नवरात्रि मेला अर्थात नेता अधिकारियों की कमीशनखोरी और नागरिकों के साथ खुली लूटपाट
रतलाम,27 सितम्बर (इ खबरटुडे)। रतलाम की सांस्कृतिक चेतना की पहचान रहे नवरात्रि के कालिका माता मेले का अर्थ अब बदल चुका है। अब मेले का अर्थ है,नेताओं और अधिकारियों की बेशर्मी भरी कमीशनखोरी और मेले में आने वाले नागरिकों के साथ खुली लूटपाट। मेला प्रांगण की दुकानों के आवंटन से लेकर मंच के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में नेताओं और अधिकारियों ने जमकर कमीशनखोरी की है,तो वहीं मेले में आने वाले नागरिक वाहन स्टैण्ड से लगाकर मेले की दुकानों और झूलों तक खुली लूट का शिकार हो रहे हैं।
कालिका माता मेला पूरे मालवांचल में अपने विशीष्ट सांस्कृतिक कार्यक्रमों और व्यावसायिक गतिविधियों के कारण प्रसिध्द था। मेले का आनन्द लेने के लिए रतलाम नगर ही नहीं बल्कि पूरे जिले और आसपास के शहरों से भी लोग आते थे। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से मेले की हर गतिविधि पूरी तरह भ्रष्टाचार की गिरफ्त में आ गया है और इसका सीधा असर मेले की गुणवत्ता पर पडा है।
कमीशन-एक हजार प्रतिशत
नगर निगम के जानकार सूत्रों के मुताबिक वर्तमान निगम परिषद के कार्यकाल में अब तक जितने भी कालिका माता मेले हुए हैं,उनमें हर साल मंचीय कार्यक्रमों की गुणवत्ता में गिरावट आती जा रही है। शुरुआती साल में चूंकि कमीशन का प्रतिशत कम था,इसलिए कार्यक्रमों का स्तर अच्छा था,लेकिन उसके बाद से जहां कमीशन का प्रतिशत बढता गया वहीं कार्यक्रमों की गुणवत्ता कम होती गई। इस साल के मंचीय कार्यक्रमों में कमीशन का प्रतिशत एक हजार प्रतिशत तक जा पंहुचा है। यह आंकडा सुनने में अविश्वसनीय लग सकता है,लेकिन यह वस्तुस्थिति है। निगम के जानकार सूत्रों के मुताबिक प्रसिध्द गायक दलेर मेहन्दी के कथित भाई बिन्दु मेहन्दी की बिन्दु मेहन्दी नाइट के कार्यक्रम के लिए नगर निगम ने लगभग ढाई लाख रुपए का भुगतान किया। जबकि इसका वास्तविक भुगतान मात्र पच्चीस से तीस हजार रु.का ही था। इसी कलाकार को यदि कोई व्यक्ति सीधे सम्पर्क करता है,तो इस कलाकार का कार्यक्रम मात्र पच्चीस से तीस हजार रु. में तय किया जा सकता है। यही स्थिति कमोबेश सभी सांस्कृतिक कार्यक्रमों की है। यह भी मजेदार तथ्य है कि निगम के सांस्कृतिक कार्यक्रमों के ठेके दे दिए जाते है। कार्यक्रम ठेकेदार को दिया जाता है और ठेकेदार कलाकार को बेहद कम राशि में लाता है। नवरात्रि मेले में राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिध्द कलाकारों को बुलाया जाना तो इतिहास की बात हो गई है।
वाहन स्टैण्ड से दुकानों तक खुली लूट
सांस्कृतिक कार्यक्रमों के घटिया स्तर के चलते मंच के दर्शकों की संख्या में लगातार गिरावट आ ही रही है,लेकिन मेले का आनन्द लेने के लिए बडी संख्या में नागरिक अपने परिवार और बच्चों को लेकर मेले में आते है। अपने परिवार को लेकर मेले में आने वाले हर व्यक्ति को लूटपाट का शिकार बनना पड रहा है। वाहन स्टैण्ड का ठेका नगर निगम ने पांच रु. प्रति वाहन की दर पर दिया है। वाहन स्टैण्ड के लिए मेला परिसर के चारों ओर स्थान भी निर्धारित किए गए है। लेकिन वाहन स्टैण्ड पर तैनात लोग वाहन रखने वाले नागरिकों से पांच की बजाय दस रुपए वसूलते है। यदि कोई इसका विरोध करता है,तो उसे बाकायदा धमकाया जाता है। वाहन स्टैण्डों पर तैनात अधिकांश युवक आपराधिक प्रवृत्ति के है और मेले में आने वालों को डराना धमकाना उनके लिए सामान्य बात है।
बात इतनी ही नहीं है। वाहन स्टैण्ड वाले निर्धारित स्थानों से आगे तक दादागिरी से पैसे वसूल रहे हैं। कान्वेन्ट के सामने एसबीआई के एटीएम पर मेले का वाहन स्टैण्ड नहीं है,लेकिन वाहन स्टैण्ड चलाने वाले एटीएम पर आने वाले लोगों से भी दादागिरी से किराया वसूल रहे है। एटीएम पर धनराशि निकालने के लिए आए व्यक्ति को मात्र पांच-सात मिनट एटीएम पर रुकना होता है,लेकिन जब वह एटीएम से बाहर आता है,तो उससे सीधे दस रुपए छीन लिए जाते है।
वाहन स्टैण्ड पर दादागिरी का शिकार होकर मेले के भीतर पंहुचे व्यक्ति को भीतर भी लूटपाट का शिकार होना पडता है। पानी के पाउच,जो आमतौर पर एक रुपए में बेचे जाते है,मेला परिसर में इसके लिए दो से तीन रुपए वसूले जाते है। खाद्य सामग्री की दुकान लगाने वाले दुकानदार पेयजल की व्यवस्था जानबूझ कर नहीं करते। मेले में कुछ भी खाने के बाद यदि आप को पानी पीना है तो मजबूरन दो या तीन रुपए का पानी का पाउच खरीदना पडेगा। पानी की बोटल भी मेले में बीस रुपए में बेची जाती है। झूलों की दरें भी बढाकर वसूली जा रही है।
रावण भी भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं
रावण दहन ऐसा कार्यक्रम है,जिसमें हजारों नागरिक अपने बच्चों और परिवार को लेकर आते है। लेकिन नगर निगम के नीति निर्धारकों को इस कार्यक्रम में भी जनता के मनोरंजन से अधिक चिन्ता अपनी कमाई को लेकर होती है। हर बार यह विषय चर्चा में आता है कि रावण का पुतला मात्र कुछ ही सैकण्डों में जल कर खाक हो जाता है। रावण के पुतले में नाममात्र के पटाखे रखे जाते है। रावण दहन के पूर्व होने वाली आतिशबाजी भी उस स्तर की नहीं होती,जैसी होना चाहिए। होना तो यह चाहिए कि रतलाम जैसे नगर की आतिशबाजी प्रसिध्दि अर्जित करें लेकिन कमीशनखोरी के चक्कर में आतिशबाजी किसी छोटे गांव में की जाने वाली आतिशबाजी जैसी होती है।