कई रोगों का उपचार करता है शास्त्रीय संगीत
-डॉ.डीएन पचौरी
संगीत न सिर्फ मनुष्य को सुकून देता है,बल्कि इसका प्रभाव पृथ्वी के समस्त जीवधारियों,चाहे वे प्राणी,जीवजन्तु हों अथवा वनस्पतियां,सभी पर पडता है। विभिन्न प्रयोगों से सिध्द किया जा चुका है कि संगीत के प्रभाव से दुधारु पशु अधिक दूध देने लगते है और फसलें तेजी से बढती है तथा पौधे सामान्य से कम समय मेंफल देने लगते है।
वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो ध्वनि तरंगे यांत्रिक तरंगे होती है,जिनके गमन के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है। ये तरंगे जहां टकराती है,उस सिस्टम को प्रभावित करती है। जैसे जब ध्वनि तरंगे मानव के कर्ण द्वारा नाडी संस्थान तक पंहुचती है तो नाडी संस्थान को प्रभावित करती है। इससे हारमोन उत्पन्न होने लगते है। हमारे शरीर में भावनात्मक आवेगों का नियंत्रण चाहे वो हर्ष,दुख,काम,क्रोध,कोई भी हो,हारमोन द्वारा ही नियंत्रित होते है। उदाहरण के लिए जब क्रोध आता है या दुख होता है,तो एड्रीनलीन हारमोन उत्पन्न होकर रक्त से मिलता है। इसी प्रकार आनन्द और हर्ष के विचार आते ही सिरेटोनिन,डोवेमाइन जैसे हारमोन उत्पन्न होने लगते है। इसी आधार पर संगीत द्वारा विभिन्न रोगों का उपचार किया जाता है। एक प्राचीन भारतीय ग्रन्थ स्वरशास्त्र के अनुसार भारतीय संगीत में कुल ७२ राग होते है और संगीत के ये 72 राग शरीर की 72 मुख्य नाडियों को प्रभावित करते है।कुछ राग और उनसे जिन रोगों का उपचार किया जाता है,वे इस प्रकार है-दीपक राग से पेट की अम्लीयता कम होती हो,जबकि जैजैवंती और राग सोहनी से सिरदर्द का उपचार किया जाता है। पुराने शास्त्रीय संगीत का राग मालकौंस,जो कि भैरवी थाट का प्रसिध्द राग है,इस राग को मार्वा राग के साथ गाया जाए तो मलेरिया नियंत्रित होता है। जबकि राग मालकौंस हिन्डोल बुखार के तापक्रम को कम कर देता है। राग दरबारी का बडा खमाज और राग पूरिया मानसिक तनाव को कम करते है। राग दरबारी की खोज तानसेन ने की थी। जब बादशाह अकबर दिनभर के राजकाज से थकहार कर रात्रि विश्राम करते थे तो तानसेन राग दरबारी सुनाकर उनका दिमागी तनाव दूर करता था। राग पूरिया घनाश्री मन को मधुरता,स्निग्धता तथा स्थिरता प्रदान करता है,जबकि राग बागेश्वरी शांत सुखदायक गहरे मूड का मन में आनंददायी भावनाएं उत्पन्न करने वाला राग है। राग अहिर भैरव तथा राग टोडी उच्च रक्तचाप कम करते है। वैज्ञानिक डॉ.बालाजी तांबे के अनुसंधान ने सिध्द किया है कि राग भोपाली व टोडी अति तनाव की स्थिति को ठीक कर देते है। राग असावरी निम्र रक्तचाप ( लो बीपी) में राग चन्द्रकौंस दिल की बीमारी के लिए गाया जाता है। राग तिलक कामोद तथा विहाग अनिन्द्रा तथा मानसिक पीडीतों के लिए उत्तम है।
आयुर्वेद के अनुसार,शरीर में वात,पित्त तथा कफ का संतुलन बिगडने से रोग उत्पन्न होते है। अत: इन्हे संतुलित रखने के लिए प्रात: कफ के लिए राग भैरव,दोपहर पश्चात पित्त के लिए राग बिलावल और सायंकाल वात का समय है,अत: इसके लिए राग पूर्णिया घनाश्री व मार्वा गायन ही उपचार की विधियां है। यदि दिन रात को आठ पहर में बांट दें तो हर पहर के लिए अलग अलग राग है। सूर्योदय के लिए बिलावल,दोहर सारंग,दोपहर बाग मावी,सायं राग तोडी,रात कल्याण केदार,आधी रात केदार चन्द्र तथा विहाग,देर रात भैरव और भोर में राग रामकली का समय उचित है। भजन कीर्तन आनन्ददायी,सुखकार तथा पीडाहारी होते है। जब गायक या श्रोता अपने इष्टदेव के ध्यान में मगन होकर गायन या श्रवण करते है,तो इनके मस्तिष्क में तरंग अभिरचना बीटा से अल्फा स्तर पर पंहुचकर विश्रान्ति उत्पन्न करती है और शरीर के नाडीतंत्र के लिए अनुकूल हारमोन्स का उत्पादन प्रारंभ करते है। इस प्रकार संगीत चाहे गायन हो अथवा वादन मानसिक तनाव और इससे सम्बन्धित अधिकतम रोगों का उपचार करता है।
संगीत के इसी महत्व को देखते हुए वर्ष के सबसे बडे दिन अर्थात 21 जून को विश्व में संगीत दिवस के रुप में मनाया जाता है। गत वर्ष विश्व संगीत दिवस 21 जून के मौके पर विश्व के लगभग एक सौ पचीस देशों के सात सौ शहरों में संगीत के विभिन्न आयोजन किए गए थे।