November 18, 2024

आज रात 9 बजे NSG देश भारत की सदस्यता पर करेंगे स्पेशल मीटिंग, जापान ने उठाया मुद्दा

नई दिल्ली, 23 जून(इ खबरटुडे)।एनएसजी में भारत की एंट्री को लेकर गुरुवार रात 9 बजे स्पेशल सेशन में चर्चा होने वाली है. दक्षि‍ण कोरिया के सोल में एनएसजी देशों के पूर्ण सत्र के दौरान जापान ने भारत के आवेदन का मुद्दा उठाया. इसके बाद तय किया गया कि रात को स्पेशल सेशन में भारत के मुद्दे पर भी चर्चा होगी.
इस बीच मैक्स‍िको ने भी एनएसजी में भारत की सदस्यता का समर्थन किया है. मैक्स‍िकन राजदूत ने कहा कि वह भारत के साथ ही सभी एनपीटी देशों के एनसीजी में शामिल होने का समर्थन करते हैं.
चीन से बोला PAK- हमारे साथ ही मिले इंडिया को एंट्री
दूसरी ओर, ताशकंद में पाकिस्तान और चीन के राष्ट्रपति ने मुलाकात की. इस दौरान पाकिस्तान ने चीन से NSG में उसके स्पष्ट समर्थन को लेकर शुक्रिया कहा, वहीं ममनून हुसैन ने शी जिनपिंग से कहा कि भारत और पाकिस्तान की एनएसजी में एक साथ ही एंट्री होनी चाहिए.
पाकिस्तानी राष्ट्रपति ने अपने चीनी समकक्ष शी जिनपिंग से कहा, ‘आपने एनएसजी सदस्यता को लेकर हमें जो स्पष्ट समर्थन दिया है उसके लिए आपका शुक्रिया. हम चाहते हैं कि एनएसजी में भारत और पाकिस्तान की सदस्यता एक साथ हो.’ हुसैन ने कहा कि चीन की एनएसजी को लेकर नीति गैर-भेदभाव की रही है.
उज्बेकिस्तान पहुंचे पीएम मोदी
उधर, एनएसजी से ‘चीन का रोड़ा’ हटाने की कवायद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार को ताशकंद के उज्बेकिस्तान पहुंच चुके हैं. शंघाई सहयोग संगठन में एंट्री के बहाने चीन के राष्ट्रपति शी जिंगपिंग से उनकी मुलाकात भी होगी. दोनों नेताओं के बीच एनसीजी को लेकर बातचीत हो सकती है.
पीएम मोदी ताशकंद में एससीओ यानी शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन की बैठक में हिस्सा लेने वाले हैं. इस बैठक में भारत के एससीओ में पूर्णकालिक सदस्य के तौर पर शामिल होने की प्रक्रिया शुरू होगी. चीन एससीओ समूह का नेतृत्व कर रहा है. पीएम मोदी इस बैठक के अलावा चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से भी मिलने वाले हैं.
दूसरी ओर सोल में न्यूक्लियर सप्लायर देशों की अहम बैठक चल रही है. गुरुवार को दक्षि‍ण कोरिया के संबोधन के साथ ही पूर्ण सत्र की शुरुआत भी हो गई. भारत के विदेश सचिव एस जयशंकर पहले ही सोल पहुंच गए. 48 देशों वाले इस विशिष्ट समूह में भारत को अमेरिका का समर्थन हासिल है. लेकिन चीन भारत को एनएसजी में शामिल किए जाने के पक्ष में नहीं है. हालांकि पड़ोसी मुल्क लगातार यह कह रहा है कि वह नियमों के आधार पर आगे बढ़ेगा और भारत की सदस्यता को लेकर उसका रवैया रचनात्मक ही रहेगा.
भारत को मिला फ्रांस का समर्थन
न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) की सदस्यता को लेकर भारत के खि‍लाफ पाकिस्तान और चीन की साजिश नाकाम होती दिख रही है. इस मामले में भारत के कोशिशों को अमेरिका के बाद फ्रांस का भी पुरजोर समर्थन मिला है. फ्रांस ने बुधवार को एक बयान जारी कर कहा कि परमाणु नियंत्रण व्यवस्थाओं में भारत की सहभागिता संवेदनशील वस्तुओं के निर्यात को बेहतर तरीके से नियंत्रित करने में मदद करेगी, चाहे वे परमाणविक हों, रासायनिक हों, जैविक हों, बैलिस्टिक हों या परंपरागत सामग्री और प्रौद्योगिकी हों.
फ्रांस के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, ‘फ्रांस मानता है कि चार बहुपक्षीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्थाओं (एनएसजी, एमटीसीआर, द ऑस्ट्रेलिया ग्रुप और द वासेनार अरेंजमेंट) में भारत का प्रवेश परमाणु प्रसार से लड़ने में अंतरराष्ट्रीय प्रयासों को मजबूत करेगा.’
फ्रांस ने की सकारात्मक निर्णय की अपील
मंत्रालय ने कहा, ‘एनएसजी में पूर्ण रूपेण सदस्य के तौर पर भारत के प्रवेश के सक्रिय और दीर्घकालिक समर्थन की दिशा में फ्रांस सोल में 23 जून को बैठक कर रहे इसके सदस्यों से सकारात्मक निर्णय लेने का आह्वान करता है.’
इससे पहले अमेरिका ने मंगलवार को एक बयान में कहा था कि भारत एनएसजी की सदस्यता के लिए तैयार है. अमेरिका ने सहभागी सरकारों से गुरुवार को सोल में शुरू हो रहे एनएसजी के दो दिवसीय पूर्ण सत्र में भारत के आवेदन का समर्थन करने को कहा था.
क्यों विरोध कर रहा है चीन?
भारत का विरोध चीन यह कहकर कर रहा है कि भारत ने परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर दस्तखत नहीं किए हैं. हालांकि वह कह रहा है कि यदि एनएसजी से भारत को छूट मिलती है तो पाकिस्तान को भी समूह की सदस्यता दी जानी चाहिए.
भारत और पाकिस्तान की सदस्यता के मुद्दे पर चीन ने कहा कि यह विषय पूर्ण सत्र के एजेंडा में नहीं है. यहां भी बीजिंग ने दोनों पड़ोसी देशों के मामलों को एकसाथ करके देखा जबकि उनके परमाणु अप्रसार ट्रैक रिकार्ड में अंतर है. नई दिल्ली में अधिकारियों ने इस बात पर जोर दिया कि एनएसजी की प्रक्रिया नाजुक और जटिल है और भारत की संभावनाओं पर अटकलें नहीं लगाई जानी चाहिए. एनएसजी के लिए भारत के पक्ष का करीब 20 देश समर्थन कर रहे हैं, जटिलता यह है कि अगर एक भी सदस्य देश ने विरोध किया तो भारत को सदस्यता नहीं मिलेगी.

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