April 29, 2024

Raag Ratlami Corporation – धीमी गति बन चुकी है शहर सरकार की पहचान,काम शुरु तो होते है,पूरे नहीं होते ; गर्मिया आ गई पर सूना है सरकारी स्विमिंग पुल

-तुषार कोठारी

रतलाम। चुनाव नजदीक आ रहे है इसलिए सूबे के गांव गांव में विकास यात्राएं निकाली जा रही है। शहर में भी विकास यात्रा निकाली गई। प्रथम नागरिक ने अलग अलग वार्डो में जाकर करोडों के कामों की शुरुआत कराई। शहर में काम तो ढेरों चल रहे है,लेकिन पूरे होते नजर नहीं आ रहे है। सड़कें खुदती है,तो लोगों को लगता है कि कुछ वक्त के बाद सुविधा मिलेगी,लेकिन कुछ वक्त का ये इंतजार कब लम्बे वक्त में बदल जाता है,पता ही नहीं चलता।

शहर में सीवरेज का काम बरसों तक चला। पूरा शहर दिक्कतें झेलता रहा। अब जैसे तैसे ये दिक्कतें खत्म हुई है,लेकिन सीवरेज का फायदा दिखाई नहीं दे रहा है। सड़कों के नीचे तो सीवरेज लाइन डल गई है,लेकिन उनका कनेक्शन धरों से अब तक नहीं हो पाया है। जब तक घरों से कनेक्शन नहीं होगा,सीवरेज का फायदा नजर भी नहीं आने वाला।

शहर के हजारों घर,अभी सीवरेज से कनेक्ट नहीं हुए है। कब होंगे कोई नहीं जानता। घरों के कनेक्शन होने के बाद सीवरेज प्रोजेक्ट कितना सफल होगा ये तभी पता चलेगा,जब सारे कनेक्शन हो जाएंगे।

सडकों के कायाकल्प के लिए करोडों रुपए मिलने की बात कही जा रही है। कुछ सड़कों की खुदाई भी चालू हो गई है। लेकिन दिक्कत वही है,कि खुदी हुई सडकें कब दुरुस्त होगी,इसका वक्त तय नहीं है। वैसे सरकारी कागजों में हर काम के पूरा होने का वक्त तय होता है,लेकिन ठेकेदार की मनमर्जी के आगे कागज का क्या मोल? कागजों पर चाहे जो लिखा हो,होगा वही जो ठेकेदार चाहेगा। शहर सरकार के तमाम काम धीमी गति के समाचारों की तरह होते है। शुरु होते है तो दिखाई देते है,लेकिन खत्म होने का नाम नहीं लेते। शास्त्री नगर की सड़क फोरलेन हो गई,लेकिन इस सड़क की एक छोटी सी पुलिया को बनने में महीनों लग चुके है। अभी भी कतई कोई ठिकाना नहीं है कि यह कब बनेगी? पुलिया खुदी पडी है,बस इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है,कि यहां काम हो रहा है।

शहर सरकार के तौर तरीके बदलने की कोई उम्मीद नहीं है। भले दिल्ली और भोपाल वाले तेज कामों के रेकार्ड बनाने में लगे हो,शहर सरकार अपनी पहचान बदलने को कतई राजी नहीं है। धीमी गति के काम तो शहर सरकार की पहचान है।

लोगों ने चुनाव के वक्त उम्मीद लगाई थी कि फूलछाप के नेता पहले के मुकाबले अपने काम काज में चुस्ती फुर्ती दिखाएंगे। वाटरपार्क वाले भैया शहर के प्रथम नागरिक बने तो उम्मीद थी कि शहर सरकार के तौर तरीकों में बदलाव आएगा,लेकिन शहर सरकार तो नहीं बदली,वाटरपार्क वाले भैया जरुर बदल गए। वो भी शहर सरकार के रंग-ढंग में ही ढल गए।

