December 23, 2024

सृष्टि की प्राग्वस्था में जीवन घट-कुम्भ का संगठन

jivan sanatan

चैत्र-नवरात्रि,घट-कुम्भ स्थापना से तात्पर्य है कि जीवन पेड पर पक्षी के घोंसले के समान है, जिसे मॉ नौ ताह अपने गर्भ में पालती है, और दसवें माह मे जन्म होता है। जीवन का घट-कुम्भ जीवन का यंत्र-पा़त्र कां निर्माण सृक्ष्टि की प्राग्वस्था मे जब गहन निष्चल अंधकार के सिवाया कुछ नही था, उसमें गर्भ धारण की भावना से अंधेरे मे अंधेरे के समान काल-रात्रि का उदय हुआ। गहन अनन्त काले पहाड में काल-रात्रि, काली-तरंग, जैसे प्थ्वी पर भूकम्प के पूर्व कम्पन-तरग उत्पनन होती है। इसे पहाड की पुत्री-षैल-पुत्री, अकेली-ब्रह्मचारिणी कहा गया। एक से अनेक की कामना के वषीभूत गहन-षान्त निष्क्रिय चुम्बकत्व से विपाीत प्रेरित चुम्बकत्व ग्रहण किया, जिससे समानुपाती अनन्त अंधकार के विस्तृत क्षेत्र की आृकृति अण्डे के समान होने से इसे कुष्माण्डा कहा गया, जो भावी सृष्टि का गर्भ केन्द्र बना, इस गर्भ केन्द्र मे जीवन धारण वैसा ही है, जैसे कुवॅंारी कन्या की कामना यौवनावस्था में होती है। पेरित चुम्बकत्व और गहन-षान्नत स्थिर चुम्ब्बबकत्व के विरोधाभसी गंणो से आकर्क्षण-विकर्क्षण के फलस्वरुप आधारिय आकाष स्थान, जैसे आकाष से आकाष की उत्पत्ति। इस आधारिय स्थान ने सृष्टि के गर्भ क्षेत्र को अण्डेुमा आकार प्रदान किया, और अनन्त गहन विपरीत अंधकार के मध्य आकर्क्षण-विकर्क्षण के फलस्वरुप ध्वनि उत्पन्न हुई, जिसप्रकार हवा में चाबुक लहराने पर साय की आवाज होती है। ध्वनि अविनाषी तथा ध्वनि-प्रतिध्वनि निरनतर स्िरक्रय होकर सम्पपूण सृक्ष्टि गर्भ क्षेत्र को आवृत कर लेती है। यह ध्वनि तरंग के स्पन्दन से उत्पन्न होती है, इसलिए काली तरंग को स्कंद माता कहा गयाए जिसने गर्भ क्षेत्र को आकार प्रदान कर उपजाउ बीज ग्रहण करने सोग्य बनाया। बीजधारण करने योग्य क्षेत्र के अस्तित्व में आने के साथ काली-तरंग के स्पंदन से सम्पूर्ण क्षेत्र ध्वनि-प्रतिध्वनि से गुंजायमान होकर सम्पूण अनन्त निष्क्रिय अंधकार को उपजाउ क्षेत्र में परिवर्तित कर दिया, जिसे कात्यायनि कहा गया, और जैसे किसी सुस्त भैंसे को जाग्रत करने के लिए षोर किया जाता है, एसे ही काले अनन्त निष्क्रिय अंधकार को काली स्पंदनषील तरंग ने भयंकर गर्जना से सम्पपूर्ण क्षेत्र को भर दिया, यह काल-रानि की चरम अवस्था महा-रात्रि, जियने षान्त गहन निष्क्रिय चुम्बकम्व को विपरीत प्रेरित चुम्बकम्व के द्वारा विपरीत दिषा में अर्धघुमाव, तथा सूक्ष्म कण के विस्थापन से घुमाया, जिससे भयंकर ताप उत्पन्न हुआ, और समानुपाती अनुर्द्धेय तरंग के साथ कार्यषील ऊर्जा भयंकर गर्जना के साथ सक्रिय हुई, यह महान क्षण जब समानुपाती अनुर्द्धेय तरंग के साथ कार्यषील ऊर्जा सक्रिय हुई, सृष्टि का प्रथम बीज है, जिसे काली-तरंग ने समानुपाती अनुर्द्धेय द्वारा धारण किया, और गहन अंधकार प्रकाष से भर गया।

