आ गई नेताओं के लिए कयामत की रात
निगम चुनाव काउण्ट डाउन – 01 दिन शेष
इ खबरटुडे / 27 नवंबर
रतलाम। निगम चुनाव की उलटी गिनती अब समाप्त होने को है। ये दिन गुजरते ही कल नेताओं की किस्मत मतदाताओं के हाथ में होगी। 49 वार्डों के 171 प्रत्याशियों में से कुछ गिने चुने तो किसी के समर्थन में मैदान से हट चुके है,लेकिन ज्यादातर लोग ताकत झोंक रहे है। नगर निगम की 49 में से 12 सीटों पर सीधा मुकाबला है,जबकि 12 वार्ड ऐसे है जहां त्रिकोणीय मुकाबला है। 25 वार्डों में बहुकोणीय मुकाबला है। अधिकांश नेता यह मानते है कि चुनाव की आखरी रात में जोड-तोड के खेल फैसलों की पलटाने की ताकत रखते है। जबकि एक मान्यता यह भी है कि रतलाम शहर के वोटर बेहद समझदार है और किए हुए फैसले को आसानी से बदलने को राजी नहीं होते। इसी शहर के मतदाताओं ने राजनीति में तीन दशकों तक छाए हुए नेता को करारी शिकस्त भी दी और निर्दलीय प्रत्याशी को एकतरफा जीत दी। फिर इन्ही मतदाताओं ने उसी निर्दलीय प्रत्याशी की जमानत भी जब्त करवा दी,जिसे सिर्फ पांच साल पहले भरपूर समर्थन दिया था। इन्ही मतदाताओं ने पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में फूलछाप को भरपूर समर्थन दिया। इस चुनाव में भी आम मतदाता का मन सत्ता के साथ ही नजर आ रहा है। लेकिन सत्तारुढ दल को समर्थन सिर्फ महापौर चुनाव में दिखाई दे रहा है। वार्ड के पार्षदों को चुनने में मतदाता पार्टी की बजाय प्रत्याशी की छबि को महत्व देते हुए दिखाई दे रहे है। ज्यादातर लोगों की राय है कि महापौर चुनाव में भरपूर सफलता हासिल करने वाली फूलछाप पार्टी को पार्षदों के मामले में मुंह की खानी पड़ सकती है। इन परिस्थितियों में अब नेता इस आखरी रात का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करना चाहते है। शहर के हाईप्रोफाईल वार्डों में लोग भरपूर मजे कर रहे है। सबसे ज्यादा चर्चित वार्ड ३ में तो कार्यकर्ताओं को पर्चियां दी जा रही है। ये पर्चियां पैट्रोल पंपों की भी है और मयखानों की भी है। शहर के दूसरे ईलाकों में भी रात की तैयारियां जोरों पर है। नेताओं के लिए जो कयामत की रात है वहीं मतदाताओं के लिए मजे का मौका है।
आगे की अटकलें
अभी वोटिंग शुरु नहीं हुई है,लेकिन लोग उसके भी आगे की अटकलें लगाने में व्यस्त हो गए है। चर्चाओं का दौर,महापौर,पार्षदों से आगे निकलकर निगम अध्यक्ष तक जा पंहुचा है। अब कयास ये लगाए जा रहे है कि अध्यक्ष पद के लायक कौन है? यह भी कि यदि परिषद में निर्दलीयों की तादाद ज्यादा हो गई तो तमाम पार्षदों की कीमत बढ जाएगी और निर्दलीयों का तो पूरा चुनाव खर्च आसानी से निकल जाएगा। ये भी हो सकता है कि अध्यक्ष पद की आस लगाने वाले कुछ नेता पहले ही निपट जाए। ऐसे में किसकी किस्मत जोर मार जाएगी कोई नहीं जानता। खैर ये मुद्दा बहुत आगे का है,लेकिन लोग अभी से इस तरह की चर्चाओं में जुट गए है।