उपर वाले कितनी भी कोशिशें कर लें,शहर सरकार के कारिन्दो सुधरने वालों में से नहीं है। उनेक तौर तरीके वही रहेंगे,जो बरसों से उनकी पहचान बने हुए है। फूलछाप पार्टी के बडे नेताओं को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए,जिससे कि आने वाले वक्त में शहर के बाशिन्दे प्रथम नागरिक और शहर सरकार के खिलाफ हो सकते है। और अगर ऐसा हुआ तो आने वाले चुनावों में फूलछाप पार्टी के लिए दिक्कतें भी खडी हो सकती है।

सक्रिय है गौ तस्कर

वर्दी वालों ने वैसे तो कमाल कर दिया कि उनपर हमला करने वाले बदमाशों को ढूंढ निकाला। इनमें से चार को तो वर्दी वालों ने दबोच भी लिया। सात अभी वर्दी वालों की गिरफ्त से दूर है। बदमाश जब कब्जे में आए तब पता चला कि ये सारे गौ तस्कर थे। वर्दी वालों पर हमला करने के वक्त उनकी गाडियों में गौवंश ही भरे हुए थे। वर्दी वालों की नाकाबन्दी के बावजूद ये सारे के सारे वर्दी वालों पर हमला करके निकल भागे थे। फिर वर्दी वालों ने अपना कमाल दिखाया और सबका पता कर लिया।

लेकिन अब कई सारे सवाल खडे हो गए है। पहला सवाल तो यही कि गौ तस्करों में इतनी हिम्मत कहां से आ गई कि उन्होने वर्दी वालों पर सीधे जानलेवा हमला कर दिया। हमला करने के बाद भागने में कामयाब भी हो गए। इससे भी बडा सवाल ये कि इलाके में गौ तस्करी का खेल बढता जा रहा है,लेकिन वर्दी वाले अब तक किसी बडे खिलाडी पर हाथ नहीं डाल पाए है।

गौ तस्करों में वर्दी वालों पर हमला करने की हिम्मत भी इसी वजह से आई है कि उनका तस्करी का कारोबार लम्बे वक्त से फलता फूलता रहा है और वर्दी वाले इसे अनदेखा करते रहे है। जानकारों का कहना है कि कई वर्दी वालों को इसके एवज में बन्धी बन्धाई कमाई मिलती रही है। कारोबार फलते फूलते जाने के बाद ही बदमाशों की हिम्मत बढती है। हमलावरों को पकडने के बाद अब वर्दीवालों को इस बात पर पूरा ध्यान देना चाहिए कि तस्करी के इस खेल में कौन कौन जुडा है। इनको अगर ज्ल्दी दबोचा नहीं गया तो इनके हौंसले फिर से बुलन्द होने लगेंगे।

सूना स्विमिंग पुल…..

गर्मियों का मौसम शुरु हो चुका है। लेकिन शहर का इकलौता सरकारी स्विमिंग पुल सूना पडा है। गर्मियों के मौसम में नन्हे बच्चों को जलक्रीडा करना सबसे अच्छा लगता है। सरकारी स्विमिंग पुल की जलक्रीडा बच्चों के लिए बेहद आसान होती है,क्योकि इसमें खर्चा नाममात्र का होता है। लेकिन अगर यही जलक्रीडा सरकारी की बजाय प्राईवेट स्विंिंमंग पुल में करना पड जाए तो उसका खर्चा हर किसी के बस में नही होता। यही वजह है कि सरकारी स्विमिंग पुल के खुलने का इंतजार तमाम बच्चों को रहता है। कोरोना के चक्कर में स्विमिंग पुल बन्द हुआ तो आज तक चालू नहीं हुआ है। शहर सरकार के अफसरों ने इसका उपयोग अपनी मीटींगो के लिए शुरु कर दिया। उन्हे इस बात की चिंता ही नहीं कि बच्चे कहां जाएंगे? कहने वाले तो ये भी कह रहे है कि शहर सरकार के मालिक खुद वाटर पार्क चलाते है। यही वजह है कि सरकारी स्विमिंग पुल को चालू करने पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

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