं ऐसा ना हो जाए कि चुनावी तैयारियों के चक्कर में आम लोगों की जान पर बन आए।

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