हिन्दू समाज के संगठन से ही देश की उन्नति और इसी से पूरे विश्व का कल्याण होगा- आरएसएस प्रमुख डॉ मोहन भागवत ने पश्चिम बंगाल में कहा;यहाँ देखिए डॉ भागवत का पूरा भाषण

mohan bhagwat

बर्धमान 16 फरवरी { इ खबर टुडे } राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख डा.मोहन भागवत ने रविवार को हिंदू समाज को एकजुट करने के महत्व पर जोर दिया क्योंकि यह देश का ‘‘जिम्मेदार’’ समाज है जो मानता है कि एकता में ही विविधता समाहित है। पश्चिम बंगाल के बर्धमान में साई ग्राउंड पर आयोजित आरएसएस के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, “लोग अक्सर पूछते हैं कि हम केवल हिंदू समाज पर ही ध्यान क्यों देते हैं, और मेरा जवाब है कि देश का जिम्मेदार समाज हिंदू समाज है।”भागवत ने कहा, “आज कोई विशेष घटना नहीं है। जो लोग संघ के बारे में नहीं जानते, वे अक्सर आश्चर्य करते हैं कि संघ क्या चाहता है। अगर मुझे जवाब देना होता, तो मैं कहता कि संघ हिंदू समाज को संगठित करना चाहता है, क्योंकि यह देश का जिम्मेदार समाज है।”उन्होंने कहा कि हिन्दू समाज के संगठित होने से ही भारत परम वैभव को प्राप्त करेगा और भारत की उन्नति से ही विश्व का कल्याण होगा।

उन्होंने विश्व की विविधता को स्वीकार करने के महत्व पर भी बल दिया। उन्होंने कहा, “भारत सिर्फ भूगोल नहीं है; भारत की एक प्रकृति है। कुछ लोग इन मूल्यों के अनुसार नहीं रह सके और उन्होंने एक अलग देश बना लिया। लेकिन जो लोग स्वाभाविक रूप से यहीं रह गए, उन्होंने भारत के इस सार को अपना लिया। और यह सार क्या है? यह हिंदू समाज है, जो दुनिया की विविधता को स्वीकार करके फलता-फूलता है। हम कहते हैं ‘विविधता में एकता’, लेकिन हिंदू समाज समझता है कि विविधता ही एकता है।”

भागवत ने कहा कि भारत में कोई भी सम्राटों और महाराजाओं को याद नहीं करता, बल्कि एक ऐसे राजा को याद करता है जो अपने पिता के वचन को पूरा करने के लिए 14 साल के वनवास पर चला गया – यह स्पष्ट रूप से भगवान राम का संदर्भ था, और वह व्यक्ति जिसने अपने भाई की पादुकाएं सिंहासन पर रखीं, और जिसने वापस आने पर राज्य सौंप दिया।

उन्होंने कहा, “ये विशेषताएं भारत को परिभाषित करती हैं। जो लोग इन मूल्यों का पालन करते हैं, वे हिंदू हैं और वे पूरे देश की विविधता को एकजुट रखते हैं। हम ऐसे कार्यों में शामिल नहीं होंगे जो दूसरों को चोट पहुंचाते हैं। शासक, प्रशासक और महापुरुष अपना काम करते हैं, लेकिन समाज को राष्ट्र की सेवा के लिए आगे आना चाहिए।”

हिंदू एकता की आवश्यकता दोहराते हुए भागवत ने कहा कि अच्छे समय में भी चुनौतियां हमेशा सामने आती रहेंगी। उन्होंने कहा, “समस्या की प्रकृति अप्रासंगिक है; महत्वपूर्ण यह है कि हम उनका सामना करने के लिए कितने तैयार हैं।” यह कार्यक्रम कलकत्ता उच्च न्यायालय की मंजूरी दिए जाने के बाद आयोजित की गई थी, क्योंकि बंगाल पुलिस ने शुरू में इसकी अनुमति देने से इनकार कर दिया था।

सिकंदर से लेकर अब तक हुए ऐतिहासिक आक्रमणों पर बोलते हुए भागवत ने कहा कि “कुछ मुट्ठीभर बर्बर लोगों ने, जो गुणों में श्रेष्ठ नहीं थे, भारत पर शासन किया, तथा समाज में विश्वासघात का चक्र जारी रहा। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि भारत का निर्माण अंग्रेजों ने नहीं किया था तथा तर्क दिया कि भारत के विखंडित होने की धारणा अंग्रेजों ने लोगों के मन में डाली थी।

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