November 16, 2024

चारित्र निर्माण ठीक होने पर मिलता सुखमय जीवन: आचार्य प्रवर

समता भवन में उमड़े श्रावक-श्राविकाएं

रतलाम ,09 जुलाई(इ खबरटुडे)। संसार में प्रत्येक व्यक्ति सुख का अभिलाषी है। यह अभिलाषा आज की नहीं, वर्षों और शताब्दी भी नहीं, अपितु सदियों से चली आ रही है। भौतिक जगत में शरीर निरोगी रहने, किसी चीज की कमी नहीं होने, दाम्पत्य जीवन अनुकूल रहने एवं संतान आज्ञाकारी होने की अवस्थाओं को सुख का आधार माना जाता है, लेकिन वास्तविक सुख मनुष्य के भीतर ही होता है। इसकी अनुभूति चारित्र निर्माण से होती है। चारित्र का निर्माण ठीक होता है, तो ही जीवन सुखमय होता है।

यह बात दीक्षा दानेश्वरी, आचार्य प्रवर, 1008 श्री रामलालजी म.सा. ने कही। नोलाईपुरा स्थित समता भवन में अमत देशना सुनने उमड़े असंख्य श्रावक-श्राविकाओं को संबोधित करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि चारित्र का निर्माण आचरण में दृ़ढ़ता से होता है। ये शुभ और अशुभ दोनो हो सकता है। निदंनीय कार्य करने से भले ही सुख का आभास हो, लेकिन चारित्र कुत्सित और अशुभ कहा जाता है। नैतिकता पूर्वक आचरण करने से शुभ और सद्चारित्र का निर्माण होता है।
सद्चारित्रवान व्यक्ति को बाहर की चीजों से कोई मतलब नहीं होता। पुण्या श्रावक का प्रसंग सुनाते हुए आचार्यश्री ने कहा कि जिसका चारित्र इतना ठोस होता है, उसका चित चलायमान नहीं होता। भौतिक जगत में सामान्य तौर पर पहला सुख निरोगी काया और दुजी घर में माया को कहा जाता है, लेकिन यह सुख क्षणिक होते हैं। व्यक्ति बीमार हो, घर में पत्नी नहीं हो, अन्य भी कोई सुख सुविधा न हो और अभाव की अनुभूति नहीं हो तो वही सुख सच्चा होता है।

आचार्यश्री ने कहा धर्म स्थान में आने की प्रक्रिया आदि चारित्र निर्माण का हिस्सा है। इससे भीतर की संरचना का निर्माण होता है। व्यक्ति उपर से कैसा भी हो, लेकिन अन्दर से मजबूत बना रहे। किसी भी परिस्थिति में विचलित नहीं हो। इसके लिए आचरण और प्रवृत्ति का उत्कर्ष होना आवश्यक है। आचरण और प्रवृत्ति जैसी होती है, संरचना भी वैसी ही बनती है और चारित्र को भी वही दिशा मिलती है। उन्होंने कहा अहंकार पतन का मार्ग है। अहंकार के कारण ही रावण की दुर्गति हुई। उसे मंदोदरी, कुम्भ कर्ण आदि सबने समझाया लेकिन वह नहीं माना। उसका आचरण सही होता तो चारित्र निर्माण भी ठीक होता। संसार में इसीलिए कहा जाता है कि चारित्र गया तो सबकुछ गया। उत्तम चारित्र सम्यक आचरण से प्राप्त होता है। मनुष्य को तन की भुख परेशान नहीं करती, लेकिन मन की भुख करती है। उसे सदैव क्रोध, लोभ, मोह, मान, माया से बचने का प्रयत्न करना चाहिए।
शासन प्रभावक श्री धर्मेशमुनिजी म.सा. ने कहा कि धर्म का गौरव अनुशासन एवं मर्यादा पर टिका हुआ है। जय-जयकार बोलने एवं कुछ क्रियाएं कर लेने से धर्मात्मा माना जाना उचित नहीं है। इसके लिए अनुशासन एवं मर्यादा का पालन अतिआवश्यक है। श्री प्रशममुनिजी म.सा. ने कहा कि अभ्यास से सबकुछ साधा जा सकता है। ज्ञान की प्राप्ति के लिए निरंतर अभ्यास करते रहे। आरंभ में साध्वी मण्डल ने गुरू भक्ति गीत प्रस्तुत किया। सोमवार को शासनदीपिका श्री चंदनबालाजी म.सा. आदि ठाणा 5 का भी मंदसौर से रतलाम में पदार्पण हुआ।
आचार्यश्री की प्रेरणा से तप-तपस्या का दौर निरंतर चल रहा है। कई श्रावक-श्राविकाओं ने तपस्या के प्रत्याख्यान लिए। 32 वर्षीय तनु डांगी ने आजीवन टीवी का त्याग करने का संकल्प लिया। इनके अलावा भी कई भक्तों ने अलग-अलग प्रत्याख्यान लिए। काटजू नगर स्थित समता भवन में श्री राजेशमुनिजी म.सा. की निश्रा में दोपहर 2.30 से 3.30 बजे तक समता महिला एवं बहु मण्डल के शिविर चल रहे है। कार्यक्रम का संचालन सुशील गोरेचा एवं महेश नाहटा द्वारा किया गया।

You may have missed