काली तरंग ने अपनी समानुपाती अनुर्द्धेय तरंग से भैये समान निष्क्रिय काली ऊर्जा को सक्रिय किया, इसे महिषासुरमर्दिनीकहा गया।, जिससे प्रकाष की सात किरणो ने अंधकार को नष्ट कर दिया, और महागौरी संगत हुई, जिससे तात्पर्य है कि काली तरंग से समानुपाती अनुर्ऋेय तरंग सात रंग के प्रकाष में परिवर्तित हुई, जिसने अंधकार को नष्ट कर पंकाष से भर दिया, जिसे महागौरी-उज्जवल कहा गया। समानुपाती काली अनुर्द्धेय तरंग से सात समानुपाती प्रकाष की अनुर्द्धेय तरंगे सक्रिय हुई, सृक्ष्टि की प्राग्वस्था में कार्यषील ऊर्जा की समानुपाती काली अनुर्द्धेय ने अपने ही समान अविनाषी जीव-घट-कुम्भ को संगठित किया, जो पृथ्वी पर जीवन का यंत्र-पात्र है। जिसे आधुनिक विज्ञान डीएनए कहता है। जहॉ मॉ के गर्भ में कार्यषील ऊर्जा बीजारोपण करती है, और समानुपाती काली अनुर्द्धेय तरंग जीव बीज को धारण करती है।

काली-अनुर्द्धेय तरंग कार्रूषील ऊर्जा से प्रकाषित होने पर सात रंगीन किरणे अति उच्च तापक्रम पर घातक पराबेंगनी किरणो से आच्छादित अवस्था मे कार्यषील ऊर्जा, और उसकी समानुपाती अनुर्द्धेय तरंग से सात रंग की प्रकाष किरणे संगत हुई, और डीएनए के क्षार प्युरीन, और पायरीमिडीन अपनी समानुपाती अनुर्द्धेय तरंग के साथ संगठित हुए, जो कार्यषील ऊर्जा के समान अविनाषी, और जीव घट-कुम्भ जीवन का यंत्र है।

प्रकाष किरणो के सूक्ष्म कणो फांेटॅान कों आधारिय आकाष से भार प्राप्त हुआ, जिन्हे समानुपाती अनुर्द्धेय तरंग ने सूक्ष्म के विद्युत स्पंदन से एक सूत्र में संगठित किया, घट के मध्य मे हरी प्रकाष किरणो ने हरे कणो को संगठित कर हरे क्लोरोफिल कणो को संगठित किया, जो अतिसंवेदनषील है, इसकी ुरक्षा में लाल, और नीली किरणे, और अन्य रंगीन किरणो ने घेरा, और डीएनए के क्षार प्युरीन-पायरीमिडान संगठित हुए। जिनमे सिर्फ नायट्ोजन का अंतर होता है, और हवा मे विभक्त होते है, जैसे दर्पण में छाया। जिसे प्रथम क्रियाषील समानुपाती इनुर्द्धेय तरंग मॉ के गर्भ में धारण करती है, और कार्यषील ऊर्जा बीजारोपण करती है।

कार्यषील ऊर्जा की समानुपाती अनुर्द्धेय-तरंग द्वारा सूक्ष्म कण के विस्थापन से ऊर्जा रुपान्तरण प्रार$भ हुआ, और ऊर्जा के उष्मा सम्बंधी सिद्धान्त के अंतर्गत सृष्टि अस्तित्व मे आई। सूक्ष्म कण ईलेक्ट्ान के विस्थापन से क्षरित ऊर्जा के रुपान्तरण से आक्सिकरण और अवकरण सृष्टि और जीवन का प्रथम बीज है। जो चक्रिय रुप में सक्रिय होकर आक्सिकरण संष्लेषण, ओर अवकरण विघटन द्वारा सृष्टि, जीवन को दो मॉ की तरह पोषित और नियंत्रित करते है।

जीव-घट-कुम्भ का संगतिकरण अति उच्च तापक्रम पर घातक पराबेंगनी किरणो के मध्य सात रंगीन किरणो से हुआ, और अति उच्च तापक्रम दबाव से ब्रह्माण्ड में भयंकर विस्फोट हुआ, तथा जीव-घट-कुम्भ् गर्म गैस पीण्डो के साथ बंदुक की गोली के समान चारो दिषाओं मे फैले।

