PAK ही नहीं मोदी के ‘जेम्स बॉन्ड’ डोभाल से अब चीन को भी लगने लगा है डर!
नई दिल्ली,25 जुलाई (इ खबर टुडे )। भारत और चीन के बीच बॉर्डर को लेकर चल रहा गतिरोध लगातार बढ़ता ही जा रहा है. चीन लगातार भारत को सिक्किम-भूटान बॉर्डर से अपनी सेना हटाने को कह रहा है, पर भारत भी सेना ना हटाने पर अड़ा है. इस बीच, बीजिंग में ब्रिक्स की एनएसए लेवल की मीटिंग होने वाली है. अब चीन ने देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल पर निशाना साधा है. चीन ने आरोप लगाया है कि डोकलाम में सीमा विवाद के पीछे डोभाल का ही दिमाग है. मोदी के सबसे खास सिपाही माने जाने वाले डोभाल को लेकर किसी देश ने ऐसे बयान दिया है, ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. इंडियन जेम्स बॉन्ड कहे जाने वाले डोभाल से पाकिस्तान हमेशा डरता रहता है.
2014 में नरेंद्र मोदी ने जब पीएम पद की शपथ ली थी, तब से ही वे चीन की ओर काफी आकर्षक रहे हैं. सितंबर 2014 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को पीएम मोदी ने भारत बुलाया, और अहमदाबाद में झूला झुलाया था. तब कहा गया कि पीएम चीन को निवेश के लिए लुभाना चाहते हैं, लेकिन मोदी की अमेरिका के साथ नजदीकी देख चीन का रुख बदला. चीन ने बार-बार बॉर्डर पर अपने सैनिकों की घुसपैठ के जरिए भारत को धोखा दिया. हालांकि मोदी सरकार लगातार ही इस मुद्दे पर बातचीत की बात करती रही.
क्या है डोभाल का रोल?
अजीत डोभाल नरेंद्र मोदी के करीबी हैं और काफी भरोसेमंद भी. यही कारण है कि पीएम चीन के मुद्दे को पूरी तरह से डोभाल के हवाले कर रखा है. चीन के मुद्दे पर कोई भी बात होती है तो अजीत डोभाल हमेशा एक्टिव रहते हैं. हाल ही में डोकलाम को लेकर जो विवाद चल रहा है, उस दौरान भी डोभाल की भूमिका काफी सक्रिय रही. कहा जा रहा है कि डोभाल नजर बनाए हुए हैं.
बॉर्डर मुद्दे पर इस बार होगी 20वीं बात
दोनों देशों के एनएसए इससे पहले पिछले साल नंवबर में मिले थे. बॉर्डर विवाद को लेकर 19वीं बातचीत थी. तब यह तय हुआ था कि दोनों देशों के बॉर्डर विवाद को बातचीत से जल्द ही सुलझाया जाएगा. इसके लिए दोनों देशों के बीच 20वीं बैठक भारत में होगी. दोनों देशों ने मिलकर सीमा विवाद सुलझाने के लिए गठित विशेष समिति की है, जिसके जरिए विवाद को सुलझाया जा सके. इस समिति में अजीत डोभाल एक मुख्य सदस्य हैं.
डोभाल से क्यों डर रहा चीन?
चीन का अजीत डोभाल से डरना लाजिमी है. डोभाल पीएम मोदी के भरोसेमंद हैं, उन्होंने चीन-पाकिस्तान जैसे बड़े मामलों से निपटने के लिए उन्हें ही पूरी जिम्मेदारी दी है. डोभाल के एनएसए बनने के बाद सुरक्षा नीति पर भारत का रुख आक्रामक हुआ है. चाहे वह पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक हो, या फिर म्यांमार में घुसकर आतंकियों को मारना. चीन के मुद्दे पर भी भारत इस बार आक्रामक रुख बनाए हुए है और झुकने को तैयार नहीं है.
डोभाल का इतिहास है चीन के लिए खतरे की घंटी
दरअसल, अजीत डोभाल भारत के सर्वश्रेष्ठ स्पाई में से एक रहे हैं. खुफिया एजेंसी रॉ के अंडर कवर एजेंट के तौर पर डोभाल 6 साल तक पाकिस्तान के लाहौर में एक पाकिस्तानी मुस्लिम बन कर रहे थे. इसके अलावा साल 2005 में एक तेज तर्रार खुफिया अफसर के रूप में स्थापित अजीत डोभाल इंटेलिजेंस ब्यूरो के डायरेक्टर पद से रिटायर हो गए. साल 2009 में अजीत डोभाल विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन के फाउंडर प्रेसिडेंट बने. इस दौरान न्यूज पेपर में लेख भी लिखते रहे. साल 1989 में अजीत डोभाल ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से चरमपंथियों को निकालने के लिए ‘आपरेशन ब्लैक थंडर’ का नेतृत्व किया था.