Raag Ratlami Land Mafia : अपने गुनाहों की सजा पाएगा या नहीं जमीन का कमीन दलाल / कौन देगा कुर्बानी पंजे के लिए
-तुषार कोठारी
रतलाम। शहर सरकार ने वास्तव में कमाल दिखा दिया कि जमीन के कमीन दलाल के सारे खेल को फिलहाल तो खराब कर दिया। सिविक सेन्टर की बरसों से उलझी पडी खाली जमीन को हडपने के लिए जमीन के दलाल ने प्लानिंग भी कमाल की की थी। पहले तो शहर सरकार से बडे साहब की शह पर छोटे साहब ने लीज करवाई और हाथों हाथ इस लीज के दलाल ने अपने बेटे,बहू,बीबी और ना जाने किस किस के नाम पर खरीद लिया। लेकिन मामले की पोल पïट्टी उजागर हुई तो शहर सरकार के माननीयों ने सारे खेल पर पानी फेर दिया।
पूरी कहानी में कई सारे पेंच अभी भी है। दलाल ने जो रजिस्ट्रियां कराई है,उनका खात्मा अदालत से ही होगा। वैसे शहर सरकार के माननीयों ने जिला इंतजामिया के नए आए बडे साहब को भी जमीन शहर सरकार के नाम पर करने के लिए एक पत्र सौंपा है। प्रथम नागरिक और शहर सरकार के माननीयों ने जिला इंतजामिया के बडे साहब से मुलाकात करके कहा है कि अवैध तरीके से बेची गई तमाम जमीनों को शहर सरकार के नाम पर किया जाना चाहिए,क्योकि शहर सरकार ने इसके लिए सारी रकम सरकार को चुका दी है।
कायदे से शहर सरकार को इतनी मशक्कत करने की जरुरत ही नहीं थी। शहर सरकार की ओर से कराई गई लीज में ही शर्त लिखी हुई है कि अगर लीज होल्डर शर्तों का उल्लंघन करता है तो शहर सरकार को अपनी जमीन पर कब्जा करने का अधिकार है। अगर शहर सरकार इस शर्त के हिसाब से चलती,तो मामले की पोल पïट्टी उजागर होने के फौरन बाद में अपनी जमीनों का कब्जाा हासिल कर लेती। लेकिन शहर सरकार के प्रथम नागरिक और दूसरे माननीयों ने ऐसा नहीं करते हुए जिला इंतजामियां के बडे साहब से गुहार लगाई।
शहर सरकार ने ऐसा क्यों किया? इस सवाल का जवाब इस बात में है कि जमीन के कमीन दलाल ने जो खेल रचा था,उसमें शहर सरकार के बडे नेताओं की भी हिस्सेदारी थी। जमीन के कमीन दलाल ने शहर सरकार के बडे साहब,छोटे साहब से लगाकर नेताओं तक को उनकी कीमत अदा की थी। कीमत अदा किए जाने से ही जमीनों की बंदरबांट हो पाई थी। लेकिन जब पोल पट्टी उजागर हो गई,तो नेताओं ने फौरन अपने हाथ झटक लिए और शहर सरकार की मीटींग मे रजिस्ट्रीयों को शून्य कराने का प्रस्ताव सर्वानुमति से पारित हो गया। पोल पïट्टी करने की सारी गाज शहर सरकार के बडे और छोटे साहब पर गिर गई। दोनो ही साहबों को सूबे की सरकार ने घर बिठा दिया। दूसरी ओर जब प्रस्ताव सर्वानुमति से पारित हो गया तो सारे माननीय बात को आगे बढाने के नाम पर जिला इंतजामिया के बडे साहब से मिल आए।