पृथ्वी-गैस-पीण्ड के ठण्डा होने पर कार्यषील ऊर्जा संगठित होकर द्रवीकृत हो गई,जिसके अक्ष पर गति से अंतर्निहीत चुम्बकत्व सक्रिय हुआ, जिसस ेभूचुम्बकत्व की परिधी, अन्य ग्रहो के घातक चुम्बकीय आकर्षण में रक्षा कवच बना। जिसने घातक मंर्म ल्वालाओं रोक कर चुम्बकीय आकर्षण-विकर्षण की परस्पर क्रिया से मूलभूत कण आयनीकृत होकर पृथ्वी पर संगठित हुए, और चुम्बकीय क्रिया-प्रतिक्रिया से घातक पराबेंगनी किरणो की क्रिया से आण्विक आक्सिजन ओजोन मे परिवर्तित हुई, और पृथ्वी के चारो तर्फ ओजोन आवरण बना, जिसने घातक पराबेंगनी किरणो को अवषोषित कर प्रकाष किरणो के लिए मार्ग प्रषस्त किया।

प्रकाष किरणे ध्वनि, और स्पंदन द्वारा गति करती है, ये सात प्रकाष किरणे अपनी समानुपाती अनुर्द्धेयतरंग द्वारा जीव-घट-कुम्भ के द्वि क्षार जोडे को पानी के लस-लसे ससंतृप्त द्रव मे विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा क्षेत्र विकसित होता है, और प्रकाष की समानुपाती अनुर्द्धेय तरंग सूक्ष्म कण ईलेक्ट्ान के विस्थापन एवं समानुपाती तरंग में अर्ध घुमाव से क्षरित ऊर्जा घट-कुम्भ मे समानुपाती प्रकाष किरणे क्रियाषील होती है। प्रकाष के सूक्ष्म कण फोटॅान को हिग्स फिल्ड आधारिय आकाष भार प्रदान करता है, और समानुपाती तरंग सुक्ष्म कणो के विद्युत स्पंदन द्वारा इलेक्ट्ान हेडान जेटस को एक सूत्र में बांध कर भार प्रदान करती है। सूक्ष्म कण के विस्थान से क्षरित ऊर्जा का संष्लेषण-आक्सिकरण, और विघटन-अवकरण की श्रंखलाबंद्ध चक्रिय अभिक्रियाओं के अंतर्गत सात प्रकाष किरणे ध्वनि-स्पंदन द्वारा पंच महाभूत जल, वायु,अग्नि, आकाष, और प्थ्वी को जीवन प्रदान करती है।

प्युरीन-पायरीमिडीन क्षार हायड्ोजन के त्रिबंध, और द्विबंध द्वारा जडे ुहोकर एक दूसरे के पूरक है। एक क्षार के समानुपाती अनुर्द्धेय तरंग द्वारा सूक्ष्म कण के विस्थापन, एवं समानुपाती तरंग मे अर्ध घुमाव परिवर्तन से क्षार तत्काल विभक्त होकर दो पूरक क्षार के साथ प्रथम अनुवांषिकी संकेत तथा प्रथम अमिनो एसिड जीवन का प्रथम संकेत है, जो समानुपाती अनुर्द्धेयके साथ तीव्र गति से सक्रिय होता है, और प्रोटीन की श्रंखला बनती जाती है।सूक्ष्म कण के विस्थापन से हायड्ोजन त्रि बंध द्वि बन्ध में परिवर्तित होता है और विपरीत दिषा मे त्रिबंध मे परिवर्तित हो जाता है, और श्रंखला टूटती नही है, और प्रथम गुणसूत्र निर्मित होता है। जिसमे तीन अविनाषी,और जीवन की तीन अवस्था अनुवांषिक गुण सहित होती है। घट-कुम्भ मे स्वतः सम्प्रेषण, और समय के साथ अनुवाद होता है। जैसे संकेतग्राही एंटीना श्रवण यंत्र, और उच्चारण हेंतु माइक । प्रथम अनुवांषिकी संकेत समानुपाती अनुर्द्धेय के साथ जीव की व्यऊिगत पहचान और अविनाषी है, जिसका अविनाषी समानुपाती स्वर-तरंग पीढी दर पीढी नवीन जन्म के साथ अनुसरण करती है। तद्नुसार विभिन्न परिस्थिितियो के अनुरुप जीव-जगत का विकास हुआ, और नवीन जन्म के साथ समयानुसार पोता, पितामह बन जाता है, और पितामह पोते के रुप में जन्म लेता है।

