May 20, 2024

Raag Ratlami : किस्मत ने बना दिया मास्साब से “माननीय”,लेकिन नहीं आया “माननीय” जैसा बडप्पन,खतरे में पड सकती है फूल छाप की प्रतिष्ठा

-तुषार कोठारी

रतलाम। सरकारी स्कूल के मास्साब किस्मत से “माननीय” तो बन गए लेकिन “माननीय” होने जैसा बडप्पन उनमें नहीं आ पाया। “माननीय” बनने के बाद अखबार में नाम और फोटो छपवाने का जो चस्का उन्हे लगा वो इतना बढा कि अगर फोटो और नाम छपवाने का एक मौका भी उनके हाथ से निकल जाता है,तो उनका पारा सातवें आसमान पर जा पंहुचता है और इसका खामियाजा उसे भुगतना पडता है,जिसका पूरे मामले से कोई लेना देना ही नहीं होता। कहते है पाडो की लडाई में बागड का नाश । “माननीय” का गुस्सा तो अपनी ही पार्टी के नेताओं के लिए था,लेकिन चूंकि उन पर “माननीय” का बस नहीं चलता इसलिए उन्होने अपना गुस्सा एक छोटे कर्मचारी को निलम्बित करवा कर निकाला।

फूल छाप पार्टी में ये किस्सा इन दिनों सुर्खियों में है। खबर आई कि पास की एक पंचायत के सचिव को अचानक से निलम्बित कर दिया गया। सचिव को जिस गुनाह की सजा दी गई वो उसने किया ही नहीं था,बल्कि उसका तो पूरे मामले में कोई लेना देना ही नहीं था।

कहानी बडी रोचक थी। गांव में सरपंच वकील साहब ने अपनी निधि से एक सडक बनवाई थी। फूलछाप पार्टी के नवनियुक्त विप्लवी युवा नेता किसी कार्यक्रम के लिए गांव में पंहुचे थे। सरपंच ने युवा नेता से नई बनी सड़क का उद्घाटन करवा लिया। अखबारों में सड़क के उद्घाटन की खबरें भी छपी और फोटो भी।

अखबार में छपी खबरें और फोटो देखकर “माननीय” का पारा सातवें आसमान पर पंहुच गया। लेकिन समस्या ये थी कि “माननीय” अपना गुस्सा किस पर उतारें। ना तो सरपंच पर गुस्सा उतारा जा सकता था,और ना ही पार्टी के विप्लवी युवा नेता पर। लेकिन “माननीय” को गुस्सा तो उतारना ही था। उन्होने अपना गुस्सा पंचायत के सचिव पर उतारा। जिस सचिव का इस पूरे मामले से कोई लेना देना नहीं था,उसे “माननीय” ने निलम्बित करवा दिया।

फूल छाप के लोग पूछ रहे है कि आखिर “माननीय” को इतना गुस्सा क्यो आया? उनकी निधि से कोई निर्माण कार्य होता और उद्घाटन उनके बिना कर दिया जाता,तो उनका गुस्सा समझ में भी आता। लेकिन यहां तो जो सड़क बनी थी,उसमें “माननीय” का कोई योगदान नहीं था। इसके बावजूद “माननीय” पूरे ग्र्रामीण इलाके में होने वाले हर काम पर अपना ही हक समझते है। सवाल ये भी पूछा जा रहा है कि उद्घाटन करने वाला नेता भी तो आखिर उसी फूल छाप पार्टी का युवा नेता था,जिसके टिकट पर मास्साब “माननीय” बने है। फिर इतनी नाराजगी क्यो?

बहरहाल,मास्साब से “माननीय” बने नेताजी की चर्चाएं जोरों पर है। ये तो उनका नया किस्सा है। उनके कई कारनामें पहले से चर्चाओं में बने हुए है। फूलछाप वालों को अब चिन्ता ये सताने लगी है कि अगले चुनाव में फूल छाप के लिए खतरे बढते जा रहे है। “माननीय” के कारनामोंं के चलते फूलछाप से लोगों की नाराजगी बढ रही है। अब तो चुनाव में ज्यादा वक्त भी नहीं बचा है। अगर फूलछाप ने जल्दी ही कोई कदम ना उठाए तो ग्र्रामीण इलाके में फूलछाप की प्रतिष्ठा बचाना मुश्किल हो सकता है।

अब तक शुरु नहीं हो पाया स्विमिंग पुल

कई बरसों बाद इस साल इतनी प्रचण्ड गर्मी देखने को मिल रही है। अभी अप्रैल आधा भी नहीं हुआ है,और पारा 42,43 तक जाने लगा है। लू के थपेडे डराने लगे है। ऐसी प्रचण्ड गर्मी में,जब सूरज आग उगल रहा हो,तब ठण्डे पानी की याद जरुर आती है। ठण्डे पानी में वक्त गुजारने की याद आती है।

शहर के लोगों ने सरकारी स्विमिंग पुल के लिए कई दशकों तक इंतजार किया। कई दशकों लम्बे इंतजार के बाद स्विमिंग पुल बना तो कुछ साल गुजरते ही कोरोना की चपेट में आकर बन्द हो गया। अब कोरोना जा चुका है,गर्मी आ चुकी है,लेकिन नगर निगम वाले ये भूल ही गए कि शहर में एक अदद स्विमिंग पुल मौजूद है,जो गर्मी में थोडी राहत दे सकता है। जिला इंतजामिया के बडे साहब महीनों पहले नगर निगम के साहब को हुक्म दे चुके है कि स्विमिंग पुल को फौरन चालू किया जाए। निगम वाले साहब ने बडे साहब का हुक्म सुना और भूला भी दिया। बडे साहब भी हुक्म देकर भूल गए। शहर के इकलौते दिव्यांग स्विमिंग चैम्पियन को स्विमिंग पुल बन्द होने के कारण अपनी प्रेक्टिस दूसरे शहरों में जाकर करना पडी थी। नगर निगम के साहबों ने दिव्यांग चैम्पियन की भी चिन्ता नहीं की। अब शहर के हजारों बच्चे गर्मियों में जलक्रीडा का आनन्द लेना चाहते है,लेकिन साहब लोगों को अभी भी कोई फर्क नहीं पड रहा है। शहर के बच्चे यही सोच रहे है कि कहीं स्विंिमग पुल चालू होते होते गर्मियां ना गुजर जाए।

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