ये कैसा न्याय?
– डाॅ. डी. एन. पचैरी
पिछले दिनों क्रूर दुर्दान्त देशद्रोही आतंकवादी याकूब मेनन को जब फाँसी दी गई तो देश में जैसे भूचाल आ गया। रात के तीन बजे तक कोर्ट चली। दर्जनों वकीलो ने करोड़ो रूपयें खाकर धूंआधार बहस की किंतु जब फाँसी नही रूकी तो दूसरे दिन शव यात्रा में जैसे पूरा मुंबई शहर उमड़ पड़ा। मेनन को जैसे शहीद का दर्जा मिल गया। ऐसा क्यों हुआ ? इसके लिए कौन जिम्मेदार है ? तो सही बात यह है कि इस सब के लिए हमारी लचर और ढीली ढाली न्याय प्रणाली जिम्मेदार है।
हमारे देश में अंग्रेजो के बनाये हुए 1860 और 1870 के कानून चल रहें है। जिनमें आज तक कोई बदलाव नही किया गया है। अपराधिक प्रक्रिया की संहिता में बदलाव की आवश्यकता है जिससे कि त्वरित न्याय मिल सके । अंग्रेज कितनी जल्दी केस को सुलझा कर अपराधी को सजा दे देते थे, उसके कुछ उदाहरण देखिए।
2 मई 1908 को शहीद खुदीराम बोस को गिरफ्तार किया गया और 11 अगस्त 1908 को फाँसी दे दी गई अर्थात 100 दिन में पूरा केस समाप्त हो गया। इसी प्रकार 1909 में 1 जुलाई को मदन लाल धींगरा ने लार्ड कर्जन वायली को लंदन में गोली मार दी और उसे मात्र डेढ़ माह में 17 अगस्त 1909 को फाँसी पर लटका दिया गया। इसी प्रकार उधम सिंह ने 18 जून 1940 को केक्स्टन हाॅल में माइकल ओ डायर को गोली मार दी और 31 जुलाई 1940 को फाँसी दे दी गई। हेमू कालानी को 18 अक्टूबर 1942 को गिरफ्तार किया गया और 21 जून 1943 को फाँसी दे दी स्पष्ट है कि अंग्रेज जिसे अपराधी समझते थे उसे 3 से 4 महीने के बीच सजा दे देते थे। अब हमारे देश भारत के कुद उदाहरण देखिए , याकूब मेनन को फाँसी देने में 23 वर्ष लगें, कसाब को लगभग 5 वर्ष और अफज़ल गुरू को 12 वर्ष लगे। इसी प्रकार संजय दत्त पर केस 1993 से चला और 2013 में अर्थात 20 वर्ष मे 5 वर्ष की सजा दी। इसी प्रकार मनु शर्मा जिसने अपनी प्रेमिका के अंगों को भट्टी में जलाया था उसे 11 वर्ष बाद आजीवन कारावास की सजा दी गई। एक आई जी के सुपुत्र संतोष सिंह जिसने प्रियदर्शनी मट्टु के साथ बलात्कार कर के मार डाला उसे 10 वर्ष बाद आजीवन कारावास हुई। अभिनेत सलमान को 2002 से 2015 अर्थात 5 साल की सजा सुनाई गई, इससे क्या सि़द्ध होता है? यही कि हमारी न्याय प्रणाली अत्यंत लचर और धीमी है। न्याय में अधिक समय लगने से पब्लिक अपराधी के कृत्यों को भूलने लगती है और हम भारतवासी वैसे भी भाग्यवादी होते है कि जैसा भाग्य में लिखा था वैसा हो गया ‘‘बीती ताही बिसार दे आगे की सुदी ले’’ और इस प्रकार समय अधिक लगने पर पीडि़त परिवार को छोड़ कर शेष लोगो की सहानुभूति अपराधी के प्रति होने लगती है यदि याकूब मेनन को जब 1994 में गिरफ्तार किया गया था। 1996 या 1997 तक फाँसी लग जाती तो घाव ताज़ा था और ऐसा कुछ नही होता जैसा कि अब हुआ है अतः अपराधियों को दंडित करने के लिए न्याय प्रक्रिया तेज़ करनी होगी। यथा संभव अधिक से अधिक न्यायाधीशों की नियुक्ति की जाए और ऐसे प्रतिबंध लगाए जाए कि न्यायाधिशो को माह में इतने केस का न्याय करना आवश्यक है। कि कम से कम इतने केसो का प्रतिमाह न्याय देना आवश्यक है प्रत्येक प्रदेश में 2 से 3 हाई कोर्ट की ब्रांच बनाई जाए और सुप्रीम कोर्ट का कार्य क्षेत्र बढ़ाया जाए अन्यथा अपराधी सहानुभूति के पात्र बनते रहेंगे। स्पष्ट है कि हाल में पकड़े गए आतंकी मोहम्मद नावेद को शीघ्र सजा दी जाए।