May 20, 2024

Raag Ratlami Convent School: पूरा महीना गुजर गया कान्वेन्ट के काले कारनामे सामने आए,लेकिन नहीं हो पाई कोई कार्रवाई/शहर सरकार के अफसरों की बल्ले बल्ले

-तुषार कोठारी

रतलाम। कान्वेन्ट स्कूल में नन बनाने के लिए लाई गई उडीसा की बालिका की कथित आत्महत्या को एक महीने से ज्यादा का वक्त गुजर चुका है,लेकिन अब तक कान्वेन्ट स्कूल की गडबडियों के खिलाफ कोई कार्यवाही होती नजर नहीं आई है। उडीसा की गरीब बालिकाओं को हजारों किमी दूर लाकर उसे नन बनाने का षडयंत्र करने,नन बनाने के लिए आत्महत्या जैसा कदम उठाने तक बालिकाओं पर दबाव बनाने,बिना वैध अनुमति के अवयस्क बालिकाओं का होस्टल चलाने,धर्म परिवर्तन करने जैसे तमाम अपराध कान्वेन्ट स्कूल में धडल्ले से किए जाते रहे। बालिका की आत्महत्या से सारा काला सच सामने आ जाने के बाद भी सरकारी मशीनरी,मिशनरी को अब तक दण्डित नहीं कर पाई है।

अब तो लोग पूरा वाकया ही भूलने लगे है। दिल दहलादेने वाले ये वाकया पिछले महीने दिसम्बर में नौ तारीख को सामने आया था,जब कान्वेन्ट स्कूल के भीतर रहने वाली एक सत्रह साल की बालिका की आत्महत्या की खबर सामने आई थी। कान्वेन्ट स्कूल की दादागिरी का आलम ये था,कि उन्हे एक नाबालिग बालिका की रहस्यमय आत्महत्या जैसी वारदात से भी कोई घबराहट नहीं हो रही थी। कान्वेन्ट संचालकों ने रस्म अदायगी की तर्ज पर पुलिस को खबर कर दी। चूंकि मामला कान्वेन्ट स्कूल का था,इसलिए वर्दी वालों ने भी इसे ज्याादा गंभीरता से नहीं लिया। रुटीन के तौर पर पुलिस पंहुची। शुरुआत में तो वर्दीवाले भी इस मामले को सीधे सादे मर्ग जांच के हिसाब से निपटाने के ही मूड में थे।

ये तो भला हो,कुछ संस्थाओं का जिन्होने धरने प्रदर्शन करके जिला इंतजामिया पर दबाव बनाया और फिर जिला इंतजामिया के बडे साहब ने मामले की जांच बाल कल्याण समिति से करवाने का आर्डर जारी कर दिया। उधर वर्दी वालों के कप्तान ने भी मामले की जांच के लिए एसआईटी बना डाली। जब समिति ने जांच शुरु की,तो जांच की शुरुआत में ही कान्वेन्ट के काले कारनामे सामने आने लगे। जांच में पता चला कि कान्वेन्ट में उडीसा जैसे दूर दराज इलाकों की गरीब बालिकाओं को नन बनाने के लिए लाया जाता था और यहीं रहकर नन बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता था। ताकि ये बालिकाएं नन बनकर गरीब और भोले भाले लोगों का धर्म परिवर्तन करने के षडयंत्र को आगे बढा सके। जांच में ये भी पता चला कि कान्वेन्ट वालों ने नाबालिग बच्चियों का होस्टल चलाने के लिए कोई परमिशन नहीं ली थी। परमिशन लेते भी क्यो? क्योकि उन्हे तो पता है कि सरकारी इंतजामिया के ज्यादातर अफसरों के बच्चे तो उन्ही के यहां पढते है। उनके खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत किसमें हो सकती है? उनकी सोच भी सही थी। आखिर एक महीना गुजरने के बाद भी उनके खिलाफ अब तक कुछ नहीं हो सका है।

नाराज लोगों का गुस्सा शांत करने के लिए बनाई गई एसआईटी भी वक्त गुजरने के साथ खुदकुशी की बारीकी से जांच करने के बजाय रस्म अदायगी करती ही नजर आई। होस्टल की बालिकाओं के बयानों मेंं कई सारे विरोधाभास सामने आए है। किसी का कहना है कि उसने फांसी लगाई थी,तो किसी ने उसकी लाश को कोने में पडा देखा था। उसके गले के इर्दगिर्द पाया गया दुपïट्टा भी ीला ढाला नजर आ रहा था। दुपïट्टे की हालत देख कर कतई ऐसा नहीं लग रहा था,जैसे इससे फांसी लगाई गई है। बरामदगी के वक्त लाश की स्थिति को लेकर भी गंभीर विरोधाभास सामने आए है। इन्ही विरोधाभासों के चलते ये आशंकाएं भी जताई गई है,कि यह सीधी सीधी आत्महत्या ना होकर कुछ और हो। अगर इसे आत्महत्या भी मान लिया जाए,तो भी कई सवाल खडे है।
ये बात तो कोई बच्चा भी समझ सकता है,कि जब भी इन्सान खुदकुशी जैसा कदम उठाता है,तो किसी परेशानी या दबाव में ही उठाता है। खुशी के माहौल में कोई खुदकुशी नहीं करता। खुदकुशी करने वाली बालिका पर नन बनने का दबाव डाला जा रहा था और वह नन नहीं बनना चाहती थी। नन बनने का दबाव ही वह कारण था जिसकी वजह से उसने खुदकुशी जैसा कदम उठाया। यह सीधे सीधे आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरित करने का मामला है,लेकिन एसआईटी ने अब तक ऐसा कोई तथ्य नहीं जुटाया है। जांच समिति को अब तक पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी उपलब्ध नहीं कराई गई है।

