Raag Ratlami Election Result : दिल्ली का सबसे ज्यादा असर रतलाम पर,पंजा पार्टी की जीरो वाली हैट्रिक से सदमें में है नेता
![singing-logo](https://ekhabartoday.com/wp-content/uploads/2024/03/singing-logo.jpg)
-तुषार कोठारी
रतलाम। वैसे तो दिल्ली देश की राजधानी है,इसलिए वहां जो कुछ होता है,उसका असर पूरे देश पर होता है। लेकिन शनिवार को सुबह से दिल्ली में जो कुछ हुआ उसका असर रतलाम पर कुछ ज्यादा ही नजर आया। वहां दिल्ली में पंजा पार्टी वाले जीरो आने के बावजूद झाडू का सूपडा साफ होने की खुशियां मना रहे थे,लेकिन यहां पंजा पार्टी की जीरो वाली हैट्रिक से जमकर मायूसी छाई हुई है। कई नेता सदमे में है,क्योंकि उन्हे उम्मीद थी कि पंजा पार्टी कुछ सीटें तो ले ही आएगी। लेकिन पार्टी तो लगातार छठी बार भी जीरो पर ही अटक गई।
शादी के एक कार्यक्रम में कई सारे नेता एकसाथ मौजूद थे। इनमें पंजा पार्टी वाले भी थे,फूल छाप वाले भी और कई ऐसे भी थे,जो पंजा पार्टी के लगातार जीरो लाने की योग्यता को देखते हुए पंजा छोडकर फूल पकड चुके है। नेताओं के बीच बडी मजेदार बातें होने लगी। किसी जमाने में पंजा पार्टी के बडे नेता रहे नेताजी अब सियासत को अलविदा कह चुके है। उन्होने फूल छाप वाले नेता को शानदार जीत की बधाई दी। फूल छाप के नेताजी ने खुशी खुशी बधाई कबूल की। उधर पंजा पार्टी में अब तक बने हुए नेताओं के चेहरे लटके हुए थे। उसी वक्त वहां वो नेता भी आ पंहुचे,जो अभी कुछ ही वक्त पहले तक पंजा पार्टी के हुआ करते थे और अब फूल पकडे हुए है।
हाल ही में फूल छाप बने नेताजी ने पंजा पार्टी वालों को मुस्कुराते हुए कहा कि पप्पू के रहते पंजा पार्टी के हर नेता को हर चुनाव में इसी तरह की मायूसी झेलना पडेगी। पंजा पार्टी पप्पू को छोड नहीं सकती और पप्पू कभी पास नहीं हो सकता। ये बातें सुनकर पंजा पार्टी वाले क्या जवाब देते? बात तो सही थी,लेकिन जवाब दिया नहीं जा सकता था। वे भी बस मुस्कुरा के रह गए।
इसी वक्त किसी ने जुमला टिका दिया कि बदलना तो ये भी चाहते है लेकिन कोई मौका नहीं दे रहा। अगर इन्हे भी मौका मिल जाए तो ये फौरन पंजा छोडकर फूल पकड लें। इस बात पर हाल ही में फूल पकडने वाले नेताजी का भी दर्द फूट पडा। उन्होने कहा फूल पकड कर भी अब तक तो कुछ नहीं मिला है। बस इतना ही है कि हर चुनाव में हार की मायूसी झेलने से बच गए है। फूल छाप में अब भीड इतनी हो गई है कि नए आने वालों को कोई पूछता तक नहीं है। हमे तो फूल पकडे फिर भी कुछ वक्त गुजर चुका है इसलिए ,उम्मीद है अब तो कोई सुनवाई हो जाएगी,लेकिन जो अब आएंगे उन्हे पता नहीं कितना लम्बा इंतजार करना पडेगा?