लेकिन बात अब भी वहीं है। शहर सरकार को फौरन अपनी जमीनों का कब्जा हासिल कर लेना चाहिए था। लेकिन जमीन के दलाल का “कमाल” इसके आडे आ रहा है। खुद को राजाओं का इन्द्र समझने वाले जमीन के इस दलाल का ये पहला कारनामा नहीं है। इससे पहले भी जमीन का ये दलाल शहर सरकार के अफसरों के साथ मिलकर कई सारे “कमाल” कर चुका है। बुद्ध के नाम पर चल रहे स्कूल की जमीन भी दलाल ने इसी तरह हडप रखी है। शहर सरकार के जिम्मेदार इस जमीन से भी आंखे मून्दे हुए है। जमीन दलाल ने अपनी एक कालोनी में शहर सरकार की काफी सारी जमीन हडप कर उसे बेच डाला। इस घोटाले की भी सारी जानकारी शहर सरकार के जिम्मेदारों के पास मौजूद है,लेकिन दलाल का “कमाल” ही ये है कि दुनिया भर की चोरी चकारी करने के बाद भी जमीन का ये दलाल अब तक बचा हुआ है।
सिविक सेन्टर की जमीनों के मामले में भी मास्टर माइण्ड जमीन का दलाल ही है,लेकिन शहर सरकार की तकरीरों में उसका नाम नहीं लिया जाता। सिविक सेन्टर का घोटाला उजागर होने के बाद देखने वाली बात यही है कि शहर सरकार सचमुच में इन जमीनों को दलाल से बचाना चाहती है या सिर्फ बचाने का बहाना करके दिखाना चाहती है।
वास्तव में जमीन के दलाल का ये कारनामा उसे सलाखों के पीछे डालने के लिए पर्याप्त है,लेकिन इसके लिए शहर सरकार के जिम्मेदारों की इच्छाशक्ति जरुरी है। आने वाले दिनों में ही ये पता लग पाएगा कि शहर सरकार के नेता और जिम्मेदार जमीन के दलाल को उसके गुनाह की सजा दिलवाते है या फिर से उसके हाथों बिक कर मामले को रफा दफा करवा देते है।
कौन देगा कुर्बानी पंजे के लिए
देश के आम चुनावों की तारीखों का एलान हो चुका है और फूल छाप पार्टी सूबे की सारी सीटों के उम्मीदवार घोषित कर चुकी है। लोगों को इंतजार पंजा पार्टी की लिस्ट का है। पंजा पार्टी अजीब हालत में है। एक जमाने में पंजा पार्टी में टिकट हासिल करने की लडाई चुनाव लडने से ज्यादा जोरदार होती थी,लेकिन अब लगता है कि कोई टिकट ही नहीं लेना चाहता। रतलाम सीट की हालत भी यही है। पंजा पार्टी के नाम पर संसद में बरसों गुजार चुके और मंत्री रह चुके नेताजी इस बार तैयार नहीं है। इस बार वे नई पीढी को आगे लाने की बातें कर रहे है। नई पीढी भी उनके घर की नहीं होना चाहिए।
पंजा पार्टी के ज्यादातर लोग समझ रहे है कि पंजा पार्टी का टिकट,असल में पराजय का प्रतीक बन चुका है। टिकट लिया तो लाखों का खर्चा होना तय है और ये भी तय है कि ये लाखों रुपए पानी में जाने वाले है। इसी का असर है कि बरसों संसद में गुजार चुके नेताजी खुद की बजाय सैलाना वाले भैया को टिकट दिलाना चाहते है। सैलाना वाले भैया अभी हाल ही में एक हार झेल चुके है। बडे नेताजी उन्हे टिकट दिलाकर दोबारा हार दिलाना चाहते है।
अब तक ये तय नहीं हो पा रहा है कि पंजा पार्टी के लिए कुर्बानी कौन देगा? सैलाना वाले भैया का नाम सबसे आगे बताया जा रहा है। अगर वो कुर्बानी से बच गए तो फिर बलि के लिए किसी दूसरे बकरे की तलाश की जाएगी। इतना तय लग रहा है कि पंजा पार्टी के बडे नेताजी किसी ना किसी तरह से इस कुर्बानी से बच ही जाएंगे।