November 24, 2024

नेताओं की आपसी खीचतान रोकने की मशक्कत

निगम चुनाव काउण्ट डाउन-10 दिन शेष

शहर सरकार चुनने के चुनाव में पंजा और फूल दोनो ही पार्टियों में मशक्कत चल रही है। वोटरों को लुभाने की मशक्कत तो है ही,नेताओं की आपसी खींचतान पर नियंत्रण की मशक्कत और बडी है। फूल छाप पार्टी में भैय्याजी और सेठ के बींच खींचतान है। भैय्याजी को तकलीफ यह है कि अगर सेठ कहीं मौजूद होते हैं तो तमाम लोगों का अटेंशन सेठ की तरफ हो जाता है। भैय्याजी को लगता है कि उनकी सारी मेहनत पर पानी फिर गया है। फूल छाप पार्टी के कार्यकर्ताओं की भी भारी मुसीबत है। भैय्याजी ने कह दिया है कि अगर सेठ से हाय हैल्लो की,तो फिर भैय्या जी कोई सहयोग नहीं करेंगे। छोटे कार्यकर्ता तो बेचारे भैय्याजी की इस धमकी में आ जाते है,लेकिन महापौर प्रत्याशी की मुसीबत और भी बडी है। उनके चुनाव प्रचार में सेठ हर जगह मौजूदगी दर्ज करा रहे है। सेठ की मौजूदगी से भैय्याजी को तकलीफ होती है। स्टेशन रोड पर हुए एक स्वागत समारोह में जब सेठ पहुंच गए तो भैय्याजी वहां से निकल लिए। अब कार्यकर्ताओं में यह चर्चा जोर पकडने लगी है कि भैय्याजी के कारण कहीं पार्टी को कष्ट ना उठाना पड जाए।

पंजे वालों की लडाई

पंजा पार्टी तो वैसे ही बरबादी की कगार पर पंहुची हुई है। हांलाकि पंजा पार्टी की प्रत्याशी को उस्ताद की छभि का भरोसा है,लेकिन इधर भी नेताओं का आपसी दंगल रुकने का नाम नहीं ले रहा। पंजा छाप पार्टी ने चुनाव अभियान की जिम्मेदारी शहर के प्रथम महापौर रहे पोपी को सौंपी है। पंजा पार्टी की शहर की जिम्मेदारी मामा के पास है। मामा पिछले निगम चुनाव में केले के चिन्ह पर पंजा छाप के खिलाफ चुनाव लडे थे। लेकिन इस बार वे ही पंजा छाप पार्टी के मालिक है। शायद यही वजह थी कि पंजा छाप की एक चुनावी बैठक में पोपी ने मामा को बुलाया ही नहीं। इसी बात को लेकर दोनो नेता आपस में भिड लिए। पंजा छाप की हालत तो दुबले और दो असाढ जैसी है। पहले से कमजोर पार्टी में नेताओं की जंग पार्टी को कहां ले जाएगी? यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है।

श्मशान पर राजनीति

राजनीति का असर जीवन के हर क्षेत्र पर पडता है। पहले कहा जाता था कि मुक्तिधान पर इन्सान में वैराग्य जागता है,लेकिन अब तो राजनीति का असर मुक्तिधाम तक जा पंंहुचा है। समाजसेवी नन्दलाल व्यास (नन्दू बासाब) का निधन वैसे तो पूरे शहर के लिए दुखद घटना है,लेकिन मुक्तिधाम पर राजनीति का असर साफ दिखाई देता रहा। नन्दू बासाब को अन्तिम बिदाई देने आए लोगों में राजनीति की चर्चाएं ही हावी रही। कुछेक प्रत्याशियों ने भी यहां लोगों की उपस्थिति का लाभ लिया और जनसम्पर्क की मुद्रा में आ गए।

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