पंजा छोड कर फूल पकडने के प्रस्ताव पर पंजा पार्टी के नेताजी कुछ सोच पाते इससे पहले ही उन्हे यह बात सुनने को मिल गई। उन्होने कहा जो भी हो,भले ही पप्पू पास नहीं हो पा रहा हो,लेकिन हम तो पंजे के साथ ही ठीक है। भले ही लोग हमारा साथ नहीं देते लेकिन हम अपनी कोशिश जारी रखेंगे। बस इतना कह कर पंजा पार्टी वाले नेताजी वहां से खिसक लिए। उनके जाते ही पंजा छोड कर फुल पकडने वाले नेताजी ने कहा रतलाम के पंजा पार्टी वाले इसीलिए ज्यादा दुखी है,क्योंकि उन्हे पता है कि यहां पंजा छोडकर फूल पकडने का मौका मिलना भी कठिन है।
सांप निकलने के बाद लकीर पीटने पंहुचे अफसर
जैसा कि इस कालम में पिछली बार ही लिखा था,जिले में जगह जगह जेहादी जहर भरने की फैक्ट्रियां मदरसों की शक्ल में चलाई जा रही है। जेहादी जहर की इन फैक्ट्रियों पर जिला इंतजामियां और वर्दी वालों को नजर रखना चाहिए,लेकिन अफसरों को अपनी वसूलियों से इतनी फुर्सत ही नहीं मिल पाती कि वे इस तरह की निगाहबीनी कर सके। बच्चों के अधिकारों की रक्षा करने वाली संस्था की मैडम ने सूबे की राजधानी से रतलाम आकर दूर दराज के गांव में चलाई जा रही जेहादी जहर की फैक्ट्री को पकड लिया,उनके साथ बच्चों और पढाई लिखाई से जुडे महकमों के अफसर भी मौजूद थे। मैडम के साथ गए अफसरों ने भी सबकुछ अपनी आंखों से देखा था,लेकिन इसके बावजूद उन्होने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई। वे मैडम की रिपोर्ट का इंतजार करते रहे।
अवैध तरीके से जेहादी जहर फैलाने की फैक्ट्री चलाने वालो को डर था कि उनके खिलाफ कोई बडी कार्रवाई हो सकती है,इसलिए उन्होने आनन फानन में फैक्ट्री को बन्द करके वहां कब्रिस्तान का बोर्ड टांग दिया और लिख दिया कि इस ईमारत में मुसाफिरों को ठहरने के कमरे है। जब ये फैक्ट्री चलाने वाले भाग रहे थे,उसी वक्त जिला इंतजामिया को लोगों ने खबर भी की थी,लेकिन उस वक्त उन्हे रोकने की किसी ने कोई कोशिश नहीं की। यहां तक कि वहां रहने वाले यतीम बच्चों को कहां भेजा जा रहा है,इस बारे में भी किसी ने कोई चिन्ता नहीं जताई।
सबकुछ बन्द हो गया। इसके बाद जिला इंतजामिया के बडे साहब अपने लाव लश्कर के साथ वहां सांप निकलने के बाद लकीर पीटने के लिए पंहुचे। उन्हे भी पता था कि अब वहां कुछ नहीं रखा है,लेकिन दिखावा तो करना था। लेकिन बडा सवाल अब भी खडा है। मदरसे की जगह कब्रिस्तान की इमारत का बोर्ड तो टांग दिया गया है,लेकिन सवाल ये है कि देश दुनिया के किस कब्रिस्तान में मुसाफिरों के ठहरने के लिए कमरे बनाए जाते है? और मुर्दे को दफ़न करने के लिए कब्रिस्तान आने वाले लोगो में से कौन वहां रुकता है ? सवाल अभी ये भी है कि कब्रिस्तान की जमीन पर मुसाफिरों के ठहरने के लिए कमरे बनाने के लिए कोई इजाजत ली गई थी या नहीं? और अगर बिना इजाजत के इमारत तान दी गई तो इसके लिए सजावार कौन होगा? सवाल कई सारे है लेकिन जिला इंतजामियां के अफसर इन सवालोंं का जवाब लेने के बजाय सिर्फ इमारत का मुआयना करके अपनी जिम्मेदारियां पूरी कर रहे है।