Islamophobia : संयुक्त राष्ट्र संघ का इस्लामोफोबिया दर्शन …!
-चंद्र मोहन भगत
इसे अजीब ही कहा जाएगा कि जिन मुस्लिम राष्ट्रों से इस्लामी जिहाद का संरक्षण मिल रहा है और पनप रहा है उन्हीं के राष्ट्रों का संगठन इस्लामो फोबिया दिवस का प्रस्ताव रखे और इसे संयुक्त राष्ट्र संघ भी सही ठहराए । सदस्य देशों में अभी तक फ्रांस और भारत ने इसका विरोध किया है कि सिर्फ एक पंथ को लाभ पहुंचाने वाले प्रस्ताव लाने से दुनिया के अन्य पंथों में आपसी दूरियां को पाटना मुश्किल हो जाएगा। इस्लामो फोबिया का प्रस्ताव आना और इसे संघ से मान्यता मिलना यह जाहिर करेगा कि विश्व भर में इस्लाम के खिलाफ डर का माहौल फैलाया जा रहा है। जबकि दृश्य बिल्कुल ही उलट बनता जा रहा है।
कई मुस्लिम राष्ट्रों में आतंकी संगठनों को संरक्षण मिलता है और कहा यह जाता है कि आतंक का कोई मजहब नहीं है फिर जैशे मोहम्मद अलकायदा आईएसआईएस जैसे संगठनों की गतिविधियों की हरकतों को किस माध्यम से नापा जायेग ? गुस्ताख ए रसूल के नाम पर गैर इस्लामीओं की हत्या करना या दूसरा इनका अपना मापदंड इस्लाम की रक्षा के लिए ऐसा करना इस्लाम के पैरोंकार। राष्ट्र और मजहबी नेता जायज ठहराते आए हैं हाल ही में प्रसिद्ध लेखक सलमान रुश्दी पर प्राणघातक हमला संघ के मुख्यालय वाले शहर न्यूयार्क में ही हुआ था। इस्लाम के मामले में भारत में भी कमलेश तिवारी कन्हैया लाल उमेश कोल्हे की हत्या के ताजा मामले हैं इनके साथ ही वे लोग भी आतंकियों के निशाने पर हैं जिन्होंने नूपुर शर्मा के समर्थन में आवाज उठाई थी ।
जिस पंथ के समर्थक गैर पंथ के अनुयायियों की हत्या करने पर उतारू हैं उन्हीं के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ यह प्रस्ताव पारीत करे कि इस्लाम के खिलाफ डर का माहौल बनाया जा रहा है 15 मार्च को इस्लामोफोबिया दिवस के रुप में मनाया जाए ! ऐसा होने ही वाला है पर उन प्रबुद्ध नागरिकों का क्या होगा जिन्होंनेसलमान रुश्दी नूपुर शर्मा कनहैया लाल उमेश कोल्हे के प्रति समर्थन प्रकट करते हुए अति वादी पन्थियों की आलोचना की है। ऐसे लोगों को अभी भी दुनिया भर में जहां भी रहते हैं धमकियां मिल रही है मुस्लिम राष्ट्र इन धमकियों की आलोचना करना तो दूर नजरअंदाज कर अप्रत्यक्ष का समर्थन कर रहे हैं । पर अन्य पंथ को मानने वाले राष्ट्रों का मौन रहना भी कट्टरपंथियों की ताकत में अप्रत्यक्ष इजाफा कर रहा है ।
भारत में मुस्लिम आबादी पाकिस्तान से अधिक है जब दुनिया भर में इस्लामिक जिहाद संस्कृति का लगातार बढ़ना और दूसरी तरफ संयुक्त राष्ट्र संघ का इस्लामोफोबिया का दिवस 15 मार्च को स्वीकारोक्ति देना दुनियाई भाईचारे की संस्कृति में विरोधाभास का प्रतीक बन सकता है ? ये जग जाहिर है कि मुस्लिम कट्टरपंथी गैर इस्लामियों की हत्या को भी जायज ठहराते हैं ।ऐसे में मानवता और गैर मुस्लिम पंथों की सांस्क्रतिक सद्भावना को आघात पहुंचना निश्चित तय है ।
अगर ऐसे ही एक तरफा जिहादी संस्क्रति के पँथकारों राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा गौण पक्ष लिया जाता रहा तो दुनिया भर का सामाजिक सोहाद्र बिगड़ेगा ही । दुसरी तरफ इस सम्भवना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि जिहादी संस्क्रति का विरोध करने वाले राष्ट्र और पंथ भी अगर एकजुट एकजुट होकर अपनी विचारधारा को जब बलात मनवाने के लिए जिहाद का सहारा लेंगे तब दुनिया में शांति के स्थान पर जगह अराजकता का वातावरण बन जाएगा और कितना आक्रामक होगा यह समय ही बताएगा पर ये तय माना जा सकता है कि दुनियाई समाज भय के वातावरण में जीने को मजबूर होगा ।