पृथ्वी पर जीवन के अनुकूल पस्थितियां विकसित होने पर जीवन की उत्पत्ति के साथ कार्यषील ऊर्जा की समानुपाती अनुर्द्धेय तरंग जन्म के साथ जीव का धारण-पोषण करती है, और सहायक सात रंगीन प्रकाष किरणे समानुपाती अनुर्द्धेय तरंग से सूक्ष्म कण ईलेक्ट्ान के विस्थापन से क्षरित ऊर्जा के संष्लेषण-विघटन द्वारा जीव को आकार प्रदान करते है।

हरे प्रकाष की किरण जीव-घट से टकराकर पलट जाती है, लाल प्रकाष की अनुर्द्धेय तरंग प्रविष्ट होकर हरे प्रकाष कण के माध्यम से अविनाषी रासायनिक ऊर्जा मे परिवर्तन होता है, यह प्रकाष संष्लेषण की अविनाषी रासायनिक ऊर्जा, भोज्य पदार्थाे की चया-पचय क्रिया द्वारा जीवन का आधार है, जिसमे जीवद्रव के स्पंदन गति से कार्यषील ऊर्जा उत्पन्न होकर ऊर्जा रुपान्तरण द्वारा जीवन पथ पर जीव को विकसित करती है, और मुत्यु के साथ विलुप्त हो जाती है।

कार्यषील ऊर्जा बीज निर्माता, और समानुपाती अनुर्द्धेय काली तरंग बीज धारण करती है। यह जीवन यंत्र तीन अविनाषी तथा जीवन की तीन अवस्था के साथ कार्यषील ऊर्जा, और उसकी समानुपाती अनुर्द्धेय तरंग द्वारा जीव कोे पेरित और संचालित करती है। व्यक्तिजीव का प्रथम अनुवांषिकी संकंेत अविनाषी होकर पीढी दर पीडी जीव की प्रम्येक क्रिया सम्प्रेषण अंकन जन्म से लेकर मृत्यु तक का लेखा अंकित होता है, जिसका समय के साथ अनुवाद स्वतः होता है, जिन्हे जीव षब्द और क्रिया के द्वारा अभिव्यक्त करता है। अविनाषी स्वर-षब्द टकराकर पलट जाते है, और सूक्ष्म कण के विस्थापन से समानुपाती अनुर्द्धेय तरंग मे अर्ध-घुमाव एवं विद्युत स्पंदन द्वारा अनुवांषिक संकेत-डीएनए कोड विभाजित होकर क्रिया सम्पन्न करता है। स्वर-तरंग का सम्प्रेषण और अनुवाद साथ-साथ होता है।

अविनाषी स्वर-षब्द तरंग स्पर्ष कर पलट जाती है, जिसे जीव-षब्द विचार द्वारा क्रिया करता है, जिसका अं्रकन आनुवांषिकी संकेम मे होता है। जिसके समानुपाती स्वर-षब्द ब्रह्मण्ड मे वयाप्त होकर पीढी दर पीढी अपनी अनुवांषिकी संकेत को प्रभावित करते है। जो जीव के जीवन में सुख-दुःख का कारण है।

मॉ के गर्भ मे निषेचन के साथ हवा मे एक क्षार उभरता है, जो मन-सकेत है, इस संकेत को इसकी समानुपाती स्वर अनुर्द्धेय तरंग सूक्ष्म कण के विस्थापन से क्षरित ऊर्जा अर्ध-घुमाव द्वारा एक समानुपाती अनुर्द्धेय तरंग सक्रिय होती है, और सूक्ष्म कण के विस्थापन से परस्पर पूरक क्षार से अनुवांषिकी त्रिसंकेत समानुपाती अनुर्द्धेय स्वर-तरंग सहित ज्ञंखला बद्ध तेजी से विभाजित होता है। जिसे सूक्ष्म कण के विस्थापन से क्षरित ऊर्जा से हायड्ोजन त्रिबंध से हायड्ोजन द्वि बंध मे परिवर्तित होता है,और विचरीत दियाा मे जुड कर पुनः त्रिबंध मे परिवर्तित हो जाता है, जिससे डीएनए की क्षार ज्ञंखला निरंतर सम्प्रेषण, और अनुवाद द्वारा समानुपाती अनुर्द्धेय स्वर-तरंग सम्पूर्ण जीव कोषा मे फैलता है, और क्रियाओं को प्रेरित संचालित करता है। जिसके अनुसार अनुवांषिकी त्रिसंकेत समानुपाती अनुर्द्धेय तरंग के साथ जीव का अनुवांषिकीय विकास पित्र डीएनए के वंषनुसार तथा समानुपाती स्वर-तरंग भाग्य का निर्धारण करती है, जिसके कारण सबकी अनुवांषिक पहचान भिन्न- भिन्न और समय-बद्ध जुडॅवा संतानो के भी भाग्य अलग-अलग होते है।