बहरहाल,वर्दी वालों की जांच तो किसी ठिकाने पर पंहुचेगी ऐसा नजर नहीं आ रहा है। वर्दी वालो के बडे साहब पहले ही कह चुके है कि यह सीधा सा आत्महत्या का मामला है,इसलिए इस दिशा में आगे कुछ होने की उम्मीद कम ही है। लेकिन बाल कल्याण समिति की जांच में कई सारे चौंकाने वाले खुलासे हुए है। समिति ने बालिका के साथ रहने वाली बाकी की बालिकाओं के बयान लिए तो पता चला कि उस पर नन बनने के लिए जबर्दस्त दबाव डाला जाता था। इस दबाव के अलावा किसी और तरीके से उसका शोषण भी हुआ हो सकता है। समिति की जांच में ही सामने आया कि उडीसा से लाई हुआ पांच में से तीन बालिकाएं तो कान्वेन्ट स्कूल में पढती थी,जबकि दो बालिकाओं को मदर टेरेसा स्कूल में भेजा जाता था। ऐसा क्यो किया जा रहा था,यह किसी को नहीं पता। कान्वेन्ट वाले बरसों से बिना इजाजत के अवैध तरीके से नाबालिग बालिकाओं का होस्टल चला रहे थे। जिले में होस्टल में रहने वाली बालिकाओं के शोषण के किस्से पहले भी सामने आ चुके है। ऐसे में कान्वेन्ट के इस अवैध होस्टल के इतिहास में शोषण की ना जाने कितनी कहानिया दबी होगी,कोई नहीं जानता। जिस मदर टेरेसा स्कूल में दो बच्चियों को पढने भेजा जाता था,उसकी मान्यता का भी पिछले दो सालों से नवीनीकरण नहीं हुआ है।

बाल कल्याण समिति अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट तो बडे साहब को सौंप चुकी है और बला कल्याण आयोग को भी रिपोर्ट भेजी गई है। विस्तृत रिपोर्ट भी जल्दी ही भेजी जानी है। इन रिपोर्ट्स में कान्वेन्ट की तमाम काली करतूतों का ब्यौरा दिए जाने की भी जानकारी मिल रही है। लेकिन देखना है कि काले कारनामे सामने आने के बाद कान्वेन्ट स्कूल के खिलाफ कोई कार्रवाई हो पाती है या नहीं? कान्वेन्ट संचालकों को अपनी ताकत पर पूरा भरोसा है। वे जानते है कि यहां से लेकर राजधानी तक तमाम नौकरशाहों के बच्चे उन्ही के कब्जे है। इतना ही नहीं काली टोपी लगाने वाले हिन्दुत्ववादियों में से भी कई अपने बच्चों को इन्ही के हवाले करते है। ऐसे में इनके खिलाफ कदम उठा पाना आसान तो कतई नहीं है।

शहर सरकार के अफसरों की बल्ले बल्ले

सूबे की सरकार ने शहरी सीमाओं में स्वीकृत नक्शे के विपरित बनाए गए मकानों से जुर्माना वसूल कर उन्हे रैगुलर करने के लिए नए नियम बना दिए है। अब शहर सरकार के अफसरोंके मजे हो गए है। शहर में शायद ही कोई ऐसा मकान होगा,जो बिलकुल स्वीकृत नक्शे के हिसाब से बना होगा। आम लोग तो लोन की मजबूरी में नक्शा पास कराते थे। नक्शा पास कराने के लिए भी नीचे से उपर तक भेंट पूजा चढानी पडती थी। लेकिन सरकार के नए आदेश से अब दोबारा से भेंट पूजा चढाने का मौसम आ गया है। शहर सरकार के अफसर पहले तो मकानों की जांच करेंगे और फिर उसमे गलतियां ढूंढ कर धमकिया जारी करेंगे। धमकियों से डरे हुए लोग जब साहब से मामला सैट करने की गुजारिश करेंगे तब साहब जुर्माने की रकम में अपना परसेन्टेज जोड कर बडे आराम से वसूली कर लेंगे। ये पूरा काम सुव्यवस्थित ढंग से किया जाना है,इसलिए शहर सरकार के बडे साहब ने अपने अफसरों और शहर के लायसेन्सधारी कन्सल्टेन्ट्स की मीटींग लेकर उन्हे साफ साफ समझा दिया है कि ये अभियान तेजी से चलाया जाए वरना अफसरों का वेतन कटेगा और कन्सल्टेंट के लायसेंस रद्द कर दिए जाएंगे। उपर से देखने में तो साहब की मातहतों को दी गई धमकी है,लेकिन गहराई से समझने पर ये साहब का मातहतों को वसूली के लिए जारी किया गया फरमान है,जिससे बडे साहब से लेकर मातहतों तक सब की बल्ले बल्ले होना तय है।

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