November 22, 2024

Raag Ratlami E Pass: बीमार होना है,तो एक दिन पहले तय कीजिए,वरना नहीं पहुच सकेंगे अस्पताल/कानून तो है,लेकिन डर लगता है

-तुषार कोठारी

रतलाम। ये जिला इंतजामिया का नया फरमान है। शहर में अगर किसी को बीमार होना है,तो उसे एक दिन पहले पता होना चाहिए। अगर कोई अचानक बीमार हो जाता है,तो फिर वो अस्पताल नहीं जा पाएगा। शहर के बुजुर्गों के लिए भी हिदायत है कि वे दस दिनों तक किसी की भी मदद नहीं लेंगे।

हैरान मत होईए। जिला इंतजामियां ने बाकायदा ये फरमान जारी किया है। कोरोना लहर के कम होते असर को पूरी तरह खत्म करने के लिए इंतजामिया के नए हाकीम ने दस दिनों का सख्त लाकडाउन तो लगाया ही। घरों से बाहर निकलने पर पूरी तरह रोक लगा दी है। अगर किसी को बाहर निकलना है,तो उसे इ पास लेना जरुरी है। हाईटेक इंतजामिया ने पास जारी करने के लिए एक नई बेवासाइट भी जारी कर दी।

इंतजामिया ने हुक्म दिया है कि जिस किसी को घर से बाहर निकलना है,वो एक दिन पहले इंतजामिया की बनाई हुई बेवसाइट पर आनलाइन आवेदन देगा। इंतजामिया के अफसरों को कारण उचित लगेगा तो चार से पांच घण्टों के भीतर आवेदक के मोबाइल पर इ पास पंहुच जाएगा।

इंतजामिया द्वारा जारी फरमान में साफ कहा गया है कि अस्पताल जाने,डाक्टर को दिखाने,अस्पताल में भर्ती अपने किसी रिश्तेदार की तीमारदारी करने,किसी बीमार रिश्तेदार के लिए दवा खरीदने और बीमारी के दौरान किसी भी तरह की जांच करवाने जैसे तमाम कामों के लिए घरों से बाहर निकलने के लिए इ पास जरुरी है। इसका सीधा सा मतलब यही है कि अगर किसी को बीमार होना है,तो उसे एक दिन पहले पता होना चाहिए ताकि वह अगले दिन के लिए इ पास जारी करवा कर रख सके। अब अगर अचानक कोई बीमार हो जाता है,तो ये जिला इंतजामिया के हुक्म की नाफरमानी होगी। ऐसे हालात में उसे बाहर निकलने की इजाजत नहीं है। लोग पूछ रहे है कि किसी के घर में अचानक कोई बीमार हो जाए,तो उसे पहले क्या करना होगा,अस्पताल जाने के बारे में विचार करना पडेगा कि इ पास जारी कराने के लिए आनलाइन आवेदन करना होगा? ये नासमझ लोग जानते नहीं कि एक बार फरमान जारी हो गया,तो फिर उसे बदला नहीं जाता। इसलिए ये जरुरी है कि बीमार होने से एक दिन पहले ही पता रहे कि अगले दिन बीमारी आने वाली है।
इसका असर भी नजर आने लगा। इंतजामिया के इस फरमान से पहले जिला अस्पताल के फीवर क्लिनीक में जहां भीड लगा करती थी,फरमान जारी होने के बाद भीड नदारद हो गई। या तो ये समझा जाए कि लोगों को बुखार सर्दी होना ही खत्म हो गया है या फिर ये समझा जाए कि लोग डर के मारे फीवर क्लिनीक नहींं पंहुच रहे है। जो भी हो इंतजामिया के अनोखे फरमान को असर तो दिखने लगा है।

इसी फरमान में बुजुर्गों के लिए भी हिदायत छुपी हुई है। जो बुजुर्ग बिना किसी दुसरे की मदद के अपने काम नहीं कर पाते,उन्हे भी अब अपने काम खुद करना होंगे। जिन लोगों ने बुजुर्गों की देखभाल के लिए सहायकों को सेवा में रखा है,उन्हे इन सहायकों को दस दिन की छुïट्टी देना होगी। आनलाइन आवेदन के बाद जो इ पास जारी होता है,वो तो केवल एक दिन के लिए किया जाता है। फिर हर दिन हजारों आवेदन हो रहे है और पूरा अमला तमाम कोशिशों के बावजूद भी सारे आवेदन चैक ही नहीं कर पाता। ऐसी स्थिति में सैैंकडों आवेदन लटके रह जाते है। हजारों रिेजेक्ट कर दिए जाते है। बुजुर्गों को तो हर दिन सहायक की जरुरत होती है। ऐसे किसी पास की फिलहाल कोई व्यवस्था नहीं है। दस दिन तो बुजुर्गों को बिना मदद के ही गुजारने होंगे।

बहरहाल इंतजामिया के सामने एक ही मकसद है कि कोरोना को किल करना है। किल कोरोना के चक्कर में चाहे कोई बीमार अस्पताल ना जा पाए और उसकी हालत खराब हो जाए या फिर दम ही निकल जाए। चाहै किसी बुजुर्ग की देखभाल करने वाला घरेलु नौकर बुजुर्ग तक ना जा पाए और उस बुजुर्ग की भी हालत खराब जो जाए या दम ही निकल जाए। मकसद एक ही है कोरोना किल हो जाए।

कानून तो है लेकिन डर लगता है

मध्यप्रदेश में तिरेपन साल पहले से धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए कानून बना हुआ है। इस धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम में तिरेपन साल पहले से ये प्रावधान है कि धर्म परिवर्तन करना या धर्म परिवर्तन करने के लिए किसी भी प्रकार का प्रलोभन देना दोनो ही अपराध है। फिर जब यूपी में योगी जी ने लव जेहाद के खिलाफ कडा कानून बनाया,तो इधर मामा जी भी फार्म में आ गए। उन्होने अभी हाल ही में उसी पुराने कानून को और भी ज्यादा कडा कर दिया और इसमें सबूत का भार धर्म परिवर्तन करने का प्रयास करने वाले आरोपी पर डाल दिया गया। इतने मजबूत कानून के बावजूद अफसरों को पता नहीं क्यो इसके उपयोग से डर लगता है। बाजना के आदिवासी अंचल में चल रहे सरकारी किल कोरोना अभियान में एक डाक्टर लोगों को घर घर जाकर समझा रही थी कि यीशू की प्रार्थना करने से कोरोना नेगेटिव हो जाएगा और इसाई बनने से कोरोना कभी नहीं आएगा। इसके विडीयो तक वायरल हो गए। सबकुछ आईने की तरह साफ है। बीमारी से बचने का प्रलोभन है,धर्म बदलने का प्रयास है,कानून है ,विडीयो सबूत है। लेकिन अफसरों के पास जांच करवाने का बहाना है। थाने पर शिकायत कर दी गई,तो जांच का बहाना बना दिया गया। आदिवासी अंचल में धर्मपरिवर्तन का इतना खुला षडयंत्र,लेकिन कोई कार्यवाही नहीं। ना तो पुलिस ने प्रकरण दर्ज किया और ना इंतजामिया ने उसे निलम्बित किया। सवाल फूल छाप वाले नेताओं के लिए है। उनकी सरकार पिछले पन्द्रह सालों से है। दिल्ली में भी फूल छाप वाले ही है। इसके बावजूद उन्हे डर किसका लगता है..?

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