कार्यषील समानुपाती अनुर्द्धेय-तरंग द्वारा सात रंगीन प्रकाष किरणो की समानुपाती अनुर्द्धेय द्वारा जीव-घट-कुम्भ की संगति । जो जीवन की उत्पत्ति के साथ नर-मादा को समानुपाती अनुर्द्धेय-तरंग द्वारा एक सूत्र में बांधते है। एक क्षार प्युरीन के समानुपाती अनुर्द्धेय तरंग के सक्रिय होने पर एक्स-एक्स मादा गुणसूत्र, तथा पायरीमिडीन क्षार के समानुपाती अनुर्द्धेय तरंग द्वारा क्रियाषील होने पर एक्स-वाय नर गुणसूत्र बनते है। पाणिग्रहण संस्कार नए जन्म का द्योतक।

जीव-घट-कुम्भ के दो क्षार प्युरीन और पायरीमिडीन में सिर्फ नायटोजन का अंतर होता है, और एक दूसरे के पूरक है, जो हवा मे विभक्त होते है जैसे दर्पण में छवि। इनमे दो क्षार प्युरीन एडेनीन, ग्वानीन, तथा दो क्षार पायरीमिडीन थायमीन सायटोसीन एक दूसरे के पूरक होकर हायड्ोजन द्विबंध, और हायड्ोजन त्रिबंध द्वारा एक दूसरे जुडे होते है। इनमे जीव के जन्म के साथ स्वतः क्रियाओं का सम्प्रेषण, और समय के तहत अनुवाद जीवन पर्यंत होता है, जिन्हे जीव षब्द, और क्रियाआंे के द्वारा अभिव्यक्त करता है। अविनाषी, स्वर-षब्द तरंग पीढी दर पीडी अविनाषी जीव घटन्कुम्भ का नए जीवन के साथ अनुसरण करते है। जिससे अनन्त प्रकृति अस्तित्व मे आई, जो यंत्रवत क्रियाषील होकर सृष्टि, और जीवन को संचालित करती है।

न्युक्लियोटाइड जोडे मे तीन अविनाषी, और जीवन की तीन अवस्था का संगम, जीव के जन्म के साथ सक्रिय होकर जीव को मॉ के गर्भ मे निषेचन से उत्पन्न त्रिसंकेत ट्रीपलेट कोड मे होते है, जो जीव की व्यक्तिगत पहचान और समानुपाती अनुर्द्धेय के अनुवांषिकी गुणो के अनुसार आकार और भाग्य निधारित करती है। जिसके कारण दो जुडवां के भी भग्य अलग-अलग होते है। जन्म के साथ प्रथम जीव कोषा में जीवद्रव की गति के अनुसार कार्यषील ऊर्जा उत्पन्न होती है, और मृत्यु के साथ जीवद्रव गति बंद होने पर विलुप्त हो जाती है।

इसके अंतर्गत जीव को स्वयं के कर्मो का फल स्वयं को ही नये जन्म के साथ भोगना अपरिहार्य नियति है। कौई भी कमों में भगीदारी नहीं कर सकता।

डॉ. के.सी पाठक की सहधर्मिणी शक्ति -स्वरुपा सरला एवं भावेश हितेष की माताजी के स्वर्ग-लोक गमन -नवीन जीवन -यात्रा के प्रारम्भ की पुण्य स्मृति में श्रद्धा सुमन समर्पण ।

चन्द्रप्रकाश त्रिवेदी
94254 56518 इंदौर -रतलाम

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